मोदी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना राजनीतिक अभियान तक तेज कर दिया है। लेकिन 21वे विधि आयोग ने साफ कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड ना जरूरी है और ना वांछनीय।
22वें विधि आयोग द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड पर लोगों की राय इकठ्ठा करने की प्रक्रिया चल रही है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी का कहना है कि दो हफ्तों में 8.5 लाख व्यक्ति और संस्थान अपनी अपनी राय भेज चुके हैं।
इनमें से कई संस्थानों ने आयोग को चिट्ठी लिखकर यह याद दिलाया है कि 21वें विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को ठुकरा दिया था। 21वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी एस चौहान थे और आयोग ने दो साल के शोध और चर्चा के बाद 2018 में "रिफॉर्म ऑफ फैमिली" विषय पर एक परामर्श पत्र जारी किया था।
'ना जरूरी, ना वांछनीय'
इस पेपर में आयोग ने लिखा था कि यह एक बहुत बड़ा विषय है और देश में इसके संभावित परिणाम अनपेक्षित हैं। आयोग के मुताबिक देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सर्वसम्मति नहीं है और ऐसे में सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि निजी कानूनों की विविधता का संरक्षण किया जाए लेकिन यह भी सुनिश्चित किया जाए कि निजी कानून संविधान द्वारा दिए गए मूलभूत अधिकारों का खंडनना करें।
इसी आधार पर आयोग ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड ना तो जरूरी है और ना वांछनीय। आयोग ने यह भी जोड़ा कि अधिकांश देश अब असमानताओं को सम्मान देने की तरफ बढ़ रहे हैं क्योंकि असमानताओं का मतलब भेद-भाव नहीं होता है, बल्कि वे तो एक मजबूत लोकतंत्र का सूचक होती हैं।
सीपीएम और मुसलमानों की संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत जैसे संगठनों ने 22वें आयोग से अपने संवाद में 21वें आयोग के इसी विमर्श पत्र का हवाला दिया है।
लेकिन 22वें आयोग की घोषणा में उसके पूर्ववर्ती आयोग के निष्कर्षों को छोड़ देने के संकेत मिल रहे हैं। 14 जून को जारी एक बयान में आयोग ने कहा था कथित विमर्श पत्र को जारी हुए तीन साल से भी ज्यादा समय चुका है, इसलिए इस विषय पर 'नए सिरे' से विचार-विमर्श करने की जरूरत है।
बीजेपी का पुराना एजेंडा
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक बेहद विवादास्पद विषय है और यह पिछले कई दशकों से बीजेपी के चुनावी घोषणापत्रों के तीन प्रमुख बिंदुओं में से एक रहा है। इन तीन बिंदुओं में राम मंदिर और धारा 370 भी शामिल हैं। 2019 में भी लोक सभा चुनावों में बीजेपी ने संहिता लागू करने का वादा किया था।
धर्म, रीति-रिवाज और प्रथाओं पर आधारित निजी कानूनों (पर्सनल लॉ) को हटाने और उनकी जगह सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून को लाने की अवधारणा को यूनिफॉर्म सिविल कोड का नाम दिया गया है। इसके तहत शादी, तलाक, संपत्ति, गोद लेना आदि गतिविधियों से जुड़े कानून आते हैं।
उत्तराखंड, असम, गुजरात आदि जैसे बीजेपी की सरकार वाले राज्य इसे अपने अपने स्तर पर लागू करने की घोषणा कर चुके हैं, हालांकि इसे अभी तक कहीं लागू नहीं किया गया है। 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन किया और कहा कि आज इसके नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है।
उन्होंने ने कहा, "देश दो कानूनों पर कैसे चल सकता है? संविधान भी बराबर अधिकारों की बात करता है।।।सुप्रीम कोर्ट ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए कहा है।"