ईरानी नेताओं को चिंता में डालती देश की गिरती जन्म दर

Webdunia
बुधवार, 5 अगस्त 2020 (14:29 IST)
रिपोर्ट शबनम फॉन हाइन
 
परिवार और नौकरी के बीच संतुलन की कोशिशों में मदद देने के तमाम उपायों के बावजूद ईरानी सरकार युवाओं को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता तक इसे लेकर हैरान-परेशान हैं।
 
8 साल से खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रही ईरान की साराह कहती हैं कि मुझे बच्चा नहीं चाहिए। उनका मानना है कि बच्चा बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और मुझे वह नहीं लेनी है। शायद इसलिए कि मैं खुद अब तक अपने जीवन में लगातार चलती रही प्रतिस्पर्धा से नहीं उबर पाई हूं। 38 वर्षीय साराह राजधानी तेहरान में रहती हैं और एक बड़ी फूड कंपनी में नौकरी करती हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में साराह ने बताया कि उनके लिए पैसा कोई समस्या नहीं है।
 
साराह खुद ईरान की उस पीढ़ी की उपज हैं, पूरी दुनिया में जिसे बेबी-बूमर्स की पीढ़ी कहा जाता है। उनका जन्म सन् 1979 की क्रांति के बाद हुआ। 1980 के दशक में ईरान की जन्म दर पूरे विश्व की सबसे ऊंची दरों में शामिल थी। जनसंख्या विस्फोटक रफ्तार से बढ़ रही थी। सन् 1979 में देश की आबादी 3.7 करोड़ थी। हालांकि परिवार नियोजन का नियम था लेकिन धार्मिक लोगों का मानना था कि ऐसा करना इस्लाम के खिलाफ है।
 
धार्मिक नेता मध्य-पूर्व में ईरान को एक बड़े, ताकतवर व शियाओं के प्रभुत्व वाले देश के रूप में स्थापित करने का सपना देखते थे। 1980 के दशक में इराक के साथ चले लंबे खूनी युद्ध के दौरान ईरानी प्रशासन महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करता था। इन्हीं सालों में साराह और उनके 3 और भाई-बहन पैदा हुए। वे बताती हैं कि उनके घर में कोई कमी नहीं थी लेकिन स्कूल, कॉलेज से लेकर नौकरी तक में एक जगह पाने के लिए इतनी प्रतिस्पर्धा थी जिसके कारण एक तरह की असुरक्षा की भावना उनके अंदर अब तक है। वे बताती हैं कि स्कूलों में शिफ्ट में कक्षाएं चलानी पड़ती थीं, क्योंकि सभी बच्चों को एकसाथ पढ़ाना संभव नहीं था। 
 
आबादी को लेकर नजरिया क्यों बदला?
 
पिछले 41 सालों में ईरानी आबादी दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है यानी 1979 के 3.7 करोड़ के मुकाबले अब के 8.4 करोड़। इस बढ़ोतरी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य सिस्टम पर बढ़े बोझ को देखते हुए सरकार ने समझा कि इसमें निवेश करने की कितनी ज्यादा जरूरत है। दिसंबर 1988 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि परिवार नियोजन करना इस्लामसम्मत है और तब से परिवार नियोजन के नए कार्यक्रमों की रूपरेखा बननी शुरू हुई।
 
हर परिवार के औसतन 3 बच्चे पैदा करने की दर से देश में सुविधाएं वितरित करने की कोशिश शुरू हुई। आधुनिक गर्भनिरोधक बंटवाना, काउंसलिंग की सुविधा देना और इस बारे में शिक्षित करने के इंतजाम करना प्रारंभ हुआ। इन कोशिशों का असर ऐसा हुआ कि 2010 आते-आते प्रति महिला जन्म दर 5.1 से 1.7 पर आ गई। बीते कुछ सालों से इसमें सालाना और थोड़ी गिरावट आ रही है।
 
ईरान के सर्वोच्च नेता खमेनेई लंबे समय से अपने इस्लामी गणराज्य में गिरती जन्म दर पर चिंता जताते आए हैं। साल 2012 में उन्होंने देश में परिवार नीतियां बदलकर आबादी को बढ़ाने की कोशिश भी की थी। उन्होंने परिवार नियोजन से जुड़ी जानकारी देने वालीं संस्थाओं और गर्भनिरोधक सेवाओं की फंडिंग रोक दी। इसके 2 साल बाद ही खमेनेई ने घोषणा कर दी कि देश की जन्म दर को बढ़ाना एक अहम रणनीतिक लक्ष्य है।
 
केवल फैमिली-फ्रेंडली होना काफी नहीं
 
इस घोषणा के समय से देश में कई फैमिली-फ्रेंडली कदम उठाने का क्रम शुरू हो गया। मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 9 महीने किया गया तथा गर्भवती महिलाओं को जब भी जरूरत हो, बीमारी के नाम पर छुट्टी लेने की व्यवस्था की गई। जिन लोगों के परिवार में बच्चे हैं, उन्हें बिजनेस के लिए कर्ज लेने तक में वरीयता देने की व्यवस्था की गई। इन नियमों का प्रचार-प्रसार करने में पूरी सरकारी मशीनरी लगी रही फिर भी युवा लोगों का इरादा बदलने में वे ज्यादा असरदार साबित नहीं हुए। ईरानी आबादी की औसत उम्र मात्र 31 साल है और ज्यादातर युवा ढेर सारे बच्चों वाला परिवार नहीं चाहते। 
 
इसके अलावा देश में बहुत बड़े स्तर पर गांवों से शहरों की ओर लोगों ने पलायन किया है और शहरों में भीड़ बढ़ गई है। अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों का बोझ और करीब 30 सालों से सूखे की मार झेलने के कारण देश के ज्यादातर नागरिक कई तरह की चुनौतियां झेल रहे हैं। ऐसे में साराह की तरह सोचने वाले ऐसे कई लोग हैं, जो अपने बच्चों को ऐसे माहौल में पैदा ही नहीं करना चाहते हैं।

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