तिब्बत के ग्लेशियर में मिला 15,000 साल पुराना वायरस

Webdunia
मंगलवार, 28 जनवरी 2020 (11:52 IST)
कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में वैज्ञानिकों को ग्लेशियर से प्राचीन वायरस मिला है। शोधकर्ताओं के मुताबिक ये वायरस हजारों साल पहले की बीमारियों को वापस ला सकते हैं।
  
सन् 2015 में वैज्ञानिकों की टीम अमेरिका से तिब्बत यह पता लगाने पहुंची थी कि वहां ग्लेशियर के अंदर क्या है। उनके अध्ययन में चीन के उत्तर-पश्चिम तिब्बती पठार पर विशाल ग्लेशियर में 15,000 साल से फंसे ऐसे वायरस को खोजा गया है जिनको पहले कभी नहीं देखा गया है।
ALSO READ: चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा, प्रधानमंत्री ने किया वुहान का दौरा, मृतक संख्या बढ़कर 100 पार
 
कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कैसे शोधकर्ताओं ने 28 ऐसे वायरस समूहों की खोज की है जिनको पहले कभी नहीं देखा गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक बर्फ में दबे होने की वजह से ये वायरस अलग-अलग तरह की जलवायु में भी जीवित रहे हैं।
 
शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर के पिघलते ग्लेशियरों के कारण इस तरह के वायरसों का दुनिया में फैलने का खतरा पैदा हो गया है। बर्फ में दबे होने की वजह से ये वायरस हजारों साल से जिंदा हैं, लेकिन बाहर नहीं आ पाए। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे वायरस का दुनिया के संपर्क में आना खतरनाक साबित हो सकता है।
ALSO READ: कोरोना वायरसः इंफ़ेक्शन से बचने के लिए क्या करें, क्या न करें
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर के 2 नमूनों का अध्ययन किया। एक ग्लेशियर का टुकड़ा 1992 में लिया गया था और दूसरा 2015 में। दोनों नमूनों को ठंडे कमरे में रखा गया था। एक की बाहरी परत को हटाने के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल किया गया जबकि दूसरे को साफ पानी से धोया गया। दोनों ही नमूनों में 15,000 साल पुराने वायरस पाए गए।
 
दुनिया के कई शोधकर्ता पहले से जलवायु परिवर्तन पर चिंता जता चुके हैं। जिनके मुताबिक ग्लेशियरों में कई ऐसे वायरस दबे हो सकते हैं, जो बीमारियां पैदा कर सकते हैं। ये ऐसे वायरस हैं जिनसे निपटने के लिए आधुनिक दुनिया तैयार नहीं है। अगर ये वायरस बाहरी दुनिया में संपर्क में आते हैं तो वे फिर से सक्रिय हो सकते हैं।
ALSO READ: कितना खतरनाक है और इंसान के किस हिस्‍से में अटैक कर रहा ‘कोरोनोवायरस’
शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लेशियर के कोर तक जाने के तिब्बत के ग्लेशियर पठारों को 50 मीटर (164 फीट) गहराई तक ड्रिल किया। शोधकर्ताओं ने नमूनों में रोगाणुओं की पहचान के लिए माइक्रोबायोलॉजी तकनीकों का इस्तेमाल किया। प्रयोग में 33 वायरस समूहों का पता चला जिनमें 28 प्राचीन किस्म के वायरस थे।
 
कोल्ड स्प्रिंग लैब के जर्नल 'बायोआर्काइव' में शोधकर्ताओं ने लिखा कि ग्लेशियर की बर्फ के अध्ययन के लिए अल्ट्रा क्लीन माइक्रोबियल और वायरल सैंपलिंग प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया। वायरस की पहचान करने के लिए साफ प्रक्रिया है।'
 
अंटार्कटिका में ग्लेशियर असामान्य रूप से तेजी से पिघल रहे हैं। जनवरी 2019 में शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि इस क्षेत्र में बर्फ 1980 के दशक की तुलना में 6 गुना अधिक तेजी से पिघल रही है। जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जिन्हें अपेक्षाकृत स्थिर और परिवर्तन के लिए प्रतिरोधी माना जाता रहा है।
 
शोधकर्ताओं ने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अब हमें खतरनाक वायरस का खतरा पैदा हो गया है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में समुद्री बर्फ प्रत्येक गर्मियों में सितंबर में पूरी तरह से गायब हो सकती है। अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, पर्यावरण की स्थिति और खराब होती तो ग्लेशियरों में दबे ये वायरस बर्फ से निकलकर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं।  (फाइल चित्र)
 
-रिपोर्ट श्रेया बहुगुणा

सम्बंधित जानकारी

Show comments

अभिजीत गंगोपाध्याय के राजनीति में उतरने पर क्यों छिड़ी बहस

दुनिया में हर आठवां इंसान मोटापे की चपेट में

कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान

पुतिन ने पश्चिमी देशों को दी परमाणु युद्ध की चेतावनी

जब सर्वशक्तिमान स्टालिन तिल-तिल कर मरा

Monsoon 2024 : केरल कब तक पहुंचेगा मानसून, IMD ने बताई तारीख

5 लाख के इनामी भगोड़े अपराधी को NIA ने किया गिरफ्तार

कृष्ण जन्मभूमि मामले में गुरुवार को भी होगी सुनवाई, हिंदू पक्ष ने दी यह दलील...

अगला लेख