स्कूलों में फैले कट्टरपंथ पर बहस

DW
गुरुवार, 4 सितम्बर 2014 (11:30 IST)
ब्रिटेन के स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां में खत्म हो गई। कुछ लोगों को चिंता है कि ब्रिटेन के स्कूल इस्लामिक कट्टरपंथियों के पैदा होने की जगह बन रहे हैं। विशेषज्ञ स्कूलों में स्पष्ट 'ब्रिटिश मूल्य' चाहते हैं।

इस साल की शुरुआत में कहा गया कि बर्मिंघम के सरकारी स्कूलों पर कब्जा करने का षडयंत्र कट्टरपंथी बना रहे हैं और वह इन स्कूलों को इस्लामिक मूल्यों पर चलाएंगे। आशंका है कि धार्मिक रुढ़िवादी गुटों के कुछ लोग संचालक मंडलों में शामिल हो रहे हैं और स्टाफ को धार्मिक व्यवहार के लिए बाध्य कर रहे हैं। इसमें लड़के-लड़कियों को अलग बिठाना और अनिवार्य प्रार्थना शामिल है।

स्कूलों की जांच करने वाले इंस्पेक्टर ऑफस्टेड ने बर्मिंघम के 21 स्कूलों की आपात जांच करवाई। अधिकतर स्कूल में तो कोई समस्या नहीं थी, लेकिन पांच स्कूलों का स्तर गिर कर सबसे खराब पर पहुंच गया। इसके बाद की गई जांच में सामने आया कि स्कूलों में वैसे तो हिंसक आतंकवाद को बढ़ावा देने के सबूत नहीं मिले हैं।

लेकिन जांच समिति के प्रमुख सर पीटर क्लार्क के मुताबिक, 'ऐसे बहुत लोग हैं जो स्कूलों और संचालन समितियों में प्रभावी पदों पर हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। और ये या तो कट्टरपंथी नजरिए का समर्थन करते हैं या फिर उन्हें रोकने की चुनौती में विफल हैं।'

क्लार्क की इस रिपोर्ट के बाद सरकार ने तेजी से नए नियम लागू किए जिसमें सरकारी और निजी स्कूलों को ब्रिटिश मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा गया। इसमें सहिष्णुता और सभी धर्मों का पालन करने वालों के प्रति आदर शामिल है। हालांकि ब्रिटेन में यह भी मांग की गई कि बर्मिंघम के अलावा दूसरे अलग-थलग रहने वाले इस्लामी समुदायों वाले इलाकों में भी स्कूलों की जांच की जानी चाहिए। इन इलाकों में ब्रैडफर्ड, टॉवर हैमलेट्स शामिल हैं।

मुश्किल चुनौती : ऐसे कई इलाके हैं जहां मुसलमान खुद को कटा हुआ महसूस करते हैं। बर्मिंघम सिटी यूनिवर्सिटी के अपराध विशेषज्ञ डॉ. इमरान आवान कहते हैं, 'आप समुदायों को अकेला और अलग कर सकते हैं। वे बहिष्कृत और अधिकारहीन महसूस करते हैं और खुद को इस बुलबुले में बंद कर लेते हैं, उन्हें लगता है कि उन्हें संदिग्ध समुदाय के तौर पर देखा जा रहा है।'

बर्मिंघम के जिन स्कूलों के प्रति चिंता जताई गई वहां 90 फीसदी बच्चे मुस्लिम परिवारों से आते हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं की दलील है कि स्कूलों में धर्म की पढ़ाई इन बच्चों का उत्साह और उपलब्धि बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी। लेकिन मीडिया में इसे बहुत ही आक्रामक तरीके से और घृणा फैलाने वाली पढ़ाई के तौर पर पेश किया गया।

आतंक की पाठशाला? : बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि ऐसा संकेत देना सही नहीं है कि बर्मिंघम के स्कूल आतंक की पाठशाला हैं। हालांकि ऐसी कई रिपोर्टें हैं जिनका सार यह निकलता है कि बच्चों को दुनिया की बहुत ही संकीर्ण तस्वीर दिखाई जाती है जिससे भविष्य में वो कट्टरपंथ की ओर बढ़ सकते हैं।

यह मुद्दा अभी ब्रिटेन में काफी ज्वलंत है क्योंकि वहां के कई युवा आइसिस के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन सभी को एक ही नजर से देखने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बर्मिंघम लेडीवुड से लेबर पार्टी की सांसद शबाना महमूद कहती हैं, 'एक धर्म में रुढ़िवाद है और एक में चरमपंथ, ये तो बिलकुल अलग हैं। इन दोनों को जोड़ने से लोगों में सवाल पैदा होता है कि वे कौन हैं, क्या हैं और उनकी अपने देश में क्या जगह है। और मुझे लगता है कि यह सभी के लिए खतरनाक है।'

रिपोर्टः समीरा शैकल, बर्मिंघम/एएम
संपादनः ईशा भाटिया
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