‘दुर्लभ फैसला’: चार किसानों ने खनन कंपनियों को अदालत में हराया

DW
सोमवार, 20 दिसंबर 2021 (07:56 IST)
खनन कंपनियों के कारण अपनी आजीविका खो चुके चार किसानों ने एक ऐतिहासिक लड़ाई जीती है। अदालत ने ‘दुर्लभ फैसले’ में कंपनियों को सजा सुनाई है।
 
संबलपुर के मनबोध बिस्वाल को उम्मीद है कि उनकी जमीन अब पहले जैसी उपजाऊ हो पाएगी और उन्हें सिंचाई के लिए प्रदूषित नहीं साफ पानी मिलेगा। बिस्वाल और उनके तीन साथियों ने कोर्ट में दो बड़ी निजी कंपनियों को हराकर एक ऐसी लड़ाई जीती है, जिसका असर उनके जैसे लाखों किसानों पर पड़ सकता है।
 
इसी महीने नेशनल ग्रीन ट्राइब्न्यूनल ने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और रायपुर एनर्जेन को तालाबिरा-1 कोयला ब्लॉक की सफाई के लिए 10 करोड़ रुपये जमा कराने का आदेश दिया है। यह ब्लॉक 2018 में बंद हो गया था। 65 साल के बिस्वाल कहते हैं, "हमारे चारों तरफ खदानें हैं जिन्होंने हमारी जमीन, हवा और पानी सब बर्बाद कर दिया है। इस लड़ाई को मैं दस साल से लड़ रहा हूं और आखिर उम्मीद की एक किरण नजर आई है कि जो थोड़ा बहुत बचा है उसे हम बचा पाएंगे और फिर से खेती कर पाएंगे।"
 
दोनों ही कंपनियों के वकीलों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किन इस फैसले के खिलाफ अपील करने पर विचार कर रहे हैं। मुकदमे के दौरान कंपनियों ने दलील दी थी कि उन्होंने खनन के दौरान सारे नियमों का पालन किया था।
 
दुर्लभ है फैसला
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है। हालांकि दुनियाभर में कोयले को अब बुरी नजर से देखा जाने लगा है और कई बड़े देश अपने यहां कोयले का इस्तेमाल बंद कर रहे हैं लेकिन भारत ने आने वाले कुछ दशकों तक कोयला उत्पदान और इस्तेमाल जारी रखने की बात कही है।
 
एक तथ्य यह भी है कि 2008 से भारत में 123 कोयला खदानें बंद हुई हैं। लेकिन इन खदानों के बंद होने के बाद उन जगहों का पर्यावरण बेहतर हुआ या नहीं, इस बारे में कोई ठोस सबूत उपलब्ध नहीं है। बिस्वाल के वकील सौरभ शर्मा ने एनजीटी के फैसले को इन प्रभावित समुदायों के पुनर्स्थापन की दिशा में एक नए युग की शुरुआत बताया।
 
शर्मा कहते हैं, "कंपनियों को इस तरह सजा मिलना बहुत दुर्लभ है। यह फैसला खदानों के इर्द-गिर्द रहने वाले समुदायों की समस्याओं को भी मान्यता देता है। हम उम्मीद करते हैं कि बिस्वाल और अन्य किसान अपने वातावरण और आजीविका के रूप में जो कुछ खनन के हाथों खो चुके हैं, उसका कुछ हिस्सा वापस पा सकेंगे।”
 
विकास किसका हुआ?
बिस्वाल का घर संबलपुर जिले में हैं जहां खनिज भरपूर मात्रा में हैं। देश में ऐसे तमाम खनिज प्रधान इलाकों में बीते दशकों में आर्थिक और सामाजिक विकास नाममात्र को हुआ है और ये देश के सबसे गरीब और सबसे प्रदूषित इलाकों में शामिल हैं।
 
सखी ट्रस्ट नामक संस्था चलाने वालीं एम भाग्यलक्ष्मी कहती हैं कि खनन से प्रभावित समुदायों का पुनर्स्थापन सिर्फ एक दिखावा है। वह बताती हैं, "खदानों के बंद हो जाने के बाद भी समुदाय बेचारे ही रह जाते हैं और उन्हें पीने के साफ पानी जैसी मूलभूत चीजें भी नहीं मिल पातीं।”
 
रीब समुदायों की मदद के लिए स्थापित विशेष फंड आमतौर पर खर्च ही नहीं होता लिहाजा खनन प्रभावित क्षेत्र अविकसित रहते हैं। बिस्वाल इस बात की ताकीद करते हैं कि उनके समुदाय को खनन से कोई लाभ नहीं हुआ।
 
वह बताते हैं, "पहले हम साल में दो फसल उगाते थे। अब मुश्किल से कुछ सब्जियां उगा पाते हैं। खदानों से निकली मिट्टी से खड़े हुए पहाड़ों ने खेतों तक पहुंचना मुश्किल कर दिया है। हर जगह कोयले की धूल है। सिंचाई का पानी प्रदूषित हो चुका है।”
 
कैसे बंद हो खदान?
ट्राइब्यूनल ने सरकार को आदेश दिया है कि विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाए जो तालाबिरा-1 ब्लॉक में प्रभावितों को मुआवजा तय कर सके। समिति को तीन महीने के भीतर जीर्णोद्धार योजना भी तैयार करनी होगी। शर्मा बताते हैं कि बिस्वाल जैसे प्रभावित किसान समिति से अपने नुकसान के लिए मुआवजा मांग सकते हैं।
 
कोई भी कंपनी जब किसी कोयला खदान को बंद करती है तो उसके एक साल पहले उसे बताना होता है कि क्षेत्र का जीर्णोद्धार कैसे होगा, और इसके लिए पेड़ लगाने आदि जैसे क्या क्या कदम उठाए जाएंगे।
 
एनएफआई की रिपोर्ट तैयार करने वालों में शामिल काव्या सिंघल कहती हैं कि जब भी कोई खदान बंद होती है तो सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले वहां के मजदूर और आसपास रहने वाले समुदाय ही होते हैं। वह कहती हैं, "जब भी किसी कोयला खदान को बंद किया जाए तो सबसे पहला कदम उस क्षेत्र में मौजूद सारे खतरों को दूर करना होना चाहिए क्योंकि खनन के दौरान इलाके की हवा, पानी और जमीन बर्बाद हो चुकी होती है।”
 
कोल कंट्रोलर्ज ऑर्गनाइजेशन खदानों के बंद होने से जुड़े मामलों के लिए जिम्मेदार है। इस संबंध में ऑर्गनाइजेशन को खनन कंपनियों की जिम्मेदारी के संबंध में कुछ सवाल भेजे गए थे जिनका उन्होंने जवाब नहीं दिया।
 
वीके/एए (रॉयटर्स)
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

अभिजीत गंगोपाध्याय के राजनीति में उतरने पर क्यों छिड़ी बहस

दुनिया में हर आठवां इंसान मोटापे की चपेट में

कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान

पुतिन ने पश्चिमी देशों को दी परमाणु युद्ध की चेतावनी

जब सर्वशक्तिमान स्टालिन तिल-तिल कर मरा

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

अगला लेख