क्या एटीएम मशीनें खत्म होने वाली हैं?

Webdunia
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018 (11:34 IST)
भारत में एटीएम मशीनें सूख रही हैं तो जर्मनी में जहां एटीएम मशीनें पहली बार 50 साल पहले लगाई गई थीं, उनकी संख्या लगातार गिर रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि लोगों ने नगदी का इस्तेमाल बंद कर दिया है।
 
 
पिछले सालों में बैंकों ने जर्मनी में हर साल हजारों नई मशीनें लगाई हैं ताकि लोगों को आसानी से नगदी मिल सके, लेकिन अब उनकी तादाद कम हो रही है। जर्मन बैंकों के संगठन के अनुसार 2017 के अंत में देश भर में करीब 58,500 मशीनें लगी थीं जबकि 2015 में उनकी संख्या 61,000 से ज्यादा थी।
 
एटीएम मशीनों में कमी की वजह एक तो डिजीटाइजेशन है तो दूसरी ओर बचत का बढ़ता दवाब, खासकर देहाती इलाकों में जहां प्रति एटीएम इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या कम है। दक्षिणी जर्मन प्रांत बवेरिया के सहकारी बैंकों के संघ के युर्गेन ग्रोस के अनुसार एक मशीन को चलाने का खर्च साल में 20,000 से 25,000 यूरो आता है। अगर इतनी कमाई न हो तो एटीएम रखना घाटे का सौदा हो जाएगा।
 
 
जर्मनी में पहली एटीएम मशीन 1968 में ट्युबिंगन शहर में लगाई गई थी। 1994 तक इनकी संख्या पूरे जर्मनी में बढ़कर करीब 30,000 हो गई। बीस साल बाद 2015 तक ये संख्या दोगुनी हो गई। अब भले पिछले दो सालों में इसमें करीब 3,000 की कमी आई है, लेकिन लोगों के लिए नगदी निकालने की संभावना कम नहीं हुई है।
 
एक तो सारा घरेलू काम ऑनलाइन हो जाता है, या तो बैंक ट्रांसफर से या फिर मकान मालिक, बिजली और टेलिफोन कंपनियां बिल खुद ले लेती हैं। साथ ही पिछले दिनों में ऑनलाइन कारोबार तेजी से बढ़ा है और सुपर बाजारों और दुकानों ने कार्ड पेमेंट को बहुत आसान कर दिया है। बहुत सी दुकानों में अब क्रेडिट कार्ड से पेमेंट के अलावा 200 यूरो तक की रकम भी ली जा सकती है और इसके लिए कोई फीस भी नहीं देनी पड़ती।
 
 
बाजार में पेमेंट के तरीके में बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से एटीएम मशीनों की जरूरत और कम होगी। लेकिन ये सारा सिस्टम भी बहुत लंबा नहीं चलेगा। म्यूनिख की कंपनी वायरकार्ड का मानना है कि जल्द सारा पेमेंट मोबाइन फोन के जरिए होना शुरू हो जाएगा।
 
ऐसा इसलिए है कि खुदरा व्यापारियों के लिए नकद लेने का मतलब खर्च होता है, उसे लेने, रखने और फिर बैंक में जमा करने का खर्च। ऐप की मदद से पेमेंट करना चीन में आम हो चुका है। वित्तीय संस्थानों में काम करने वाले बहुत से लोगों का मानना है कि भले ही अब ही 85 फीसदी कारोबार नकदी में होता हो, लेकिन जर्मनी में भी जल्द ही लोग नकदी की परवाह करना बंद कर देंगे।
 
 
एटीएम का महत्व घटने में अपराधियों की भी भूमिका है। जर्मनी में अपराध भले ही कम हों लेकिन एटीएम से पैसा लूटने या छोटी जगहों पर मशीनों के साथ तोड़फोड़ की घटनाएं यहां भी होती है। इसकी वजह से बैंकों का बीमा का खर्च को बढ़ता ही है, मशीनों को फिर से लगाने पर भी खर्च होता है। हालांकि बैंकों का संघ नहीं मानता कि जर्मनी में एटीएम जल्द खत्म होंगे, उनकी तादाद लगातार घटेगी, इसमें कोई संदेह नहीं।
 
 
रिपोर्ट महेश झा

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