डेब्यू से पहले टूट चुके थे सिराज, खिलाड़ियों को सताता था डर 'कुछ गलत ना कर लें', इस किताब में हुआ खुलासा

Webdunia
शनिवार, 21 अगस्त 2021 (15:17 IST)
नई दिल्ली: भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज की कहानी काफी खूबसूरत है जो भावनाओं से भरी है। इसमें त्रासदी का दुख, अपने कौशल में पारंगत होने का रोमांच और शीर्ष स्तर पर सफलता की खुशी शामिल है। इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में हाल में संपन्न दूसरे टेस्ट में भारत की जीत के दौरान आठ विकेट चटकाकर सिराज ने दिखा दिया है कि ऑस्ट्रेलिया में उनकी सफलता तुक्का नहीं थी और वह लंबी रेस के घोड़े हैं।
 
सिराज जुनून और गौरव की कई कहानियों में से एक हैं जिसका जिक्र भारतीय क्रिकेट पर नई किताब ‘मिशन डॉमिनेशन: एन अनफिनिश्ड क्वेस्ट’ में किया गया है। इसके लेखक बोरिया मजूमदार और कुशान सरकार हैं जबकि इसे साइमन एंड शुस्टर ने प्रकाशित किया है। भारतीय टीम को हमेशा से पता था कि सिराज के अंदर सफलता हासिल करने का जज्बा है क्योंकि उन्होंने उसे ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान देखा था जब संक्षिप्त बीमारी के बाद उनके पिता का निधन हो गया था।
 
किताब के अनुसार, ‘नवंबर में ऑस्ट्रेलिया में 14 दिन के अनिवार्य क्वॉरंटीन के दौरान सिराज के पिता का इंतकाल हो गया था। इसका मतलब था कि टीम का उसका कोई भी साथी इस दौरान गम को साझा करने उसके कमरे में नहीं जा सकता था। उस समय सभी के कमरों के बाहर पुलिसकर्मी खड़े थे जिससे कि भारतीय नियमों का उल्लंघन नहीं करें। उनकी निगरानी ऐसे हो रही थी जैसे वे मुजरिम हैं जो ऑस्ट्रेलिया में कोविड का निर्यात कर सकते हैं।’
इसमें कहा गया, ‘इसका नतीजा यह था कि टीम के साथी पूरे दिन उसके साथ वीडियो कॉल पर बात करते थे। वे चिंतित थे कि कहीं वह कुछ गलत ना कर ले या खुद को नुकसान ना पहुंचा ले। सिर्फ फिजियो उपचार के लिए उसके कमरे में जा सकता था और नितिन पटेल ने अंदर जाकर इस युवा खिलाड़ी का गम साझा किया था।’
 
किताब के अनुसार, ‘सिराज कई मौकों पर टूट गए जो स्वाभाविक था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की अपने पिता की इच्छा पूरी करना चाहते थे और जब मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर बॉक्सिंग डे टेस्ट के दौरान मौका मिला तो वह उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे।’
 
ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट सीरीज में 13 विकेट चटकाकर सिराज रातों रात स्टार बन गए। वह सीरीज के दौरान भारत के सबसे सफल गेंदबाज रहे। इस किताब में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि ऋषभ पंत और नवदीप सैनी ने किस तरह दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ में प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रदर्शन किया और किस तरह दिनेश लाड ने किशोर शार्दुल ठाकुर के पिता को मनाया कि वह अपने बेटे को मुंबई जाने की स्वीकृति दें जिससे कि वह शीर्ष स्तर का क्रिकेट खेल सके।
अरविंद पुजारा ने बताया कि कैसे मां के निधन के कुछ दिन बाद चेतेश्वर अंडर-19 मैच खेलने गया और इस दौरान एक बूंद आंसू नहीं बहाया। क्षेत्ररक्षण कोच आर श्रीधर ने पैर की मांसपेशियों में चोट के बावजूद हनुमा विहारी को कैसे कहा कि वह टीम के कर्जदार हैं और उन्हें सिडनी टेस्ट बचाने की जरूरत है।(भाषा)

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