महिलाओं की भागीदारी जरूरी

DW
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014 (11:45 IST)
भारत में ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत देश में साफ सफाई पर जोर दिया जाएगा। साथ ही देश भर में घरों और विभिन्न सरकारी संस्थानों में शौचालय बनवाए जाएंगे। दिशा उप्पल का कहना है कि अभियान का सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को घर में टॉयलेट नहीं होने के कारण खुले में या खेतों में जाना पड़ता है। वह भी ज्यादातर ऐसे समय पर जब कोई उन्हें देख न सके जैसे तड़के सुबह या शाम या रात को। दिन के दौरान तो मानो जैसे जाना वर्जित ही हो। शौचालय के अभाव का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। संक्रामक बीमारियां, डायरिया और टायफॉयड जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता हैं। सुरक्षा की दृष्टि से भी खुले में शौच जाना खतरनाक है। अकेले में या सुनसान में लड़कियां यौन हमले की ज्यादा शिकार बनती हैं।

आधी आबादी : भारत में स्वच्छता अभियान कोई नई बात नहीं है। वर्तमान सरकार के इस मिशन से पहले भी देश में स्वच्छता के लिए कई मुहिम चलायी गयी। सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं के अलावा यूएन एजेंसियों ने बहुत सी योजनाएं चलायीं। लेकिन ज्यादातर योजनाएं लगभग असफल रहीं। यह पता चलता है 2011 की जनगणना से, जो बताता है कि देश में लगभग आधी आबादी के पास शौचालय नहीं हैं। और जहां कहीं टॉयलेट्स बने भी तो इतने खराब क्वालिटी के हैं कि उनका उपयोग ना किया जा सके।

इसलिए नए अभियान के कर्ताधर्ताओं को पिछली कोशिशों से सबक लेकर आगे चलना होगा। ध्यान देना होगा कि उनका मिशन सिर्फ टॉयलेट का ढांचा बना देने तक सीमित नहीं हो। टॉयलेट के साथ पानी और गंदगी निस्तारण की उचित व्यवस्था करना भी उतना ही आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण है कि लोगों का व्यवहार और उनकी आदतें बदले। स्वच्छता अभियान के जरिये लोगों को जागरूक करना होगा कि जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए खुले में शौच की प्रथा को खत्म करना कितना जरूरी है।

महिलाओं की भागीदारी : शहरों और गांवों में लोगों को स्वच्छता को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करना होगा, लेकिन साथ ही स्थानीय निकायों को भी अहसास कराना होगा कूड़े और गंदगी को निबटाने की जिम्मेदारी उनकी है।

निश्चित ही यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामूहिक प्रतिबद्धता, एवं दृढ़निश्चय होने पर यह संभव भी है। इस पहल में महिलाओं को शामिल भी करना होगा और उन्हें अग्रिम भूमिका भी निभानी होगी। आखिर यह उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और सबसे बढ़कर सम्मान का मामला है। और इसमें कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

समुदायों को जागरूक करने और स्वच्छता को व्यापक बनाने की मुहिम में महिलाओं के स्व-सहायता समूहों को भी जोड़ा जा सकता है। अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा गठित स्व-सहायता समूह शिक्षा, स्वास्थ्य, आय सृजन जैसी गतिविधियों में हिस्सा लेकर महिलाओं को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। स्वच्छता के क्षेत्र में भी पहल कर वे बड़ा बदलाव ला सकते हैं और महिलाओं की गरिमा को पुनर्स्थापित करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

ब्लॉग: दिशा उप्पल
संपादन: महेश झा

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