जैवविविधता को नहीं बचाया गया तो मिट सकता है मानव का अस्तित्व

DW
बुधवार, 6 अप्रैल 2022 (08:20 IST)
रिपोर्ट : एलिस्टर वाल्श
 
जैवविविधता के नुकसान के कारण मानव के अस्तित्व पर संकट के बादल घिर आए हैं। दुनिया के अलग-अलग देश पेरिस जलवायु समझौते की तर्ज पर एक नया समझौता करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए मजबूत राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत है।
 
जैवविविधता के नुकसान की भरपाई करने के लिए वैश्विक स्तर पर समझौते की तैयारी चल रही है। इस समझौते को लेकर स्विट्जरलैंड के जिनेवा में 2 सप्ताह तक चली बातचीत का सत्र पिछले मंगलवार को संपन्न हुआ। समझौते को लेकर बातचीत थोड़ी आगे बढ़ी है। कई मुद्दों पर सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। हालांकि, पर्यवेक्षकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर जिस तरह से पेरिस समझौते के दौरान मजबूत राजनीतिक नेतृत्व सामने आया था उसी तरह इस मामले में भी राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत है, ताकि तत्काल जरूरी कदम उठाए जा सकें।
 
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के महानिदेशक मार्को लैम्बर्टिनी ने जिनेवा से डीडब्ल्यू को बताया कि यह कई मायनों में एक ऐतिहासिक क्षण हो सकता है। इसका हम लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि पिछले 2 हफ्तों में हमने जैवविविधता को बनाए रखने से जुड़ी कई जरूरी चीजों की तरफ महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया है। हालांकि, हमें इस दिशा में काफी ज्यादा आगे बढ़ने की जरूरत है।
 
लैम्बर्टिनी आगे कहते हैं कि जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमें एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत पड़ रही है, ताकि कुछ कठिन समस्याओं को हल किया जाए और आम सहमति बनाई जाए। इसलिए, हम देश के प्रमुखों, प्रधानमंत्रियों और पर्यावरण मंत्रियों को नेतृत्व करने के लिए बुला रहे हैं। ग्रीनपीस संस्था भी इसी तरह की मांग करती रही है।
 
कुनमिंग वार्ता से पहले एक और बैठक की घोषणा
 
जिनेवा की बैठक में न्यू ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के मसौदे को अंतिम रूप दिया जाना था। यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) के निर्देशों के तहत यह फ्रेमवर्क तैयार किया जाना है। इस साल के अंत में चीन के कुनमिंग में कॉप15 में जैवविविधता के मुद्दे पर अंतिम बातचीत होनी है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही थी कि 2 हफ्ते तक चली इस बातचीत में पर्याप्त बातें निकलकर सामने आएंगी जिन पर कुनमिंग में फैसला लिया जा सकता है।
 
हालांकि, देर से शुरू हुई बातचीत के एक और दौर के बाद चीजें साफ तौर पर सामने निकलकर नहीं आई हैं। दस्तावेज में कई बातें ब्रैकेट टेक्स्ट में लिखी गई हैं, वहीं अलग-अलग पैराग्राफ में अलग-अलग बातें कहीं गई हैं। दस्तावेज में लिखी गई बातें विरोधाभाषी हैं जिन्हें आने वाले समय में ठीक करना है। ऐसे में चीन के कुनमिंग में होने वाली बातचीत से पहले नैरोबी में एक बार फिर बातचीत की घोषणा की गई है, ताकि सभी जरूरी बिंदुओं को एक जगह इकट्ठा किया जा सके।
 
सीबीडी के उप कार्यकारी सचिव डेविड कूपर ने डॉयचे वेले को बताया कि दस्तावेज में जो बातें लिखी गई थीं वे वाकई में स्पष्ट नहीं थी, लेकिन यह प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और बातचीत की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत था।
 
उन्होंने सत्र के बीच कहा कि अच्छी बात यह है कि इनमें वे सभी चीजें शामिल हैं जिन्हें अलग-अलग पक्ष जैवविविधता से जुड़े लक्ष्यों में देखना चाहेंगे। उन्होंने आगे कहा कि हां, यह बात जरूर है कि बातचीत के दौरान कई बार कठिन हालात बने। हमें यह स्वीकार करना होगा कि अलग-अलग देशों के अलग-अलग विचार और सरोकार होंगे, भले ही वे सभी जैवविविधता संकट से जुड़ी चुनौती को दूर करना चाहते हों। इसलिए, मुझे लगता है कि देश अपने मतभेदों को रचनात्मक तरीके से सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
प्रकृति की जीत के लिए 2030 का लक्ष्य
 
लैम्बर्टिनी ने कहा कि इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि मसौदे के फ्रेमवर्क में 2030 के लक्ष्य को शामिल कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण और उम्मीद वाली बात यह है कि अब हमारे पास 'मिशन 2030' के समझौते का मसौदा तैयार है। सिर्फ कुछ देश ऐसे थे, जो 'विजन 2050' के बारे में पूछ रहे थे। स्पष्ट तौर पर कहें, तो यह भावनाओं को आहत करने वाला मजाक था।
 
उन्होंने कहा कि हमने बहुत मेहनत की। आखिरकार हम 'मिशन 2030' पर सहमत हुए। यह वास्तव में प्रकृति के लिए महत्वाकांक्षी वैश्विक लक्ष्य को समाहित करता है।
 
ज्यादा प्रगति नहीं
 
जिनेवा से ग्रीनपीस के लिए जैवविविधता से जुड़ी रणनीति बनाने वाली एन. लैम्ब्रेक्ट्स ने कहा कि बातचीत काफी निराशाजनक रही। उन्होंने कहा कि जैसा कि हमें लग रहा था कि यह जटिल मुद्दा है, लेकिन यह देखना निराशाजनक था कि यह अंत तक जटिल ही बना रहा और इसमें खास प्रगति नहीं हुई।
 
उन्होंने कहा कि राहत की बात यह है कि इन सारी अव्यवस्थाओं के बीच कुछ मुद्दों पर सकारात्मक बातें कही गई हैं, जिन्हें ग्रीनपीस भी महत्वपूर्ण मानता है। इसमें स्थानीय लोग और सामुदायिक अधिकार जैसे मुद्दों को शामिल करने की बात उम्मीद की एक किरण है। हालांकि, कुनमिंग में होने वाली बैठक से पहले नैरोबी में बैठक होनी है। संभावना जताई जा रही है कि इसमें कई और बातें स्पष्ट तौर पर खुलकर सामने आएंगी जिन पर कुनमिंग में आखिरी फैसला लिया जा सकता है।
 
धन और निगरानी से जुड़ी प्रमुख चुनौतियां
 
यह समझौता अभी भी कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि किसी भी कार्रवाई के लिए पैसे का इंतजाम कहां से किया जाए और लक्ष्यों की उपलब्धि को कैसे मापा जाएगा।
 
देशों का मानना है कि जैवविविधता से जुड़े नुकसान को दूर करने के लिए काफी ज्यादा पैसे की जरूरत होगी। हर साल 100 से 150 अरब डॉलर के अतिरिक्त खर्च का अनुमान है, लेकिन देशों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि यह पैसा कहां से आना चाहिए। साथ ही, प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर राष्ट्रीय सब्सिडी को हटाना पेचीदा मुद्दा है।
 
समझौते की सफलता के लिए निगरानी और डेटा महत्वपूर्ण है। 2010 के कई महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की विफलता की वजह खराब निगरानी बताई गई। कई अन्य चुनौतियां देशों से जुड़ी हुई हैं। ब्राजील और अर्जेंटीना पर साथ मिलकर काम न करने और प्रगति में बाधा डालने का आरोप है।
 
यूरोपीय संघ पर भी बातचीत में पीछे रहने का आरोप लगाया गया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि जिस तरह से ब्रिटेन ने 2021 में ग्लासगो में जलवायु को लेकर हुए सम्मेलन में मेजबान की भूमिका निभाई थी और बातचीत को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया था, चीनी राष्ट्रपति उसी तरह से मेजबान की भूमिका निभाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि पूरे समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जेनेटिक सिक्वेंसिंग से जुड़ी प्रगति को एक-दूसरे के साथ साझा करना है। इस पर देर रात तक बातचीत के बाद सहमति बनी, लेकिन मसौदे को अंतिम रूप दिए जाने के दौरान बोलीविया ने इस पर सहयोग नहीं किया।
 
महत्वपूर्ण समझौता
 
इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि कुनमिंग में इस समझौते पर सहमति बनाना जरूरी है। वैज्ञानिकों ने कहा कि जैवविविधता से होने वाले नुकसान से उतना ही खतरा है जितना जलवायु परिवर्तन से है। उनका कहना है कि पृथ्वी 6ठी बार प्रलय के कगार पर पहुंच चुकी है।
 
पॉट्सडाम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ता और लाइबनिज रिसर्च नेटवर्क बायोडायवर्सिटी के वक्ता कर्स्टन थोनिक के अनुसार, दुनिया के पास जैवविविधता के नुकसान की भरपाई करने के लिए सिर्फ एक दशक है। इसमें बड़े समझौते करना, उनपर कार्रवाई करने के लिए बेहतर प्रणाली स्थापित करना और उन्हें स्थानीय और वैश्विक स्तर पर लागू करना शामिल है।
 
थोनिक ने कहा कि हम जितना इंतजार करेंगे, फैसले लेने में उतनी ही देर होगी और हालात उतने ही बुरे होते जाएंगे। ऐसे में हमें कठिन फैसले लेने होंगे और उन पर कार्रवाई करनी होगी। इससे हमारा समाज अस्थिर हो सकता है या समाज में तनाव पैदा हो सकता है। इसलिए, हम समय नहीं गंवा सकते। हम उस बिंदु पर हैं जहां असफल होने का जोखिम नहीं उठा सकते। इसलिए हमें समझौते की जरूरत है।

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