मतदाताओं ने नफरत की राजनीति को नकारा

Webdunia
बुधवार, 12 फ़रवरी 2020 (12:12 IST)
दिल्ली के चुनाव भारत के लिए राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण हैं। एक ओर इसने दिखाया है कि लोग नफरत की राजनीति को अस्वीकार करते हैं तो दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियों के विकास के नारों को गंभीरता से लेते हैं।
 
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भारी जीत इस बात का संकेत है कि मतदाता नारों से ज्यादा हकीकत पर ध्यान दे रहा है। दिल्ली की आप सरकार की शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली पानी नीति को लोगों का समर्थन मिला है।
ALSO READ: अरविंद केजरीवालः आईआईटी के ख़ामोश छात्र से दिल्ली के एंग्री यंग मैन तक
बीजेपी के नेताओं की राष्ट्रीय मुद्दों पर दिल्ली चुनाव लड़ने की रणनीति विफल हो गई है। भारतीय मतदाताओं को हमेशा से परिपक्व कहा जाता रहा है। दिल्ली की जनता ने दिखाया है कि राज्य के चुनावों में उसे स्थानीय मुद्दों की परवाह है, न कि राष्ट्रीय मुद्दों की।
इन चुनावों ने यह भी दिखाया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अजेय नेता नहीं हैं। उन्हें चुनौती दी जा सकती है। अरविंद केजरीवाल ने यही किया और वे कामयाब रहे।
 
बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश न कर मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने का दांव उलटा पड़ा। लोकसभा चुनावों के विपरीत उसे बहुत कम मत मिले। बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने जिस तरह वोटरों को बांटने और ध्रुवीकरण की कोशिश की, उसे भी लोगों ने पसंद नहीं किया और सिर्फ 7 सीटें थमाकर सजा प्रधानमंत्री को दी हैं।
ALSO READ: दिल्ली विधानसभा में पहुंचेंगे 16 नए चेहरे, सभी AAP विधायक
चुनाव के नतीजे राजनीतिक दलों के लिए सबक भी हैं। सबसे पहले बीजेपी के लिए। उसके नेताओं को नफरत की राजनीति करने के बदले मुद्दों की राजनीति करनी चाहिए, जो वह करने में सक्षम भी है। एक और राज्य के मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को संकेत दिया है कि उन्हें अपनी पार्टी पर असर डालने और उसे काबू में करने की कोशिश करनी चाहिए।
 
भारत को अत्यंत आधुनिक देश बनाने के उनके प्रयासों को उनकी पार्टी के छोटे नेता अपनी नफरतभरी बयानबाजी से तार-तार कर दे रहे हैं। असुरक्षा के माहौल में कोई निवेश नहीं करता और निवेश नहीं होगा तो नए रोजगार नहीं बनेंगे।
 
विपक्षी दलों के लिए भी दिल्ली के चुनावों का संदेश है कि वे दलगत राजनीति करने के बदले मुद्दों की राजनीति करें और लोगों को विकास की वैकल्पिक योजना पेश करें। एक ओर मीडिया लोकतंत्र में व्यक्तिवादी राजनीति का जोर बढ़ रहा है तो दूसरी ओर विरासत वाली राजनीति का दौर खत्म हो रहा है।
 
सबसे बढ़कर कांग्रेस को यह सोचना होगा कि यदि राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाकर रखनी है तो उसे युवा लोगों को राजनीति में लाना होगा और भविष्य की राजनीति करनी होगी। नहीं तो दिल्ली की तरह पूरे भारत में उसका अस्तित्व नहीं रहेगा।
 
-रिपोर्ट महेश झा

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

बांग्लादेश हिंसा पर RSS का बड़ा बयान, बंद हो हिंदुओं पर अत्याचार, चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई की मांग

समुद्र तट की ओर बढ़ा फेंगल, तमिलनाडु में भारी बारिश से जनजीवन प्रभावित

LIVE: महाराष्‍ट्र चुनाव पर EC की सफाई, कांग्रेस नेताओं को बैठक के लिए बुलाया

अगला लेख