टीवी स्क्रीन, विश्वविद्यालयों से लेकर राष्ट्रीय संसद तक अफगान महिलाओं ने अपनी आवाज सुनाने और अपने चेहरे को दिखाने के लिए संघर्ष करते हुए दो दशक बिताए। लेकिन कुछ ही दिनों में वे जनता की नजरों से ओझल होती नजर आ रही हैं। 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अधिकार संगठन और सहायता संगठन अपनी वेबसाइट से महिला लाभार्थियों, कर्मचारियों और अन्य स्थानीय महिलाओं की तस्वीरें हटा रहे हैं।
एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला निदेशक मोहम्मद नसीरी कहते हैं, 'हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता सुरक्षा सुनिश्चित करनी है और उसमें हमारी टीमों की सुरक्षा भी शामिल है। उन महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा जिनके साथ हम काम कर रहे हैं।' उन्होंने कहा, '(सामग्री) एक बार आश्वस्त होने पर फिर से अपलोड की जाएगी। हम यह देखेंगे कि जमीन पर क्या हो रहा है।' उन्होंने अफगानिस्तान में वर्तमान स्थिति को 'लैंगिक आपातकाल' के रूप में बताया है।
महिलाओं से जुड़ी सामग्री हट रही
नसीरी ने कहा कि तस्वीरों को हटाने का कदम अस्थायी है और इसका मतलब यह नहीं है कि संगठन अफगान महिलाओं को छोड़ रहा है, लेकिन वह सावधानी बरत रहा है क्योंकि वह तालिबानियों द्वारा हाल के किए गए वादों को सुनिश्चित करना चाहता है। हाल ही में तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वादे किए हैं।
2001 में अमेरिका के हमले के बाद वहां महिलाओं पर अत्याचार बंद हो पाया था। अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान ने तेजी से क्षेत्रीय बढ़त हासिल की और अब पूरे देश पर तालिबान का कब्जा है। तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे। उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था। महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं।
20 साल की आयु वर्ग की युवतियां तालिबान के शासन के बिना बड़ी हुईं, अफगानिस्तान में इस दौरान महिलाओं ने कई अहम तरक्की हासिल की। लड़कियां स्कूल जाती हैं, महिलाएं सांसद बन चुकी हैं और वे कारोबार में भी हैं। वे यह भी जानती हैं कि इन लाभों का उलट जाना पुरुष-प्रधान और रूढ़िवादी समाज में आसान है।
कुछ अधिकार कार्यकर्ता को चिंता है कि महिलाओं की तस्वीरों को हटाने से अनजाने में सार्वजनिक जीवन से महिलाओं को हटाने की विचारधारा को बल मिल सकता है जिसे तालिबान के 1996-2001 के शासन के दौरान सख्ती से लागू किया गया था।
तालिबान का डर
लेकिन इस डर के बीच कि लोगों को निशाना बनाने के लिए किसी भी डिजीटल पदचिह्न का इस्तेमाल किया जा सकता है। कम से कम पांच अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि वे उन तस्वीरों को हटा रहे हैं जो अफगान महिलाओं, बच्चों और कर्मचारियों की पहचान करती हैं। नाम न बताने की शर्त पर ऑक्सफैम के प्रवक्ता ने कहा, 'एहतियात के तौर पर (सामग्री) को सक्रिय रूप से हटा रहे हैं।'
पिछले हफ्ते साइट के कुछ समय के लिए ऑफलाइन होने के बाद चैरिटी ने शुक्रवार को अपने अफगानिस्तान पेज के एक संशोधित संस्करण को बहाल कर दिया, जबकि यूएन वीमेन ने अपने स्थानीय पेज को एक बयान के साथ बदल दिया और देश को उन स्थानों की सूची से हटा दिया जहां यह संचालित होता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि शिक्षाविदों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं समेत हजारों अफगानों को 'तालिबान के बदला का गंभीर खतरा है' क्योंकि तालिबान ने एक सप्ताह पहले ही सत्ता पर कब्जा किया है। एमनेस्टी के एक कार्यकर्ता जिसने अपना नाम नहीं बताया, उसने कहा कि उनके कई सहयोगी छिप गए हैं।
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)