कैसे बना जर्मनी शरणार्थियों की पहली पसंद

Webdunia
मंगलवार, 5 सितम्बर 2017 (15:09 IST)
जब शरणार्थी यूरोप का रुख कर रहे थे तब जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इनके लिये "ऑपन डोर पॉलिसी" अपनाई। मैर्केल की नीति ने शरणार्थियों के लिए तो राह आसान की वहीं विरोधियों को राजनीतिक जमीन दे दी। एक नजर पूरे मसले पर।
 
25 अगस्त 2015
जर्मनी ने सीरियाई लोगों के लिये डबलिन प्रक्रिया को निलंबित करने का निर्णय लिया। इसके तहत शरणार्थियों को यूरोपीय संघ के उन देशों में रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है जहां वे सबसे पहले दाखिल हुए थे। जर्मनी ने उन्हें उन देशों में वापस न भेजने का फैसला लिया।
 
31 अगस्त 2015
जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा कि "हम यह कर सकते हैं"। यह वही वक्त था जब शरणार्थी संकट यूरोप के लिए सबसे बड़ा नजर आ रहा था। मध्य-पूर्व में छिड़े युद्ध के कारण जर्मन सरकार ने सैकड़ों शरणार्थियों को संरक्षण प्रदान किया और मैर्केल ने इसे राष्ट्रीय कर्तव्य बताया।
 
4 सितंबर 2015
जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने हंगरी में फंसे शरणार्थियों के लिये सीमायें खोल दीं। म्यूनिख के मुख्य रेलवे स्टेशन पर जर्मन वालंटियर्स ने सैकड़ों शरणार्थियों का स्वागत किया। इसने जर्मनी की स्वागत करने की संस्कृति को उजागर किया और फिर क्या था, जर्मनी, यूरोप में शरण चाहने वालों का पंसदीदा देश बन गया।
 
13 सितंबर 2015
जर्मनी ने आस्ट्रिया के साथ सीमा नियंत्रण मजबूत करना शुरू किया। दोनों देशों के बीच दो घंटे तक ट्रेनों को रोक दिया गया। उस वक्त जर्मनी में हजारों शरणार्थी दाखिल हो रहे थे लेकिन जर्मनी के कई छोटे शहरों के लिये इससे निपटना आसान नहीं था।
 
15 अक्टूबर 2015
यूरोपीय संघ और तुर्की ने तुर्की से यूरोप आने वाले शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिये संयुक्त एक्शन प्लान तय किया। जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग ने शरणार्थी कानून में परिवर्तन किया और अल्बानिया, कोसोवो और मोंटेनिग्रो को सुरक्षित देश घोषित किया। इसके बाद इन देशों के शरणार्थियों को वापस भेजना संभव हुआ।
 
दिसंबर 2015
जर्मनी ने शरणार्थियों को जगह दी थी। आम लोग सामने आकर उनकी मदद कर रहे थे, लेकिन एक हिस्से में विरोध की भावना भी पनप रही थी। 2015 के अंत तक तकरीबन 8।90 लाख शरणार्थी जर्मनी में आ चुके थे।
 
मार्च 2016
स्लोवेनिया, क्रोएशिया, सर्बिया और मैसेडोनिया ने अपनी सीमाएं आप्रवासियों के लिये बंद कर दी। जर्मनी आने के लिये शरणार्थियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले बाल्कन मार्ग पर सख्ती कर दी गयी। इसी वक्त धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने तीन प्रांतीय चुनावों में सीटें जीती। यूरोपीय संघ और तुर्की ने ग्रीस पहुंचे आप्रवासियों को तुर्की वापस भेजने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया।
 
मई 2016
यूरोप में शरणार्थी बड़ी तादाद में आ गये थे, लेकिन कुछ देश उनके आने का पुरजोर विरोध कर रहे थे। इस वक्त यूरोपीय कमीशन ने एक अहम प्रस्ताव रखा। कमीशन का प्रस्ताव उन सदस्य देशों पर जुर्माना लगाने का था जो अपने कोटे के शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार नहीं थे।
 
जुलाई 2016
इस समय तक शरणार्थियों पर कुछ छुटपुट हमलों की भी खबर आई। 19 जुलाई को एक 17 वर्षीय अफगान शरणार्थी ने जर्मनी के वुर्त्सबर्ग के निकट एक ट्रेन में 20 यात्रियों पर चाकू से हमला किया। इसके छह दिन बाद एक सीरियाई शरणार्थी ने भी विस्फोटक डिवाइस का इस्तेमाल किया।
 
दिसंबर 2016
14 दिसंबर को जर्मनी ने कुछ अफगान शरणार्थियों को वापस भेज दिया। 19 दिसंबर को जर्मनी में शरण को इच्छुक ट्यूनीशिया के एक शख्स ने बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में ट्रक से हमला कर दिया। इसमें 12 लोग मारे गये थे और 56 घायल हुए। इन घटनाओं ने मैर्केल की शरणार्थी नीति को सवालों के घेरे में ला दिया।
 
फरवरी 2017
बर्लिन में हुए हमले के बाद चांसलर मैर्केल ने शरण लेने में असफल रहे लोगों को वापस भेजे जाने की नई योजना पेश की। इस योजना के केंद्र में अफगानिस्तान से आये लोग थे।
 
3 मार्च 2017
चांसलर अंगेला मैर्केल ने ट्यूनीशिया के साथ एक समझौता किया, इसके अंतर्गत 1500 ट्यूनीशियाई प्रवासियों को वापस भेजा जाना तय किया गया था।
 
11 अगस्त 2017
मैर्केल ने संयुक्त राष्ट्र रिफ्यूजी कमीशन के आयुक्त फिलिपो ग्रांडी से मुलाकात की और यूएनएचसीआर को 5 करोड़ यूरो की मदद का आश्वासन दिया। मैर्केल ने भूमध्य सागर के जरिये होने वाली मानव तस्करी से लड़ने वाले का भी समर्थन किया।
 
28 अगस्त 2017
मैर्केल ने यूरोपीय और अफ्रीकी नेताओं से मुलाकात कर आप्रवासियों के मुद्दे पर चर्चा की। इस मुलाकात में अफ्रीकी हॉटस्पॉट और रिसेप्शन सेंटर्स पर चर्चा हुई साथ ही शरणार्थियों के लिये अफ्रीकी विकल्प की संभावनाओं को भी खंगाला गया। (एए/वेस्ली डॉकरी)

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