भविष्य में नहीं रहेंगे केले

Webdunia
सोमवार, 21 दिसंबर 2015 (12:02 IST)
क्या आप सोच सकते हैं कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब केले सिर्फ किस्से कहानियों में ही बचेंगे? लगता है वह दिन अब बहुत दूर नहीं है।
नीदरलैंड्स के रिसर्चरों ने एक नया शोध किया है जिसके अनुसार भविष्य में केले की सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली किस्म लुप्त हो जाएगी। इसे कैवेंडिश कहा जाता है। रिसर्चरों के अनुसार 'पनामा डिजीज' इन्हें पूरी तरह नष्ट कर देगा।
 
1960 के दशक में इस बीमारी के कारण 'ग्रॉस मिशेल' नाम की केले की किस्म को भारी नुकसान हुआ था। दरअसल केले के पौधे को यह बीमारी फंगस के लगने से होती है। टीआर4 नाम का फंगस केलों के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। वैज्ञानिकों को डर है कि जल्द ही यह फंगस लातिन अमेरिका तक पहुंच जाएगा। यहीं दुनिया के 80 फीसदी कैवेंडिश केले उगाए जाते हैं।
 
टीआर फंगस की पहचान पहली बार 1994 में हुई। ताइवान में केलों के खेत खराब होने पर जब शोध हुआ, तब तीन दशक बाद जा कर उसकी असली वजह, टीआर फंगस का पता चला। टीआर4 एक ऐसा फंगस है जो 30 साल तक मिट्टी में बिना किसी हरकत के रह सकता है और फिर अचानक से सक्रिय हो कर पूरे खेत को नुकसान पहुंचाता है। ये पौधे को इस हद तक सुखा देता है कि वह पानी की कमी से मर जाता है। ताइवान के बाद यह पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में फैला। 2013 के बाद से यह जॉर्डन, लेबनान, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया गया है।
 
बाजार में उपलब्ध केलों को जिस तरह से उगाया जाता है, उनमें खुद को बीमारियों से बचाने की क्षमता काफी कम होती है। इसीलिए वैज्ञानिकों को डर है कि ये केले खुद को फंगस से बचा नहीं पाएंगे और इनका पूरी तरह सफाया हो जाएगा। दुनिया से केलों का नामोनिशान मिट जाए, इससे पहले ही वे ऐसी नई किस्म बनाना चाहते हैं जिसकी रोग प्रतिरोधी क्षमता अच्छी हो। रिपोर्ट में लिखा गया है, '1960 के दशक में कैवेंडिश ने ग्रॉस मिशेल की जगह ली थी। अब हमें एक नई किस्म की जरूरत है जो कैवेंडिश की जगह ले सके।'
 
लेकिन इसके लिए नए सिरे से काम करना होगा। इसमें भारी निवेश की भी जरूरत पड़ेगी और अंत में केले की इस नई किस्म की कीमतें भी काफी ज्यादा होंगी। हालांकि इस पर काम शुरू होना अभी बाकी है। अगर वक्त रहते कुछ नहीं किया गया, तो भविष्य में केले सिर्फ किस्से कहानियों में ही नजर आया करेंगे।
 
रिपोर्ट:- एफा वुटके/आईबी
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