MPCA चुनाव में सिंधिया-विजयवर्गीय जंग पर रहस्य बरकरार

Webdunia
सोमवार, 25 अगस्त 2014 (20:46 IST)
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इंदौर। मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन (एमपीसीए) के 24 अगस्त को संभावित द्विवार्षिक चुनावों में संगठन के मौजूदा अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्य के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के खेमों के बीच जंग को लेकर फिलहाल रहस्य बना हुआ है।

दोनों सियासी धुरंधरों के गुटों ने अब तक इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया है कि इन चुनावों में वे एक-दूसरे को फिर मतदान की चुनौती देंगे या समझौते का रास्ता अख्तियार करेंगे।

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एमपीसीए के पिछले दो चुनावों में अध्यक्ष पद पर सिंधिया के हाथों करारी मात खाने वाले विजयवर्गीय से जब शुक्रवार को यहां पूछा कि क्या वे फिर इस संगठन के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि मेरे एमपीसीए चुनाव लड़ने के बारे में क्रिकेटरों की टीम फैसला करेगी। अगर क्रिकेटर मुझे चुनाव लड़ने को कहेंगे तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा। हालांकि इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। विजयवर्गीय, इंदौर संभागीय क्रिकेट संगठन (आईडीसीए) के अध्यक्ष भी हैं।

उन्होंने यह पूछे जाने पर भी कोई सीधा जवाब नहीं दिया कि क्या उनका गुट इस बार एमपीसीए चुनावों में सिंधिया खेमे से समझौता कर सकता है। विजयवर्गीय ने इस सवाल पर कहा कि मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैं ऐसे मामले नहीं देखता। यह सब क्रिकेटरों की टीम तय करती है।

उधर सिंधिया खेमे ने भी एमपीसीए चुनावों में अपनी रणनीति को लेकर अब तक पत्ते नहीं खोले हैं। सिंधिया ने 30 जुलाई की रात यहां मीडिया से कहा था कि एमपीसीए के सदस्य ही निर्णय करेंगे कि इस संगठन के आगामी चुनाव सर्वसम्मति से होंगे या इन्हें मतदान के जरिए संपन्न कराया जाएगा।

बहरहाल, एमपीसीए के वर्ष 2010 और 2012 में हुए पिछले दो चुनावों में सिंधिया खेमे ने विजयवर्गीय गुट का सूपड़ा साफ कर दिया था।

वर्ष 2001 में तत्कालीन एमपीसीए अध्यक्ष माधवराव सिंधिया की हवाई दुर्घटना में मौत के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया इस क्रिकेट संगठन से जुड़े थे। वर्ष 2006 से ज्योतिरादित्य का एमपीसीए का निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने का सिलसिला शुरू हुआ था।

विजयवर्गीय ने एमपीसीए पर सिंधिया खेमे के दबदबे को वर्ष 2010 में चुनौती देकर इस सिलसिले को रोक दिया और एमपीसीए चुनावों में मतदान की नौबत आनी शुरू हो गई थी। इससे ‘भद्रजनों के खेल’ के सांगठनिक चुनावों को राजनीतिक रंग भी मिल गया था। यह रंग एमपीसीए के वर्ष 2012 में हुए पिछले चुनावों में भी बरकरार रहा था। (भाषा)

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