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बिहार: महागठबंधन में सीटों का मसला क्यों नहीं सुलझ रहा है?

बिहार में टिकटों के बंटवारे पर अब भी ऊहापोह है। टिकटों को बेचने के आरोप भी लगे, बगावत भी हुई। उम्मीदवारों के चयन को लेकर एनडीए में भी असहमति और असंतुष्टि दिखी, लेकिन महागठबंधन में तो अभी भी 12 सीटों पर तकरार कायम है।

DW
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025 (07:54 IST)
मनीष कुमार, पटना
बिहार में 18 जिलों की 121 सीटों पर पहले चरण के चुनाव के लिए 1,314 प्रत्याशी मैदान में हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर नामांकन खत्म हो चुका है। पर्चों की जांच में 1,871 उम्मीदवारों का नामांकन पत्र सही पाया गया है। इस चरण के लिए 23 अक्टूबर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे।
 
पहले चरण के लिए छह नवंबर को मतदान है। इस चरण में नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 20 अक्टूबर थी। महागठबंधन के घटक दलों में खींचतान की वजह से अंतिम दिन ही इनकी सूची सामने आई। राजद को 143, कांग्रेस को 61, वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) को नौ और वाम दलों को 30 सीटें मिली हैं।
 
उलझन इतनी है कि प्रदेश विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, लेकिन महागठबंधन की ओर से 254 प्रत्याशी मैदान में हैं। वीआईपी ने नौ की बजाय 15, सीपीआई ने छह की जगह नौ और सीपीएम ने चार नहीं, बल्कि छह उम्मीदवार घोषित किए हैं। संभव है कि नाम वापस लेने के आखिरी दिन यह स्थिति ना रहे और कुछ उम्मीदवारों के नामांकन वापस ले लिए जाएं।
 
फिलहाल, 12 जगहों पर महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। आरजेडी- कांग्रेस छह, कांग्रेस-सीपीआई चार, और आरजेडी-वीआईपी दो सीटों पर आमने-सामने हैं। इनमें आधा दर्जन सीटें पहले चरण कीं और दूसरे चरण की पांच सीटें हैं।
 
भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं, "महागठबंधन के दलों के बीच फ्रेंडली फाइट नहीं होनी चाहिए। उम्मीद है, नामांकन की वापसी तक सब ठीक हो जाना चाहिए। यहां कोई भ्रम नहीं है।"
 
जेडीयू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने कहा, "राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते महागठबंधन खंड-खंड हो गया है। इनकी खोखली एकता का ढोंग जनता के सामने उजागर हो चुका है। असल में कांग्रेस और आरजेडी अपने-अपने राजनीतिक हितों की चिंता में व्यस्त हैं। महागठबंधन के बिखराव के रूप में इसका परिणाम सामने है।"
 
कांग्रेस ने क्या कहा?
महागठबंधन में एकता पर उठ रहे सवालों के बीच कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बुधवार, 22 अक्टूबर को पटना पहुंचे। उन्होंने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की। अशोक गहलोत ने मीडिया से कहा कि सब ठीक है, पांच-सात सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' है। उन्होंने कहा कि एक -दो दिन में सारे भ्रम दूर हो जाएंगे। गहलोत के मुताबिक, यह मतभेद नहीं बल्कि लोकतांत्रिक जोश है।
 
22 अक्टूबर को ही राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने एक प्रेस कांफ्रेंस में पांच बड़े एलान किए। तेजस्वी यादव ने कहा कि सभी जीविका दीदियों को दो हजार रुपये मासिक भत्ता और उनके कम्युनिटी मोबलाइजर को 30 हजार रुपये के मासिक वेतन पर पक्की सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। उन्होंने ठेके पर नियुक्त संविदा कर्मियों को भी स्थायी करने की घोषणा की। इसके अलावा उन्होंने एमएए (मकान,अन्न और आमदनी) तथा बीईटीआई (बेनिफिट, एजुकेशन,ट्रेनिंग, इनकम) योजना का भी एलान किया।
 
क्या महागठबंधन में समन्वय की कमी है?
मधेपुरा जिले की आलमनगर सीट पर एक ही उम्मीदवार नवीन कुमार ने पहले आरजेडी और फिर वीआईपी के चिह्न पर नामांकन किया। उन्हें पहले आरजेडी ने सिंबल दिया। इनके नामांकन के बाद यह सीट समझौते के तहत वीआईपी के खाते में चली गई। फिर नवीन कुमार ने वीआईपी के सिंबल पर नामांकन का पर्चा दाखिल किया। बाद में आरजेडी के सिंबल पर इनका नामांकन रद कर दिया गया।
 
मधेपुरा जिले की आलमनगर सीट पर भी यही हाल दिखा। लगभग यही तस्वीर दरभंगा जिले की गौड़ाबौराम सीट का है। यह सीट पहले आरजेडी के खाते में गई थी। उसके उम्मीदवार अफजल अली खान ने पर्चा दाखिल कर दिया। बाद में यह सीट वीआईपी को दे दी गई। यहां से वीआईपी के संतोष सहनी ने नामांकन किया।
 
अब संतोष चुनाव आयोग के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के लिखित अनुरोध के बावजूद अफजल का नामांकन रद्द नहीं किया गया। नामांकन वापसी की अंतिम तारीख बीत जाने के बाद अब दोनों ही मैदान में हैं। इससे दोनों ही दलों के कार्यकर्ता परेशान हैं। 
 
हालांकि, आरजेडी ने अपने एक्स हैंडल पर एक-दूसरे की सीट पर उम्मीदवार देने की बातों का खंडन करते हुए ऐसी बातों को सच्चाई से मीलों दूर बताया है। उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने पहले महागठबंधन से नाता तोड़ने और फिर बिहार में चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की। टिप्पणीकारों के मुताबिक, इस प्रकरण से भी महागठबंधन की आपसी कड़वाहट खुलकर सामने आ गईं।
 
जेएमएम ने आरजेडी और कांग्रेस पर राजनीतिक साजिश का आरोप लगाया। जेएमएम के वरिष्ठ नेता व मंत्री सुदीव्य कुमार ने कहा, "आरजेडी और कांग्रेस ने साजिश कर चुनाव लडऩे से हमें वंचित कर दिया है। जेएमएम इस अपमान का जवाब देगी और गठबंधन की समीक्षा करेगी।"
 
टिकट बंटवारे पर हंगामा
शायद ही कोई दल हो, जिसमें टिकटों के बंटवारे में बंदरबांट का आरोप न लगा हो। कांग्रेस और आरजेडी में तो टिकटों की बिक्री को लेकर खूब हंगामा हुआ। पूर्णिया जिले की कसबा सीट से वर्तमान विधायक आफाक आलम का टिकट कटने के बाद बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावारू, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और पार्टी के विधानमंडल दल के नेता शकील अहमद खान पर टिकट के बदले पैसे लेने के आरोप लगाए।
 
राजेश राम के साथ उनकी बातचीत के कथित वायरल आडियो में हाथी-घोड़ा सब तरह का खेल होने की बात कही जा रही। टिकटों के वितरण में धांधली का आरोप लगाकर बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के रिसर्च विभाग के अध्यक्ष व प्रवक्ता आनंद माधव ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। कई अन्य नेताओं के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने आरोप लगाया कि कई पुराने और जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को मौका दिया गया, जो आर्थिक रूप से मजबूत थे या फिर जिनकी पहचान ऊपर तक थी।
 
कुछ ऐसा ही हाल आरजेडी का भी था। राजद नेता मदन शाह ने टिकट नहीं मिलने पर राबड़ी देवी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया। कुर्ता फाड़कर जमीन पर लेट गए और रोते हुए लालू यादव और तेजस्वी यादव पर टिकट बेचने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि टिकट के बदले उनसे पैसे मांगे गए, और पैसे ना देने पर उनका टिकट काटकर डॉ। संतोष कुशवाहा को दे दिया गया।
 
आरजेडी की महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष रितु जायसवाल ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान दिया। पहले उन्हें टिकट दिए जाने की बात थी। टिकट वितरण को लेकर लग रहे आरोपों पर आरजेडी प्रवक्ता चित्तरंजन गगन कहते हैं, "जिस दल का जनाधार बड़ा है, वहां टिकट के दावेदारों की संख्या भी अधिक होगी। जबकि टिकट तो किसी एक को ही मिलेगा। गठबंधन में सीटों की संख्या भी सीमित है। जिन्हें टिकट नहीं मिला, वे भावावेश में आकर ऐसी बातें कहते हैं जिनका कोई मतलब नहीं है।"
 
टिकट ना मिलने या बेटिकट होने के कारण पहले चरण की 121 सीटों पर 24 बागी उम्मीदवार बड़े दलों का खेल बिगाड़ने को मैदान में हैं।
 
गठबंधन में उदार रही बीजेपी?
एनडीए में नामांकन से पहले मतभेद दूर होते दिखे। इस गठबंधन में बीजेपी और जेडीयू को 101-101, चिराग पासवान की एलजेपी को 29, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा) और जीतन राम मांझी की हम (हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा) को छह-छह सीटें मिली हैं।
 
सीटों के वितरण पर राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, "सीटों के बंटवारे से साफ है कि एनडीए में बीजेपी ने किसी भी तरह का खतरा मोल लेने की गुंजाइश नहीं छोड़ी। वजह साफ है, घटक दलों की नाराजगी केंद्र सरकार का गणित गड़बड़ कर सकती है। साथ ही, वह दूसरे क्षेत्रीय दलों को वह यह संदेश भी देना चाह रही है कि सबकी सलाह और सहमति से ही यह गठबंधन चल रहा है।"
 
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को तीसरी बार केंद्र की सत्ता तो मिल गई, लेकिन वह अपने बूते बहुमत का आंकड़ा नहीं हासिल कर पाई। इस लिहाज से नीतीश कुमार की जेडीयू की 12 और चिराग पासवान की एलजेपी की पांच सीटें काफी अहम हैं। भारतीय राजनीति के विश्लेषकों के अनुसार, यह भी एक वजह है कि बीजेपी सहयोगी घटक दलों के साथ शायद उतनी सख्त नहीं रही। वह यह मान रही कि बिहार की बात हो, तो चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे।
 
एके चौधरी कहते हैं, "बीजेपी का संदेश साफ है कि सब कुछ सहमति से हुआ, जो परिणाम आए उसके लिए बीजेपी नहीं, वह पार्टी ही जिम्मेदार होगी। इसलिए उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी तक को भी मनाने से बीजेपी ने गुरेज नहीं किया।"

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