अरुणाचल प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे लोअर सुबनसिरी जिले में 45 साल से ऊपर के लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे थे। उनकी हिचकिचाहट दूर करने के लिए राज्य सरकार ने 20 किलो चावल की पेशकश की।
राज्य में लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए अचानक स्थानीय अधिकारियों को एक उपाय सूझा और वह काफी हिट हो गया। प्रशासन ने एलान कर दिया कि वैक्सीन लेने वाले को 20 किलो चावल मुफ्त दिए जाएंगे। इसके बाद वैक्सीनेशन सेंटरों पर भीड़ बढ़ने लगी और तीन दिनों के भीतर ही इलाके की ज्यादातर आबादी को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। अरुणाचल प्रदेश में अब तक कोरोना के करीब 30 हजार मामले सामने आए हैं और 125 लोगों की मौत हो चुकी है।
सीमावर्ती इलाके में मूलभूत नागरिक सुविधाओं की भी कमी है। इस बीच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले 6 सौ ग्रामीणों के पानी, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
अफवाहों से इलाके में आतंक
कोरोना वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की अफवाहों और भ्रांतियों की खबरें सामने आती रही हैं। कहीं लोग डर के मारे इसे लेने से हिचक रहे हैं, तो कहीं साइड इफेक्ट्स के डर से। खासकर ग्रामीण और दुर्गम इलाकों से ऐसी कई खबरें आती रही हैं। पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के दुर्गम लोअर सुबनसिरी जिले में यही स्थिति थी। इलाके के खासकर 45 साल से ऊपर की उम्र के लोग वैक्सीन लगाने ही नहीं पहुंच रहे थे। ऐसे में एक स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी को इस समस्या को सुलझाने का एक अनूठा उपाय सूझा। उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद एलान कर दिया कि वैक्सीन लगवाने वालों को 20 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा।
उनका यह आइडिया इतना हिट हुआ कि वैक्सीनेशन सेंटरों पर भीड़ बढ़ने लगी और तीन दिनों के भीतर इस आयु वर्ग के ज्यादातर लोगों ने वैक्सीन लगवा ली। दरअसल, वहां लोगों में यह डर था कि वैक्सीन लगने के बाद वे नपुंसक हो जाएंगे और वैक्सीन के जरिए उनके शरीर में कोई माइक्रोचिप डाल दी जाएगी जिससे सरकार उन पर चौबीसों घंटे निगाह रख सकेगी। याजाली इलाके के सर्किल अफसर ताशी वांगचुक थांगडॉक ने एलान करा दिया कि 45 साल से ऊपर के उम्र वालों को वैक्सीन लगवाने के बाद 20 किलो चावल मौके पर ही मुफ्त दिए जाएंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले ही दिन 50 से ज्यादा वैक्सीनेशन सेंटर पर पहुंच गए। उसके पहले इक्का-दुक्का लोग ही पहुंचते थे। नतीजतन वैक्सीन नष्ट होने का खतरा बढ़ रहा था।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का सहयोग
अरुणाचल प्रदेश सिविल सर्विस की 2016 बैच के अधिकारी थांगडॉक बताते हैं, 'हम इस सर्किल में वैक्सीन कवरेज बढ़ाने के लिए विभिन्न उपायों पर विचार-विमर्श कर रहे थे। इसी दौरान मुफ्त चावल देने का विचार सूझा। यह अभियान 20 जून तक जारी रहेगा। तब तक सबको वैक्सीन लग चुकी होगी।' इस मुहिम के लिए दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ताबा नागू और लिचा बीरबल ने चावल मुफ्त में मुहैया कराए। छोटी-सी पहाड़ी याजाली कस्बे की आबादी करीब 12 हजार है और इनमें से 45 साल से ऊपर की उम्र वालों की तादाद 14 सौ है। इनमें से 209 लोग ऐसे थे जो लाख समझाने पर भी वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं थे।
प्रशासन की ओर से उनके घर जाकर वैक्सीन देने की भी कोशिशें हुईं। लेकिन लोग इसके लिए तैयार नहीं थे। थांगडॉक बताते हैं, 'कुछ लोग वैक्सीन लगने के बाद कुछ दिनों के लिए शराब का सेवन छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। हाल में व्हाट्सएप पर एक संदेश वायरल हो रहा था कि वैक्सीन लगने के दो साल के भीतर संबंधित व्यक्ति की मौत हो जाएगी। इससे निपटने के लिए इलाके में जागरूकता अभियान चलाया गया था।'
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान इलाके में संक्रमण के 243 मामले सामने आए थे। उनमें से 53 लोग फिलहाल संक्रमित हैं। याजाली में कोरोना से अब तक किसी की मौत नहीं हुई है। थांगडॉक बताते हैं कि दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 209 लोगों के लिए जरूरी चावल का इंतजाम किया। मोटे तौर पर 20 किलो चावल की कीमत स्थानीय बाजारों में 6 से 700 रुपए के बीच है। याजाली के रहने वाले लिचा बीरबल, जो अब असम की राजधानी गुवाहाटी में व्यापार करते हैं, बताते हैं, 'सर्किल अफसर ने मुफ्त चावल बांटने के आइडिया के साथ मुझसे संपर्क किया था। मैंने अपने स्कूली सहपाठी ताहा नागू के साथ मिल कर इसके लिए जरूरी रकम का इंतजाम किया।'
मानवाधिकार आयोग की पहल
तिब्बत की सीमा से सटा अरुणाचल प्रदेश देश के दुर्गम इलाकों में से एक है। खासकर सीमावर्ती इलाकों में सड़क, स्वास्थ्य और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी भारी अभाव है। ऐसे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी की ओर से दायर एक याचिका पर अरुणाचल सरकार से दुर्गम इलाकों में रहने वाले ऐसे करीब 6 सौ लोगों को मौलिक सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया है।
याचिका में कहा गया था कि उन लोगों को पीने के पानी, स्कूल, खेल के मैदान, आंगनवाड़ी केंद्र, सड़क और स्वास्थ्य जैसी मौलिक सुविधाएं भी हासिल नहीं हैं। इसके अलावा लोगों की आजीविका या स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण का भी कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं है। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दलील दी थी कि वह संबंधित इलाके में तमाम सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास कर रही है। सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत सुविधाएं विकसित और मजबूत करने के लिए 4,690 करोड़ की योजना का प्रस्ताव भी तैयार किया गया है।