क्रिकेट मैदान पर नहीं बिलियर्ड्स टेबल पर जन्मी थी 'गुगली'

Webdunia
शुक्रवार, 25 जनवरी 2019 (22:58 IST)
नई दिल्ली। लेग ब्रेक गेंदबाजों के अचूक अस्त्र गुगली का जन्म किसी क्रिकेट के मैदान पर नहीं, बल्कि बिलियर्ड्स की टेबल पर हुआ था। क्रिकेट के जानकार और वरिष्ठ खेल पत्रकार धर्मेंद्र पंत ने अपनी किताब 'क्रिकेट विज्ञान' में यह दिलचस्प खुलासा किया है। लेखक का कहना है कि यदि गुगली नहीं होती तो शायद महान डॉन ब्रैडमैन का टेस्ट मैचों में बल्लेबाजी का औसत 100 से ऊपर होता। 
 
 
क्रिकेट इतिहास में क्लेरी ग्रिमेट, रिची बेनो, सुभाष गुप्ते, अनिल कुंबले, शेन वॉर्न, अब्दुल कादिर, दानिश कनेरिया ने गुगली का इस्तेमाल करके खूब विकेट लिए और वाहवाही लूटी। मौजूदा समय में भारत के युजवेंद्र चहल, पाकिस्तान के यासिर शाह और अफगानिस्तान के राशिद खान गुगली से बल्लेबाजों को चकमा देने का काम कर रहे हैं।
 
पंत की किताब के अनुसार 1877 में जब इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट मैच खेला गया था तब क्रिकेट के शब्दकोष में गुगली जैसा कोई शब्द नहीं था। टेस्ट क्रिकेट के जन्म के 20 साल बाद 1897 में इंग्लैंड के ऑलराउंडर बर्नाड बोनक्वेट (1877-1936) ने बिलियर्ड्स टेबल पर एक खेल 'टि्वस्टी-ट्वोस्टी' खेलते हुए इस रहस्यमयी गेंद की खोज की थी।
 
यह भी संयोग है कि बोसेनक्वेट अपने करियर के शुरु में मध्यम गति के गेंदबाज थे। उनके बाद गेंदबाजी की इस विद्या को दक्षिण अफ्रीका के जिस गेंदबाज रेगी श्वार्ज (1875-1918) ने आगे बढ़ाया, वह भी अपने करियर के शुरु में मध्यम गति की गेंदबाजी करते थे। इंग्लैंड में जन्मी और दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों के हाथों पली-बढ़ी यह विद्या ऑस्ट्रेलिया पहुँचने पर खूब फली-फूली और उसके गेंदबाजों ने इसका खूब उपयोग किया। 
 
'क्रिकेट विज्ञान' के अनुसार बोसेनक्वेट के कारण ऑस्ट्रेलियाई गुगली को 'बोसी' भी कहते है। वहां गुगली को 'रांग वन' के नाम से भी जाता जाता है। वैसे स्वयं बोसेनक्वेट ने यह स्वीकार किया है कि उनके देश के विलियम एटवेल (1861-1927) इस तरह की गेंद करते थे जबकि इंग्लैंड के ही एवलिन रोकले विल्सन (1879-1957) भी जब ऑफ ब्रेक करते थे तो वह वास्तव में गुगली होती थी।
 
गुगली के जन्म की कहानी बड़ी रोचक है। बोसेनक्वेट वर्ष 1897 के आसपास टेनिस बॉल से टि्वस्टी-ट्वोस्टी खेल रहे थे, जिसमें गेंद को टेबल पर इस तरह से उछालना होता था कि दूसरी तरफ खड़ा आपका प्रतिद्वंद्धी गेंद नहीं पकड़ पाए। 
 
पंत ने अपनी किताब में बताया कि बोसेनक्वेट ने पाया कि किसी गेंद को एक दिशा में मोड़ने और लगभग इसी अंदाज में की गयी अगली गेंद को दूसरी दिशा में मोड़ने पर आप अपने प्रतिद्वंद्धी को चकमे में डाल सकते हैं। कुछ प्रयोग करने के बाद वह टेबल पर गेंद को इस तरह से मोड़ने में सफल हो गए। इसके बाद उन्होंने पहले सॉफ्टबॉल और 1899 से नेट्स पर इस गेंद का जमकर अभ्यास किया। 
 
मिडिलसेक्स काउंटी की तरफ से खेलने वाले बोसेनक्वेट ने पहली बार जुलाई 1900 में लीस्टरशायर के खिलाफ लार्ड्स में खेले गए मैच में इसका सार्वजनिक तौर पर उपयोग किया और तब उन्होंने जो पहली गुगली डाली उसी पर उन्हें उस बल्लेबाज का विकेट मिल गया जो तब 98 रन पर खेल रहा था। 
 
उस समय गुगली को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया और इसे मजाक में उड़ा दिया गया। बोसेनक्वेट भी नहीं चाहते थे कि बल्लेबाज उनकी गेंदबाजी के इस खास हथियार से परिचित हों और इसलिए उन्होंने करीबी मित्र प्लम वॉर्नर से आग्रह किया था कि वह किसी को इस खोज के बारे में नहीं बताएं।

बोसेनक्वेट ने जब गुगली से सफलता दर सफलता हासिल करनी शुरु की तो वॉर्नर तथा अन्य लोगों ने इस पर लिखना शुरु कर दिया और दुनिया गेंदबाजी की एक नई विद्या से परिचित हुई।

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