- विवेक कुमार
भारत के लिए यह फैसला दवा निर्माण क्षेत्र में विश्वसनीयता बहाल करने का प्रयास माना जा रहा है। हाल के वर्षों में भारत की कई छोटी कंपनियों को खराब गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना करना पड़ा है। भारत के औषधि नियामक ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि देश की सभी दवा निर्माण इकाइयां जनवरी 2026 तक अंतरराष्ट्रीय उत्पादन मानकों का पालन सुनिश्चित करें। सितंबर से अब तक खांसी की जहरीली दवा से बच्चों की मौत के कई मामले सामने आए हैं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने स्पष्ट किया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के बताए उत्पादन मानकों को अब सभी कंपनियों के लिए अनिवार्य किया जा रहा है। इन मानकों में दवा निर्माण के दौरान क्रॉस-कंटेमिनेशन रोकने के उपाय और बैच टेस्टिंग (हर खेप की जांच) की व्यवस्था शामिल है।
बच्चों की मौत के बाद फैसला
भारत सरकार ने 2023 के अंत में दवा निर्माताओं को इन मानकों को अपनाने के लिए कहा था। यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाराजगी के बाद उठाया गया था, जब भारत निर्मित खांसी की सिरप को अफ्रीका और मध्य एशिया में 140 से अधिक बच्चों की मौत से जोड़ा गया था। इस घटना ने भारत की छवि को गंभीर झटका दिया, जिसे अक्सर दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है।
बड़ी औषधि कंपनियों ने जून 2024 तक नए मानकों का पालन कर लिया था। वहीं छोटे निर्माताओं को दिसंबर 2025 तक की मोहलत दी गई थी। उद्योग संगठनों ने फिर से समय बढ़ाने की मांग की थी। उनका कहना है कि इन मानकों का पालन करने की लागत छोटे व्यवसायों को आर्थिक रूप से तबाह कर सकती है।
लेकिन मध्य भारत में जहरीली सिरप से 24 बच्चों की मौत के बाद सरकार ने अपने रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई। सीडीएससीओ की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि संशोधित मानक सूची के तहत 1 जनवरी 2026 से सभी निर्माताओं पर लागू होंगे। राज्यों को तुरंत निरीक्षण शुरू करने के लिए कहा गया है। नोटिस में लिखा है, यदि किसी निर्माण इकाई को निरीक्षण के दौरान संशोधित सूची की जरूरतों का पालन करते हुए नहीं पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
दवा उद्योग तैयार नहीं
यह नोटिस दवा नियंत्रक महानियंत्रक राजीव सिंह रघुवंशी की ओर से जारी हुआ है। इसमें यह भी कहा गया है कि जिन कंपनियों को पहले से समयसीमा में छूट नहीं मिली है, उनका निरीक्षण तुरंत किया जाए। राज्यों से यह मामला शीर्ष प्राथमिकता के रूप में लेने को कहा गया है। हालांकि रघुवंशी की ओर से इस बारे में कोई बयान नहीं दिया गया।
छोटे और मध्यम आकार के दवा निर्माताओं के संगठन ने चेतावनी दी है कि यह सख्ती कई इकाइयों को बंद करने के लिए मजबूर कर सकती है, जिससे रोजगार प्रभावित होंगे और दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
एसएमई फार्मा कॉन्फेडरेशन के सचिव जगदीप ने कहा, अगर दवाएं महंगी हो जाएं तो गुणवत्ता का क्या लाभ? क्या अच्छा है कि दवा तो शुद्ध हो पर लोग उसे खरीद ही ना सकें? भारत के लिए यह फैसला दवा निर्माण क्षेत्र में विश्वसनीयता बहाल करने का प्रयास माना जा रहा है। हाल के वर्षों में भारत की कई छोटी कंपनियों को खराब गुणवत्ता नियंत्रण और निर्यात किए गए उत्पादों में अशुद्धियों के कारण अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना करना पड़ा है।
सरकार का तर्क है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप उत्पादन सुनिश्चित करने से दवा उद्योग की साख मजबूत होगी और निर्यात बाजारों में भारतीय उत्पादों के प्रति विश्वास बढ़ेगा। हालांकि छोटे निर्माताओं का कहना है कि मशीनरी अपग्रेड, गुणवत्ता नियंत्रण और नई प्रयोगशाला व्यवस्था जैसे बदलावों की लागत इतनी अधिक है कि कई कंपनियों के लिए यह आर्थिक रूप से असंभव है।
सरकार के इस नए आदेश ने दवा उद्योग को एक कठिन मोड़ पर ला दिया है। एक ओर यह कदम भारत को वैश्विक गुणवत्ता मानकों के करीब लाने की दिशा में ऐतिहासिक बदलाव है, वहीं दूसरी ओर, छोटे निर्माताओं के अस्तित्व पर खतरा भी बढ़ा है।