Biodata Maker

डरावनी हो चुकी है समुद्रों की हालत, बढ़ रहा स्तर

DW
शुक्रवार, 24 सितम्बर 2021 (11:20 IST)
एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले 41 सालों में जर्मनी के आकार से छह गुना ज्यादा आर्कटिक की बर्फ पिघल गई। इससे पूरी दुनिया में समुद्रों का सतह नाटकीय रूप से बढ़ा है।
 
कॉपरनिकस मरीन एनवायरनमेंटल मॉनिटरिंग सर्विस की पांचवीं सालाना रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के समुद्रों की हालत बदतर होती चली जा रही है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए यूरोपीय आयोग ने 150 वैज्ञानिकों को जिम्मेदारी सौंपी थी।
 
इन वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में यह दिखाने की कोशिश की है कि मानवीय हस्तक्षेप की वजह से समुद्र कितनी जल्दी बदल रहे हैं। सबसे बुरा परिणाम यह हुआ है कि समुद्रों के गर्म होने और बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।
 
आने वाले परिणाम
भूमध्य-सागर में यह वृद्धि सालाना 2।5 मिलीमीटर और दुनिया के बाकि हिस्सों में 3।1 मिलीमीटर तक की दर से दर्ज की जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2019 में वेनिस में जो बाढ़ आई थी वो आने वाले परिणामों का उदाहरण है। वेनिस में पानी का स्तर 1।89 मीटर तक ऊपर चला गया था।
 
समुद्रों के गर्म होने से समुद्री जीव-जंतु और ठंडे पानी की तरफ प्रवास कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ प्रजातियों की तो आबादी ही घट रही है। 1979 से लेकर 2020 के बीच में आर्कटिक ने इतनी बर्फ खो दी जो जर्मनी के कुल आकार से छह गुना ज्यादा मात्रा में थी।
 
1979 से ले कर अब तक बर्फ 12।89 प्रतिशत कम हुई है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर आर्कटिक की समुद्री बर्फ इसी तरह पिघलती रही तो इससे इस इलाके में तापमान और बढ़ सकता है, आर्कटिक के तटों में और कटाव हो सकता है और पूरी दुनिया में मौसम से जुड़े और बदलाव आ सकते हैं।
 
अभूतपूर्व तनाव
रिपोर्ट में इस पर भी ध्यान दिलाया गया है कि उत्तरी समुद्र में गर्मी और ठंड की लहरों की वजह से जो चरम बदलाव देखे जा रहे हैं उनका मछली पालन में हो रहे बदलाव से सीधा संबंध है। इसमें सोल मछली, यूरोपीय लॉब्स्टर, सी बेस और खाने वाले केकड़ों का जिक्र किया गया है।
 
रिपोर्ट के साथ संलग्न एक बयान में ओशन स्टेट रिपोर्ट की अध्यक्ष करीना फॉन शुकमान ने कहा, "जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अति उपभोग ने समुद्र को अभूतपूर्व तनाव में डाल दिया है।"
 
उन्होंने बताया कि पृथ्वी की सतह का अधिकांश हिस्सा समुद्र के नीचे ही है और समुद्र पृथ्वी की जलवायु का नियंत्रण करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समुद्र को बेहतर समझने और उसमें हो रहे बदलावों के प्रति कदम उठाने के लिए सही और सामयिक निगरानी बेहद जरूरी है।
 
कॉपरनिकस यूरोपीय संघ का अर्थ ऑब्जरवेशन कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य है सैटेलाइट की मदद और दूसरे तरीकों से जमीन, समुद्रों और वायुमंडल की हालत पर और जलवायु परिवर्तन और उसके परिणामों पर लगातार नजर बनाए रखना।
 
सीके/एए (डीपीए)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

लाखों भारतीय ट्रंप के H-1B visa बम से सीधे प्रभावित होंगे

बिहार : क्या फिर महिलाओं के भरोसे हैं नीतीश कुमार

भारत को रूस से दूर करने के लिए यूरोपीय संघ की नई रणनीति

इसराइल पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध का जर्मनी समर्थन करेगा?

भारतीय छात्रों को शेंगेन वीजा मिलने में क्या मुश्किलें हैं

सभी देखें

समाचार

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की दूसरी सूची, 5 उम्मीदवारों के नाम

मोजाम्बिक में नाव दुर्घटना में 3 भारतीयों की मौत, 5 को बचाया गया

Delhi Pollution : दिवाली से पहले दिल्ली में दमघोंटू हवा, प्रदूषण का स्तर बहुत खराब स्थिति में

अगला लेख