शेम ऑन टीम इंडिया...

- सीमान्त सुवीर

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बेशर्मी की भी हद होती है...। आपको नहीं लगता है कि ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर गई टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने जिस तरह अपने प्रदर्शन से पूरे देश को शर्मसार किया है, उन्हें हिंद महासगर में डुबो देना चाहिए? धोनी के धुरंधरों में न तो वह आग है और न ही वह पैनापन। जीत का जज्बा तो बिलकुल ही गायब है।

दौलत की चमक और 'कैमरे' की चकाचौंध ने इन खिलाड़ियों में इतना गुरूर भर दिया है कि इन्हें न तो खेल की परवाह है और न ही देश के मान-सम्मान की। मोटी चमड़ी के इन क्रिकेटरों पर अब मीडिया की आलोचना का असर भी नहीं होता।

आह... तो उन क्रिकेट दीवानों की निकल रही है, ‍जो इनके ऑस्ट्रेलियाई दौरे के प्रदर्शन को लगातार देख रहे हैं। मेलबोर्न और सिडनी में चार दिन में खत्म हुए दोनों टेस्ट मैचों में बद से बदतर हार मिली और पर्थ के विकेट पर पहले ‍ही दिन जिस तरह से 'सूरमा' बल्लेबाज ऑस्ट्रेलियाई आंधी के सामने केवल 161 रनों पर उड़ गए, उससे यह तो यकीन हो ही गया है कि यहां पर भी किसी तरह का कोई चमत्कार नहीं होगा।

पर्थ के वाका की पिच ऑस्ट्रेलिया की सबसे तेज और उछालभरी पिचों में शुमार है और यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया ने 4 तेज गेंदबाजों को लेकर भारतीय क्रिकेट टीम का मानमर्दन करने का फैसला किया और पहले ही दिन मानसिक रूप से थकी-हारी भारतीय टीम डरे हुए खरगोश की मानिंद अपनी खो में दुबक गई।

यह भी बिलकुल सच है कि यदि हड्‍डी की समस्या से जूझ रहे जेम्स पेटिनसन पर्थ में होते तो सचिन का महाशतक तो दूर की बात है पूरी टीम 'शतक' के आंकड़े को नहीं छू पाती। आश्चर्य तो तब होता है, जब उसी विकेट पर ऑस्ट्रेलिया के दो सलामी बल्लेबाज डेविड वॉर्नर (नाबाद 104) और कोवान (नाबाद 40) अपनी बल्लेबाजी के जौहर दिखलाते हैं। ऐसे में उनके प्रदर्शन को देखकर तो सचिन, सहवाग, द्रविड़ लक्ष्मण, धोनी जैसे तथाकथित 'महान सितारों को तो शर्म से डूब मरना चाहिए।

वॉर्नर का टेस्ट आगाज 1 दिसम्बर 2011 को ही हुआ और उन्होंने केवल 4 टेस्ट मैचों ही खेले हैं, लेकिन जिस तरह से वह पर्थ टेस्ट के पहले दिन भारतीय गेंदबाजों का भुर्ता बना रहे थे, उसे देखकर लग रहा था कि यहां पर एक क्लब स्तर की गेंदबाजी हो रही है। बड़े-बड़े नाम, दौलत और शोहरत के धनी भारत के स्टार क्रिकेटरों को वॉर्नर का बल्ला मुंह चिढ़ा रहा था।

खेल के तीसरे सत्र में उमेश यादव की प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से आई गेंद पर जब वॉर्नर बल्ला घुमाने से चूक गए तो गेंद सीधे उनके कान के पास जाकर लगी। हेलमेट पहने होने के बावजूद वॉर्नर सन्न रह गए और तत्काल फिजियो ने भी मैदान पर दौड़ लगाई।

एक क्षण तो लगा कि वॉर्नर को सीधे अस्पताल ले जाया जाएगा, लेकिन इस ऑस्ट्रेलियन की जीवटता देखिए कि उसने फिर से मोर्चा संभाला और ईशांत की ठीक उसी तर्ज पर आई गेंद पर चौका जड़ दिया। यह सब हिम्मत और हौसले की बात है और भारतीय टीम में यह मानवीय गुण मानो 'दूर की कौड़ी' हो गए हैं।

पहले दो टेस्ट और पर्थ में तीसरे टेस्ट के पहले दिन के खेल की समाप्ति तक टीम इंडिया के निहायत घटिया प्रदर्शन को देखकर हर भारतीय क्रिकेटप्रेमी का खून खौलना लाजमी है क्योंकि जिन खिलाड़ियों को कभी पलकों पर सजाया था, उन्होंने उन्हीं आंखों को लहूलुहान कर दिया है। ऐसा तो किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था। हार-जीत खेल का हिस्सा हो सकती है, लेकिन ऐसी हार कतई नहीं जो पूरे देश को लज्जित कर दे।

आज पूरी दुनिया उस टीम की शर्मनाक हार को देख रही है, जिसने पिछले ही साल अपने सीने पर विश्व चैंपियन होने का तमगा सजाया था। आईपीएल में पैसों की बरसात के बीच इन खिलाड़ियों ने अपना बैंक बैलेंस बढ़ाया और जब इससे भी इनकी दौलत की भूख नहीं मिटी तो उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में अपना चेहरा बेचकर सात पुश्तों की रोजी-रोटी का इंतजाम भी कर डाला। फिर खेल और देश की इज्जत जाए भाड़ में।

सुनील गावसकर ठीक ही कहते हैं कि यह टीम ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट खेलने नहीं बल्कि सैर-सपाटे के लिए गई है। सचिन को ही देखिए, वे पत्नी अंजलि और बेटे अर्जुन के साथ ऑस्ट्रेलिया में हैं। धोनी की अर्धांगिनी साक्षी भी कैमरे पर इतराते हुए नजर आती हैं। और क्रिकेटर भी अपनी-अपनी पत्नियों के साथ ऑस्ट्रेलिया के पर्यटन का आनंद ले रहे है।

इंडिया टीम के तीन खिलाड़ियों को छोड़कर पूरी टीम मय परिवार के गो-कार्टिंग का लुत्फ उठाती है, वह भी टेस्ट मैच शुरू होने के ठीक पहले। असल में भारतीय खिलाड़ी ये मान क्यों नहीं लेते कि उनकी 'मर्दानगी' भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित है। यहां के धीमे विकेटों पर ही वे अपना रुतबा बता सकते हैं, लेकिन इसके बाहर उनकी हालत जिम्बॉब्वे और बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम की तरह ही हो जाती है।

21 साल के जेम्स पेंटिनसन जिनका जिक्र पहले किया गया है, उन्होंने केवल 4 टेस्ट मैचों में 25 विकेट झटके हैं और उनका भी टेस्ट पदार्पण इसी साल इस सिरीज के पहले न्यूजीलैंड के खिलाफ हुआ है। कोवान जो 40 रन पर नाबाद हैं, उन्होंने भी ऑस्ट्रेलिया की 'बैगी ग्रीन कैप' भारत के खिलाफ मेलबोर्न टेस्ट में पहनी है। ये नए-नवेले ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर जिस तरह से भारत के 'बूढे' क्रिकेटरों पर हावी हैं, उन्हें शाबासी देने का मन करता है।

आखिर कब तक हम सचिन जैसे महान कहे जाने वाले खिलाड़ी के महाशतक का इंतजार करते रहेंगे? कब तक 39 साल में प्रवेश करने वाले राहुल द्रविड़ पर आस लगाए बैठे रहेंगे? कब तक लक्ष्मण को सहेंगे? कब तक सहवाग के दोहरे और तिहरे शतक के आंकड़ों को सहेजकर उन पर इठलाते रहेंगे?

जनाब! वक्त बदल रहा है, आपको भी बदलना होगा। बेहतर तो यह होता कि धोनी को ठीक वही युवा टीम सौंप दी जाती, जिसने वेस्टइंडीज के खिलाफ घरेलू सिरीज में हैरतअंगेज प्रदर्शन किया था, मगर डरपोक चयनकर्ताओं में ऐसा साहस कभी आ सकता है? शायद कभी नहीं...

दरअसल पूरा भारतीय क्रिकेट एक कार्पोरेट कल्चर में बदल गया है। यहां पर सोने के सिक्कों की चमक-दमक है, जिसकी खनक ने इन क्रिकेटरों को बावला बना दिया है। इसमें एक बड़ी भूमिका आईपीएल की भी रही है। टीम इंडिया की घर में अपना सिक्का जमाने के अलावा ऐसी कूवत नहीं है कि वह विदेशी जमीन खासकर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में जाकर अपने जौहर दिखलाए। नामी क्रिकेटर अपनी अपनी पत्नियों को शायद इसी गरज से ले गए हैं, ताकि हार के बाद उनके पल्लू (यह अलग बात है कि उन बेचारियों के पास पल्लू भी नहीं है) से घड़ियाली आंसू पोंछ सके।

जो हश्र इंग्लैंड में टेस्ट सिरीज का हुआ था (बद से बदतर हार...) उसी का अंजाम ऑस्ट्रेलिया में भी होने का आभास अभी से होने लगा है। ऑस्ट्रेलिया के तेज विकेटों पर भारतीय ‍बल्लेबाजों का जो हश्र हो रहा है, उसने उन सब लोगों को आहत किया, जिसे वे प्यार करते हैं। ये भी तय है कि टेस्ट सिरीज में व्हाइटवॉश होने के बाद भी इन बेशर्म क्रिकेटरों के चेहरे पर शिकन तक नहीं आएगी। उन्हें मालूम है कि भारतीयों के पास कोसने के अलावा चारा ही क्या है...

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