जब तक शिक्षा को सेवा समझा जाता रहा, तब तक स्कूलों को मंदिर और बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता था। अब शिक्षा का बाजारीकरण हो चुका है, तो बच्चों की सुरक्षा अभिभावकों के लिए एक बड़ी चिंता बन गयी है।
स्कूल प्रशासन की लापरवाही के चलते देश के स्कूलों में बच्चों की मौत की खबर आए दिन आती रहती हैं। इसके बावजूद ना स्कूल प्रशासन की संवेदना ही जाग पायी है और ना ही सरकार की। स्कूल के भीतर बच्चों पर हो रहे हमले के लिए कोई अलग से कोई कानून नही है।
जहां सरकारी स्कूल अपनी लचर व्यवस्था के चलते दम तोड़ रहे हैं तो वहीं मोटी फीस लेने वाले प्राइवेट स्कूल का कारोबार पूरे तेजी से फैल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक देश के प्राइवेट स्कूल दो लाख करोड़ की फीस या डोनेशन के नाम पर अभिभावकों से वसूल लेते हैं। एसोचैम के सर्वे के अनुसार पिछले चार सालों में प्राइवेट स्कूलों की फीस 100 फीसदी से अधिक बढ़ चुकी है। शिक्षाशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि शिक्षा का बाजारीकरण होने के चलते शिक्षा के केंद्र बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं रह गए हैं।
देश के लगभग आधे शिक्षण संस्थानों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक नेताओं का संरक्षण मिला हुआ है। इनमें से अधिकतर संस्थानों के मालिक किसी न किसी दल के साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे स्कूलों में बच्चों के साथ हादसा होने पर भी कोई कार्रवाई नही हो पाती। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि जब तक देश के बड़े प्राइवेट स्कूलों को राजनीतिक संरक्षण से मुक्त नहीं कराया जाएगा, तब तक ये अपनी मनमानी करते रहेंगे।
कानूनों से बाँधने की जरूरत
सरकार को सभी प्राइवेट स्कूलों के लिए ना केवल सुरक्षा मानक तय करने होंगे बल्कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। तभी हादसों में कमी आ सकती है। मुंबई के एक प्राइवेट स्कूल की पूर्व शिक्षिका रितु द्विवेदी का कहना है कि स्कूल परिसर और कक्षा के भीतर भी कैमरे से निगरानी रखनी चाहिए। ये कैमरे सुलभ भी हैं और सस्ते भी। वह कहती हैं कि सीसीटीवी की रैंडम जाँच जरूरी है क्योंकि बच्चे खुद शिकायत करने से डरते हैं।
स्कूल बस से कभी बच्चों को कुचले जाने तो कभी स्कूल के भीतर ही बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण की घटनाएं होती रहती हैं। ऐसे हादसों में स्कूलों की जिम्मेदारी तय होनी जरूरी है। स्कूल प्रबंधन को जिम्मेदार बनाने के लिए सुरक्षा मानकों को सख्त बनाना जरूरी है। महाराष्ट्र शिक्षा विभाग की निदेशक रह चुकी डॉ. सुनंदा ईनामदार का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों के लिए सुरक्षा मानकों को तय करने और उसे कड़ाई से लागू करने की जरूरत है। स्कूल से जुड़े स्टाफ, शिक्षक और यहां तक कि परिसर मे प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की पुलिस वेरिफिकेशन होना चाहिए। स्थायी कर्मचारियों और स्कूल में आने जाने वाले ड्राइवर, सुरक्षा गार्ड के अतीत को भी जांच होनी चाहिए।
"अपराध शून्य और भयमुक्त शिक्षा केंद्र" के लिए कानूनों और कड़े नियमों का सहारा ही लेना पड़ेगा। अभिभावकों को भी अपने बच्चों का ध्यान रखना होगा। प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि स्कूल की लापरवाही को लेकर अकसर अभिभावक उदासीन रहते हैं। स्कूल या शिक्षक की शिकायत लेकर आने पर बच्चों को ही चुप करा देते हैं। उनका कहना है, "समस्याओं के प्रति अभिभावकों को अपना मौन तोड़ना होगा।"
रिपोर्ट:- विश्वरत्न श्रीवास्तव