यहां है टॉयलेट और रसोई एक साथ

Webdunia
बुधवार, 18 अप्रैल 2018 (11:56 IST)
क्या आप रसोई के साथ टॉयलेट शेयर करने के बारे में सोच सकते हैं। शायद नहीं। लेकिन हांगकांग में आज यह नजारा हकीकत बन चुका है। जगह की कमी ने लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है।
 
खाना बनाने की जगह
यहां टॉयलेट और चॉपिंग बोर्ड की दूरी में फासला बेहद ही कम है। तस्वीर में नजर आ रहा है कि कैसे चावल बनाने का कुकर, टीपॉट और किचन के दूसरे बर्तन टॉयलेट सीट के पास पड़े हुए है। हांगकांग के कई अपार्टमेंट में रसोई और टॉयलेट ऐसे ही एक साथ बने हुए हैं।
 
किचन और बाथरूम
कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम ने हांगकांग में बने ऐसे अपार्टमेंट और यहां रह रहे लोगों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया। इन तस्वीरों की सिरीज "ट्रैप्ड" के तहत एक गैरलाभकारी संस्था द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के साथ तैयार किया गया है। यह संस्था हांगकांग में गरीबी उन्मूलन और नागरिक अधिकारों के लिए काम करती है।
 
जगह की कमी
75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब जगह की कमी होने लगी है। यहां घरों की कीमतें आकाश छू रही हैं। प्रॉपर्टी के मामले में हांगकांग दुनिया का काफी महंगा शहर है। कई लोगों के पास इस तरह से रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है। और शायद, लोगों ने भी ऐसे रहना सीख भी लिया है।
 
अमानवीय स्थिति
एसओसीओ के मुताबिक, हांगकांग की जनगणना और सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो लाख लोग ऐसे ही 88 हजार छोटे अपार्टमेंट में अपना जीवन गुजार रहे हैं। स्वयं को ऐसी स्थिति में ढालने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
 
दोगुनी कीमत
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के प्रमुख इलाकों में साल 2007 से 2012 के बीच अपार्टमेंट की कीमत दोगुनी हो गई। इन छोटे-छोटे कमरों में रहने वालों कई लोग कहते हैं कि उन्हें यहां जाने से डर भी लगता है। वहीं कुछ कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास यहां सांस लेने के लिए खुली हवा भी नहीं होती।
 
एक गद्दे का घर
अपने एक गद्दे के अपार्टमेंट में एक किरायेदार टीवी देखते हुए। यहां कम आय वालों के पास ऐसे रहने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है। अब इन लोगों ने ऐसे रहना सीख लिया है। भले ही वे इस जगह खड़े होकर न तो अंगड़ाई ही ले पाते हो या न ही सुस्ता पाते हों। लेकिन यहां रहते-रहते इन लोगों की कॉकरोच और खटमल से दोस्ती जरूर हो जाती है।
 
पिंजरा या ताबूत
फोटोग्राफर लैम दो साल तक हांगकांग के ऐसे ही गरीब इलाके को कैमरे में कैद करते रहे हैं। इन इलाकों में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत गहरी है। इन फ्लैट्स को अकसर पिंजरे और ताबूत की संज्ञा दी जाती है। जो होटल, मॉल्स, टॉवर वाले चमचमाते हांगकांग का चौंकानेवाला चेहरा उजागर करता है।
 
सरकारी मशीनरी
रहने का यह तरीका लोगों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है। हालांकि कई लोग सालों से ऐसे ही यहां गुजर-बसर कर रहे हैं। सरकारी प्रक्रिया के तहत घर मिलने में यहां औसतन पांच साल का समय लगता है। लेकिन यह इंतजार एक दशक तक बढ़ना बेहद ही आम है।
 
मानवीय गरिमा का अपमान
संयुक्त राष्ट्र मानता है कि ऐसे पिंजरों और ताबूत के आकार वाले घरों में रहना, मानवीय गरिमा के विरुद्ध है। हालांकि हांगकांग सरकार कहती है कि साल 2027 तक यहां करीब 2।80 लाख नए अपार्टमेंट बनाए जाएंगे। एसओसीओ कहता है कि जो लोग इन अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके लिए इस बीच भी कदम उठाए जाने चाहिए। (अयू पुरवानिग्से)

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