ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट श्रृंखला नहीं जीत पाया है भारत

Webdunia
रविवार, 23 नवंबर 2014 (16:11 IST)
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम ने आजादी के बाद जिस देश का पहला दौरा किया था वह ऑस्ट्रेलिया था लेकिन वेस्टइंडीज और इंग्लैंड सरीखी टीमों को उनकी सरजमीं पर हराने वाले भारत का 67 साल भी कंगारुओं के देश में टेस्ट श्रृंखला जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया है।
 
भारतीय टीम अब टेस्ट श्रृंखला के लिए 11वें दौरे पर ऑस्ट्रेलिया गई है और इस बार भी टीम के सामने ‘आखिरी किला’ फतह करके इतिहास रचने की चुनौती है।
 
भारत ने अब तक ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर 10 टेस्ट श्रृंखलाएं खेली हैं। इनमें से 3 को वह ड्रॉ कराने में सफल रहा लेकिन बाकी 7 में भारतीय टीम को हार मिली। 
 
भारत ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड जैसी मजबूत टीमों से 1971 में श्रृंखला जीत ली थी लेकिन ऑस्ट्रेलिया ऐसा स्थान रहा है, जो हमेशा टीम के लिए अबूझ पहेली बना रहा।
 
ऑस्ट्रेलिया की धरती पर भारत ने अब तक 40 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें से वह केवल 5 मैचों में जीत दर्ज कर पाया है जबकि 26 टेस्ट मैचों में उसे हार मिली। भारत ने स्वतंत्रता मिलने के बाद नवंबर 1947 से फरवरी 1948 तक ऑस्ट्रेलिया का पहला दौरा किया था। 
 
लाला अमरनाथ की टीम के सामने सर डॉन ब्रैडमैन की अजेय टीम थी और परिणाम आशानुकूल रहा। भारत सिडनी में खेला गया दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ कराने में सफल रहा लेकिन बाकी 4 मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा। 
 
भारत इस देश का अगला दौरा 20 साल बाद कर पाया। मंसूर अली खां पटौदी के नेतृत्व वाली भारतीय टीम को 1967-68 में चारों टेस्ट मैच में करारी हार झेलनी पड़ी थी। इनमें से एडीलेड में खेले गए पहले टेस्ट मैच में चंदू बोर्डे ने टीम की अगुवाई की थी। 
 
भारत की ऑस्ट्रेलियाई सरजमीं पर दर्ज की गई पहली जीत यादगार थी। भारत ने एमसीजी में 222 रन से जीत दर्ज की। इस जीत के नायक लेग स्पिनर भगवत चंद्रशेखर थे जिन्होंने मैच में 12 विकेट लिए। 
 
सुनील गावस्कर ने भी दूसरी पारी में शतक जमाया। ऑस्ट्रेलिया के सामने 387 रन का लक्ष्य था, लेकिन बॉबी सिम्पसन की टीम 164 रन पर ढेर हो गई थी। सिडनी में भारत ने पारी और 2 रन से जीत दर्ज करके ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट को सन्न कर दिया था।
 
ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिर से चंद्रा, बेदी और ईरापल्ली प्रसन्ना की बलखाती गेंदों के जाल में फंस गए थे। भारत ने ऑस्ट्रेलिया के अगले 2 दौरों में 3-3 टेस्ट मैचों की श्रृंखलाएं खेलीं और दोनों को ड्रॉ कराने में सफल रहा। 
 
गावस्कर जनवरी-फरवरी 1981 के दौरे में कप्तान थे। भारत सिडनी में पहला टेस्ट हार गया लेकिन मेलबोर्न में तीसरा और आखिरी मैच 59 रन से जीतकर श्रृंखला 1-1 से बराबर करने में सफल रहा। यह टेस्ट गुंडप्पा विश्वनाथ की 114 रन की पारी और कपिलदेव (28 रन देकर 5 विकेट) की दूसरी पारी में शानदार गेंदबाजी के लिए याद किया जाता है। 
 
इसके लगभग 5 साल बाद 1985-86 के दौरे में कपिल देव की भारतीय टीम ने तीनों टेस्ट मैच ड्रॉ कराए थे, लेकिन मोहम्मद अजहरुद्दीन की अगुवाई वाली भारतीय टीम को 1991-92 में 5 टेस्ट मैचों की श्रृंखला में 0-4 से करारी हार का सामना करना पड़ा। 
 
सौरव गांगुली की कप्तानी में भारत ने 2003 में ब्रिस्बेन में पहला टेस्ट ड्रॉ कराने के बाद एडीलेड में अगला टेस्ट मैच जीतकर पहली बार ऑस्ट्रेलियाई धरती पर किसी टेस्ट श्रृंखला में बढ़त बनाई। 
 
राहुल द्रविड़ (233) और वीवीएस लक्ष्मण (148) के शतकों के अलावा अनिल कुंबले और अजीत अगरकर ने अच्छी गेंदबाजी करके भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन मेलबोर्न में बॉक्सिंग डे टेस्ट मैच में भारतीय टीम 9 विकेट से हार गई और सिडनी में आखिरी मैच में बेहतर स्थिति में होने के बावजूद स्टीव वा ने उसे जीत से वंचित कर दिया। इस तरह से यह श्रृंखला 1-1 से बराबर रही थी। 
 
भारत का 2007-08 का दौरा हरभजन सिंह और एंड्रयू साइमंड्स के बीच विवाद के कारण चर्चा में रहा था। अंपायरों के कुछ गलत फैसलों का भी भारत को खामियाजा भुगतना पड़ा जिससे वह मेलबोर्न और सिडनी में पहले 2 मैच हार गया। पर्थ में तीसरा मैच भारत ने 72 रन से जीता लेकिन एडीलेड टेस्ट ड्रॉ होने से परिणाम 2-1 से ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में रहा।
 
ऑस्ट्रेलिया ने इसके बाद 2011-12 में 4-0 से क्लीन स्वीप करके भारतीयों को करारा झटका दिया था, क्योंकि भारत के लिए यह जीत का सबसे अच्छा अवसर माना जा रहा था। भारतीय बल्लेबाजी बुरी तरह नाकाम रहे जिसका ऑस्ट्रेलिया ने पूरा फायदा उठाकर बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी अपने पास रखी। 
 
भारत ने 1 साल बाद हिसाब बराबर करके 4-0 से क्लीन स्वीप किया, लेकिन बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी बरकरार रखना विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ियों के नेतृत्व वाली टीम के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। (भाषा) 
 
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