-एसएम/वीएस (एएफपी, एपी)
एक नए अध्ययन के मुताबिक 2022 के मुकाबले पिछले साल जर्मनी के कार्बन उत्सर्जन में सवा 7 करोड़ टन से ज्यादा की गिरावट आई। इसकी वजह है कोयले के इस्तेमाल में आई कमी और ज्यादा ऊर्जा खर्च करने वाले उद्योगों में घटा उत्पादन। 2023 में जर्मनी का कार्बन उत्सर्जन पिछले करीब 70 वर्षों में सबसे कम रहा। एक नए अध्ययन के मुताबिक जर्मनी कोयले पर निर्भरता घटाने में अनुमान से ज्यादा तेजी से कामयाब हो रहा है।
2023 में जर्मनी ने करीब 67 करोड़ टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया। यह 2022 के मुकाबले करीब सवा 7 करोड़ टन कम उत्सर्जन था। यह जानकारी एनर्जी थिंक टैंक 'अगोरा एनर्गीवेंडे' ने दी है। अगोरा ने बताया, 'यह मात्रा 1950 के दशक से अब तक सबसे निचले स्तर पर थी।' यह आंकड़ा 1990 के मुकाबले 46 फीसदी कम है।
कोयले का इस्तेमाल घटा
अगोरा के मुताबिक उत्सर्जन कम होने की मुख्य वजह कोयला आधारित बिजली के उत्पादन में आई कमी है। हालांकि अगोरा ने चेताया भी कि जर्मनी को उत्सर्जन और घटाने पर काम करने की जरूरत है।
पिछले साल जर्मनी में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल भी काफी बढ़ा। पहली बार कुल बिजली उत्पादन का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल हुआ। कोयले से बनने वाली बिजली भी 34 फीसदी से घटकर 26 फीसदी पर आ गई। इस गिरावट की वजह बिजली की मांग में आई कमी और पड़ोसी देशों से आयात में वृद्धि भी है।
अगोरा के मुताबिक कोयले के कम इस्तेमाल के कारण कार्बन उत्सर्जन में साढ़े 4 करोड़ टन से ज्यादा की कमी आई। साथ ही, औद्योगिक क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन भी करीब 2 करोड़ टन घटा। जर्मनी साल 2030 तक पवन और सौर ऊर्जा स्रोत से 80 फीसदी बिजली का उत्पादन करना चाहता है। इससे आगे साल 2045 तक जर्मनी अपने उत्सर्जन को नेट जीरो पर लाना चाहता है।
जर्मनी को निवेश की जरूरत
अगोरा के प्रमुख सिमोन मूएलर ने कहा कि 2023 में अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल में आई तरक्की के साथ जर्मनी अपना लक्ष्य हासिल करने के करीब है। हालांकि, उद्योगों से हो रहे उत्सर्जन में अब भी 'टिकाऊ विकास' का लक्ष्य नहीं दिखता। मूएलर ने रेखांकित किया कि अपने जलवायु लक्ष्य हासिल करने के लिए जर्मनी को बहुत ज्यादा निवेश चाहिए। इसी क्रम में उद्योगों को आधुनिक बनाने और ऊष्मा संबंधी जरूरतों में कार्बन फुटप्रिंट घटाने पर भी जोर देने की जरूरत है।
जर्मनी ने अपने आखिरी 3 परमाणु बिजलीघर संयंत्रों को अप्रैल में बंद कर दिया था। हालांकि यूक्रेन युद्ध के बाद ऊर्जा संकट की गंभीर स्थिति के मद्देनजर कई जानकारों की राय है कि जर्मनी को परमाणु ऊर्जा की अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना चाहिए।
हालिया महीनों में जर्मनी की अर्थव्यवस्था में ठहराव आया है। यहां रसायन और धातु जैसे कई उद्योग हैं जिनमें काफी ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। ऊर्जा की बढ़ी कीमतों और ब्याज दरों में वृद्धि से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। औद्योगिक उत्पादन घटा है। ऐसे में कमजोर अर्थव्यवस्था और मंदी जर्मनी में बड़ी चिंता का विषय हैं।