Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

एक महीने की सख्ती के बाद कैसा है कश्मीर

हमें फॉलो करें एक महीने की सख्ती के बाद कैसा है कश्मीर
, शुक्रवार, 6 सितम्बर 2019 (11:01 IST)
5 अगस्त 2019 को आए राजनीतिक भूचाल के महीने भर बाद कश्मीर घाटी का क्या हाल है? समाचार एजेंसी रॉयटर्स के पत्रकारों ने श्रीनगर से ग्राउंड रिपोर्ट भेजी है।
 
 
भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के विशेषाधिकार खत्म किए जाने के महीने भर बाद भी घाटी में जीवन सामान्य नहीं है। 5 अगस्त 2019 से लेकर अब तक कश्मीर घाटी के बड़े इलाके ने कर्फ्यू, पाबंदी, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां देखी हैं। महीने भर बाद प्रशासन ने ढील देकर सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश की है। लेकिन मुस्लिम बहुल घाटी के लोग संकोच में हैं।
 
पांच अगस्त को संविधान की धारा 370 हटाकर भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर के सारे विशेषाधिकार खत्म कर दिए। हिंसा की आशंका के मद्देनजर वहां पहले से ही भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए थे। विशेषाधिकार हटाने के निर्णय के बाद लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फोन और इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गईं। अब धीरे धीरे संचार के मामले में ढील दी जा रही है। लैंडलाइन फोन सेवा बहाल हो चुकी है।
 
लेकिन अब भी कश्मीर घाटी के कई नेताओं को नजरबंद रखा गया है। श्रीनगर के अधिकारियों के मुताबिक घाटी के 90 फीसदी इलाके में दिन के समय किसी तरह पाबंदी नहीं है। हजारों स्कूल फिर खुल चुके हैं। लेकिन इस राहत के बावजूद कई छात्र कक्षाओं का बहिष्कार कर रहे हैं। दुकानदार दुकानें नहीं खोल रहे हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारी काम पर नहीं जा रहे हैं। इस तरह अनौपचारिक तरीके से वे नई दिल्ली के खिलाफ अपनी नाराजगी का इजहार कर रहे हैं। श्रीनगर के पुराने बाजार में दुकानदारी करने वाले शब्बीर अहमद कहते हैं, "हमारे लिए, हमारी पहचान का संकट है और यह अपनी प्राथमिकता की रक्षा करना है।"
 
आए दिन हो रही पत्थरबाजी की कुछ घटनाओं के बीच नागरिक अवज्ञा भी जारी है। इससे पहले कश्मीर में अलगाववादी विरोध प्रदर्शनों और बंद का आह्वान करते थे। लेकिन इस वक्त अलगाववाद की बात करने वाले या पाकिस्तान के समर्थन में बोलने वाले नेता भी, मुख्यधारा के राजनेताओं के साथ नजरबंद हैं। नजरबंद नेताओं में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
webdunia
अब सुरक्षा बल दुकानदारों से आम समय में दुकानें खोलने को कह रहे हैं, लेकिन दुकानदार ऐसा करने से इनकार कर रहे हैं। दुकानदार मोहम्मद अय्यूब कहते हैं, "शाम को हम दुकान लोगों के लिए खोल रहे हैं। सैनिक हम से कह रहे हैं कि या तो दुकान पूरे दिन खोलो या शाम को भी मत खोलो।"
 
जम्मू कश्मीर सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता रोहित कंसल का आरोप है कि "राष्ट्र विरोधी" ताकतें, दुकानों को खुलने से रोक रही हैं। कंसल कहते हैं, "सुरक्षा बलों ने इस बात को संज्ञान में लिया है।" सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक कश्मीर के 4,000 स्कूलों में छात्र संख्या बेहतर हो रही है। कुछ ही इलाकों में अब भी बहुत कम छात्र स्कूल पहुंच रहे हैं।
 
पश्चिमी श्रीनगर में स्टेट हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के दफ्तर में 300 कर्मचारी काम करते हैं। लेकिन इन दिनों वहां उपस्थिति सिर्फ 30 है। वहां के एक अधिकारी ने कहा, "जो दफ्तर के पास रहते हैं, वही आ रहे हैं। बाकी कभी कभार ही आते हैं।"
 
बंद और पांबदियों ने समाज के हर तबके पर असर डाला है। गुरुवार को मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशल ने भी नई दिल्ली से अपील करते हुए कहा कि संचार संबंधी पाबंदियां हटाई जाएं। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के प्रमुख आकार पटेल ने कहा, "इसने कश्मीरी लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में व्यापक असर डाला है, उनकी भावनाएं और मानसिक स्थिति, मेडिकल केयर और इमरजेंसी सेवाओं जैसी आधारभूत जरूरतों तक पहुंच, इन पर भी असर पड़ा है। इससे परिवार बिखर रहे हैं।"
 
घाटी में कोई सैलानी नहीं हैं। होटल मालिकों के मुताबिक उनके कमरे बिल्कुल सूने पड़े हैं। श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद भी एक महीने से बंद है। दवाओं के कारोबार करने वालों के मुताबिक थायरॉयड, डायबिटीज, एंटी डिप्रेसेंट और कैंसर की दवाओं की किल्लत हो रही है।
 
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के रिपोर्टर ने श्रीनगर के जवाहर नगर इलाके में एक केमिस्ट की दुकान का जायजा लिया। वहां छह ग्राहक मौजूद थे, सभी एक ही दवा मांग रहे थे, और दुकानदार का जवाब था कि यह खत्म हो गई है।
 
ओएसजे/आरपी (रॉयटर्स)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने की लिव-इन को बैन करने की मांग