बेरोजगारों की फौज खड़ी करता जलवायु परिवर्तन

DW
रविवार, 14 जुलाई 2024 (07:37 IST)
थोड़ा पैसा कमाने के लिए मोरक्को के मुस्तफा ने 280 किलोमीटर की लंबी सड़क यात्रा की। मंजिल पर पहुंचे तो पता चला कि सूखा, उनकी तरह कई लोगों को बर्बाद कर चुका है।
 
मोरक्को की राजधानी रबात के उत्तर में दार बेल अमरी नाम का एक गांव है। गांव के चारों तरफ बड़े बड़े खेत हैं। 40 साल के मुस्तफा लोबौई अपना कम्बाइन हार्वेस्टर लेकर वहां फसल काटने के लिए पहुंचे। तीखी गर्मी और ऊपर से हार्वेस्टर की धीमी रफ्तार के कारण मुस्तफा को दार बेल अमरी पहुंचने में पूरा दिन लग गया। गांव के करीब पहुंचते ही उन्हें सड़क किनारे खाली बैठे ऐसे कई कामगार दिखने लगे जिन्हें खेतों में होना चाहिए था। जल्द ही मुस्तफा को अहसास हो गया कि अब वह भी नुकसान झेलेंगे। शायद वह डीजल का खर्चा भी नहीं निकाल सकेंगे।
 
उसी गांव में रहने वाले शलिह एल बगदादी भी मुस्तफा की तरह बेचैन और परेशान हैं। इस बार पूरा सीजन वह घर पर ही बैठे रहे। खेतों में की गई उनकी सारी मेहनत, फसल की तरह मुरझा गई। पांच बच्चों के साथ अब शलिह, अपनी पत्नी की कमाई पर निर्भर हैं। पत्नी 70 किलोमीटर दूर एक बड़े फार्म में काम करती है, जहां हालत इतनी बुरी नहीं है।
 
जलवायु परिवर्तन ने बेरोजगार बनाया
मोरक्को सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2023 से अब तक, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले करीब 1,59,000 कामगार बेरोजगार हो चुके हैं। मुस्तफा और शलिह को डर है कि जल्द ही वे भी इन आंकड़ों का हिस्सा बन जाएंगे। मुस्तफा कहते हैं, "सूखे की वजह से काम मिलना बहुत ही मुश्किल हो गया है।"
 
मोरक्को में काम करने वाली एक तिहाई आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। देश की जीडीपी में 14 फीसदी हिस्सेदारी कृषि निर्यात की है। लेकिन देश के कई इलाके बीते छह साल से सूखे का सामना कर रहे हैं। मोरक्को के कृषि मंत्री मोहम्मद सादिकी के मुताबिक, कुछ वर्ष पहले तक ही, देश में करीब 40 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती थी, लेकिन अब पानी की कमी के कारण सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर जमीन ही उपज के लायक रह गई है।
 
घटती कृषि भूमि का असर लाखों लोगों पर पड़ रहा है। राजशाही से चलने वाला उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को में 2024 की पहली तिमाही में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 13.7 फीसदी पहुंच गई। सरकारी संस्था हाई प्लानिंग कमीशन (एचसीपी) के मुताबिक, 3.7 करोड़ की कुल जनसंख्या में 16 लाख लोग या तो बेरोजगार हैं या सूखे के कारण बुरी तरह प्रभावित हैं।
 
एक के बाद एक प्लान बनाती मोरक्को सरकार
मोरक्को ने 2008 में "ग्रीन मोरक्को प्लान" पेश किया। इसके तहत कृषि को बढ़ावा दिया गया। 10 साल के भीतर इसके जोरदार नतीजे दिखने लगे। देश का कृषि निर्यात 63 अरब दिरहम से 125 अरब दिरहम हो गया। लेकिन अब सूखा इस योजना की कमर तोड़ रहा है। फिलहाल निर्यात को फिर से 60 अरब दिरहम तक पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है।
 
इससे निपटने के लिए मोरक्को की सरकार अब जेनरेशन ग्रीन  2020-2023 चला रही है। योजना का मकसद जलवायु परिवर्तन के दौर में टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना है। कृषि इंजीनियर अब्देररहीम हांदौफ कहते हैं, हमारे पास आधुनिक और अति उन्नत कृषि तकनीकें हैं लेकिन ये सिर्फ 15 फीसदी ऊपजाऊ जमीन तक सीमित हैं। ज्यादातर किसान आज भी जलवायु परिवर्तन के रहम पर ही निर्भर हैं।
 
खेती का रोटी और रोजगार से रिश्ता
मोरक्को अपनी अर्थव्यवस्था को विविध बनाना चाहता है। बीते 20 साल में वहां उद्योग और सेवा क्षेत्र में काफी ध्यान दिया गया है। 2023 में मोरक्को ने रिकॉर्ड स्तर पर 141 अरब दिरहम की कारें निर्यात कीं।
 
इसी साल मई में एक रेडियो इंटरव्यू में मोरक्को के उद्योग मंत्री रयाद मेजूर ने कहा, उद्योग हर साल सिर्फ 90,000 नौकरियां पैदा कर पा रहा है, जबकि नौकरी चाहने वालों की संख्या तीन लाख है। मेजूर ने माना कि आर्थिक तंत्र में रोजगार मुहैया कराना अब भी एक कमजोर पहलू बना हुआ है।
 
सरकार का वादा है कि वह आने वाले बरसों में अक्षय ऊर्जा, टेलीकम्युनिकेशंस, टूरिज्म और हेल्थ सेक्टर में 1।4 लाख नौकरियां पैदा करेगी।
 
2026 के आस पास आने वाली इन नौकरियों को लेकर बेनैसा काओन बहुत उत्साहित नहीं हैं। वह 66 साल के हैं। वह कहते हैं कि उन्हें खेती के अलावा और कुछ करना आता ही नहीं है। अपने खेत में खड़े काओन आसमान को देखकर कहते हैं, "वर्षा के बिना कोई जीवन नहीं है।"
ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी)

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