भारत को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में क्या हैं अड़चनें?

DW
गुरुवार, 26 दिसंबर 2024 (07:55 IST)
समीरात्मज मिश्र
भारत में टीबी यानी तपेदिक के मामलों में गिरावट आ रही है और ये वैश्विक गिरावट दर की तुलना में काफी बेहतर है। लेकिन अभी भी कई हॉट स्पॉट्स ऐसे हैं जहां तमाम प्रयासों के बावजूद मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है।
 
भारत को टीबी मुक्त बनाने के मकसद से पिछले दिनों सरकार ने सौ दिवसीय एक सघन अभियान शुरू किया। आठ दिसंबर 2024 से शुरू हुआ यह अभियान 17 मार्च 2025 तक चलेगा। लेकिन अभियान की शुरुआत से ही जिस तरह से टीबी के मामले सामने आ रहे हैं, वह टीबी उन्मूलन को लेकर चल रहे प्रयासों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
 
अभियान के एक सप्ताह के भीतर ही टीबी के 6,267 नए मामले सामने आए हैं। इस अभियान में स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्रों पर शिविर लगाकर और 850 मोबाइल परीक्षण वैन के माध्यम से संवेदनशील इलाकों में सक्रिय जांच करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके तहत 347 ऐसे जिलों में विशेष अभियान चलाया जाना है जो टीबी के लिए उच्च जोखिम वाले जिले हैं। इन इलाकों के करीब 25 करोड़ संवेदनशील लोगों की जांच की जाएगी। अब तक करीब लाख से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है और उसके आधार पर ये आंकड़े सामने आए हैं।
 
राजधानी दिल्ली से सटे यूपी के गाजियाबाद जिले में भी टीबी के नए आंकड़े कुछ ऐसे आए हैं जिनकी वजह से देश को टीबी मुक्त बनाने के अभियान को धक्का लगा है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, गाजियाबाद जिले के कुछ इलाके हॉट स्पॉट के रूप में चिह्नित हुए हैं जहां काफी संख्या में टीबी के नए मामले सामने आए हैं।
 
दिल्ली-एनसीआर में टीबी के हॉट स्पॉट
चालू वित्त वर्ष में इस जिले में सबसे ज्यादा 3,865 टीबी के मरीज लोनी इलाके में नोटिफाइड हुए हैं। इस वजह से लोनी इलाका टीबी का नया हॉट स्पॉट बन गया है जो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इससे पहले इस जिले में सबसे ज्यादा मरीज खोड़ा और विजयनगर इलाके में मिल रहे थे। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मरीजों की संख्या इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कई बार मरीज टीबी की जांच कराने से कतराते हैं और गंभीर होने पर ही कराते हैं। इस वजह से जब तक जांच नहीं कराते तब तक कई और लोगों में संक्रमण का कारण बनते हैं।
 
पूरे जिले में चालू वित्त वर्ष में 18 हजार से ज्यादा टीबी के मरीज नोटिफाइड किए गए हैं। संक्रमण से बचाव के लिए पिछले तीन महीने से संक्रमित मरीजों के परिवार में बच्चों के अलावा अन्य सदस्यों को भी टीबी प्रिवेंटिव थैरेपी (टीपीटी) के तहत तीन महीने में 12 डोज दवाएं दी जा रही हैं ताकि परिवार के अन्य सदस्यों में संक्रमण न हो।
 
गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अखिलेश मोहन कहते हैं, "टीबी संक्रमण रोकने के लिए सामुदायिक सर्वेक्षण, जांच और  उपचार का बेहतर इंतजाम किया जा रहा है। टीबी मरीजों को चिह्नित कर उनकी निगरानी की जा रही है। नियमित दवा लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा निक्षय योजना का अनुदान एक हजार रुपये सीधे खातों में भेजा जा रहा है। लोनी में जहां संक्रमण के मामले ज्यादा आ रहे हैं वहां अतिरिक्त शिविर लगाने की योजना है। टीबी रोकथाम के लिए पहली बार संक्रमित सदस्य के पूरे परिवार को संक्रमण से बचाव के लिए दवाएं दी जा रही हैं।”
 
आठ दिसंबर को सौ दिवसीय कार्यक्रम के मौके पर स्वास्थ्य मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव आराधना पटनायक ने बताया था कि पिछले कुछ वर्षों में हमने लापता मामलों यानी अनुमानित मामलों की संख्या और पता लगाए गए वास्तविक मामलों की संख्या के बीच के अंतर को काफी हद तक कम किया है। उनके मुताबिक, पहले यह संख्या 15 लाख थी जो अब सिर्फ 2.5 लाख रह गई है।
 
2025 में ही भारत पाना चाहता है टीबी-मुक्त बनने का लक्ष्य
पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने भी सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा था, "हम टीबी मुक्त भारत बनाने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2015 से 2023 तक टीबी की घटनाओं में 17.7 फीसदी की गिरावट के साथ भारत की उल्लेखनीय प्रगति को मान्यता दी है। यह दर 8.3 फीसदी की वैश्विक गिरावट के आंकड़े के दोगुने से भी ज्यादा है। यह स्वीकृति टीबी देखभाल और नियंत्रण के प्रति भारत के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को दर्शाती है।”
 
साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'टीबी मुक्त भारत अभियान' की शुरुआत की थी। उस वक्त पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 तक समय तय किया है, लेकिन भारत ने अपने लिए ये लक्ष्य 2025 तय किया है। उसी को धार देने के लिए सौ दिन के विशेष अभियान की शुरुआत की गई है लेकिन टीबी के नए मामलों की संख्या में हो रही बढ़ोत्तरी इस अभियान को कमजोर कर रही है।
 
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर साल दुनिया में टीबी के जितने मरीज सामने आते हैं, उनमें से सबसे ज्यादा मामले भारत में होते हैं। डब्ल्यूएचओ की 'ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2023' की मानें तो साल 2022 में टीबी के 27 फीसदी मामले भारत में सामने आए थे। दूसरे नंबर पर इंडोनेशिया और तीसरे नंबर पर चीन था।
 
एनटीईपी प्रोग्राम में मिलती है मुफ्त जांच और परामर्श
कोविड-19 महामारी के बाद, भारत ने राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन प्रोग्राम (एनटीईपी) के माध्यम से टीबी को खत्म करने के अपने प्रयासों को तेज किया जो राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एनएसपी) 2017-25 के साथ जुड़ा हुआ एक कार्यक्रम है। एनटीईपी के जरिए व्यापक देखभाल पैकेज और विकेन्द्रीकृत टीबी सेवाएं शुरू की गईं जिसके जरिए जांच, उपचार में तेजी लाने और टीबी देखभाल की गुणवत्ता को बढ़ाने को प्राथमिकता दी गई।
 
इस प्रोग्राम के तहत अन्य मंत्रालयों और विभागों के साथ सहयोग करके टीबी का कारण बनने वाले कारकों जैसे- कुपोषण, मधुमेह, एचआईवी और नशीले पदार्थों के सेवन से निपटने के लिए पहल शुरू की गई। इन प्रयासों का मकसद टीबी के मरीजों को समग्र सहायता प्रदान करना था, ताकि उनके इलाज में आसानी हो सके।
 
केंद्र सरकार की ओर से साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का अभियान काफी तेजी से चल रहा है। खुद पीएम मोदी कई मौकों पर इस बात को दोहरा भी चुके हैं। लेकिन डब्ल्यूएचओ का कहना है कि साल 2025 तक टीबी के मामलों में कमी तभी आ सकती है, जब हर साल 10 फीसद की दर से टीबी के मामलों में कमी आए।
 
स्वास्थ्य मंत्रालय ने साल 2017 में साल 2025 तक टीबी के खात्मे के लिए जो योजना पेश की थी उसके तहत सरकार ने 2025 तक हर एक लाख आबादी पर टीबी मरीजों की संख्या 44 सीमित करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन समय सीमा करीब आने के बावजूद यह लक्ष्य काफी पीछे है।
 
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने पिछले हफ्ते लोकसभा में बताया था कि भारत में टीबी के मामलों की दर कम हुई है। साल 2015 में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 237 लोगों को ये बीमारी थी जो 2023 में 17.7 फीसदी घटकर प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 195 हो गई है। यानी ये आंकड़े अब भी देश से टीबी के उन्मूलन के लक्ष्य से काफी दूर हैं।

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