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भारत सरकार और सोशल मीडिया की लड़ाई क्यों

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, शनिवार, 19 जून 2021 (08:18 IST)
रिपोर्ट : अविनाश द्विवेदी
 
नए आईटी नियम लागू कराने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की है। उन्हें गैर-कानूनी पोस्ट हटाने का काम करने के लिए 3 अधिकारियों की नियुक्ति करनी है। उन्हें लोगों की शिकायत सुन 15 दिन में कार्रवाई करनी होगी।
 
भारत के सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत ट्विटर को सोशल मीडिया मध्यस्थ के तौर पर मिला संरक्षण रद्द कर दिया गया है। यानी अब ट्विटर पर पोस्ट की गई आपत्तिजनक सामग्री के लिए यूजर के साथ ट्विटर पर भी आरोप दर्ज किए जा सकते हैं। सरकार ने 50 लाख से अधिक यूजरबेस वाली वेबसाइट्स के लिए 3 महीने के अंदर शिकायत निवारण अधिकारियों की नियुक्ति का नियम बनाया था। ट्विटर ने ये नियुक्तियां नहीं की। जिसके बाद एक वीडियो के मामले में ट्विटर पर भी मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया है। गाजियाबाद में सूफी अब्दुल समद नाम के एक बुजुर्ग को मारने और उनकी दाढ़ी काटने का यह वीडियो कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था।
 
शिकायत दर्ज होने के बाद भारत में लोगों ने ट्विटर के समर्थन में और नए नियमों के खिलाफ सोशल मीडिया पर गुस्सा जाहिर किया। लेकिन ट्विटर के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि ट्विटर अन्य सोशल मीडिया से अलग है। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों को न मानने की उसकी जिद पुरानी है। दरअसल पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंट बंद करने और इस पर कोई आलोचना न होने के बाद दुनियाभर की सरकारों के प्रति वह अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गया है।
 
नियम अस्पष्ट, अपारदर्शी और असंवैधानिक
 
सरकार के इस कदम पर पवन दुग्गल कहते हैं कि भारत में किसी सरकार ने सोशल मीडिया के नियमन की इच्छाशक्ति दिखाई, यह स्वागत योग्य बात है। इस कदम का लंबे समय से इंतजार था। इससे भारत में सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी तय होगी। हालांकि अभी ये नियम अस्पष्ट, अपारदर्शी और असंवैधानिक हैं। इन खामियों के चलते कुछ विशेषज्ञ यह डर भी जता रहे हैं कि नियम मानवाधिकारों के लिए खतरा बन सकते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ उपेंद्र बक्शी के मुताबिक इससे बुरे उद्देश्यों के लिए जानबूझकर गलत सूचना फैलाने वाले और अनजाने में किसी गलत जानकारी को पोस्ट करने वाले लोग एक ही तरह से दंडित किए जा सकते हैं, तब ये नियम मानवाधिकार के हनन की वजह बन जाएंगे।
 
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने 'डिसइंफॉर्मेशन एंड फ्रीडम ऑफ ओपिनियन एंड एक्सप्रेशन' नाम की एक रिपोर्ट पेश की। जिसके मुताबिक जानबूझकर फैलाया गया झूठ सूचना में गड़बड़ियों की वजह बनता है। इसके जरिए राजनीतिक ध्रुवीकरण, मानवाधिकार हनन और सरकार में विश्वास खत्म करने जैसे गलत काम हो सकते हैं। हालांकि नए डेटा प्रोटेक्शन फ्रेमवर्क के लिए सरकार की सलाहकार रहीं वकील और साइबर एक्सपर्ट पुनीत भसीन नए नियमों के मामले में ऐसा नहीं सोचतीं। वे कहती हैं कि ऐसा नहीं है, यूजर के पास नियमों के तहत 3 चरण की प्रक्रिया है जिसमें वे आप अपना पक्ष रख सकते हैं। इसके अलावा कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है।
 
सरकार को बतानी होगी पहचान
 
इस साल 25 फरवरी को भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 अधिसूचित किया था। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि डिजिटल मीडिया की पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए ये नियम लाए गए हैं और इसके लिए जनता और हितधारकों से विस्तृत परामर्श भी किया गया है। इनके मुताबिक सोशल मीडिया और सभी मध्यस्थों को कानून का पालन करना होगा, ऐसा न करने पर उन्हें कानूनी सुरक्षा नहीं मिलेगी। ये नियम लागू कराने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की होगी। नियम के अनुच्छेद 4(2) में कहा गया है कि किसी 'गलत' चैट या मैसेज को सबसे पहले किसने भेजा, सरकार के पूछने पर उसकी पहचान भी बतानी होगी।
 
गैर-कानूनी जानकारी या पोस्ट हटाने का काम भी कंपनियों की ओर से नियुक्त अधिकारी करेंगे। सोशल मीडिया कंपनियां यूजर्स के लिए शिकायत निवारण प्रक्रिया का एक ढांचा बनाएंगीं। इसके लिए कंपनियां 3 अधिकारियों- चीफ कम्पलायंस ऑफिसर, नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन और रेसिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर की नियुक्ति करेंगीं। इनका नंबर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा ताकि लोगों को शिकायत करने में आसानी हो। ये अधिकारी लोगों की शिकायत सुनेंगे और 15 दिन के अंदर उसका निस्तारण करेंगे। इन अधिकारियों को हर महीने की कार्रवाई की एक रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।
 
विपक्षियों को बनाया जा सकता है निशाना
 
पवन दुग्गल कहते हैं कि भारत में आज तक फेक न्यूज को लेकर कोई कानून नहीं है। IT एक्ट भी इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं देते। जबकि कई देश फेक न्यूज को लेकर बाकायदा कानून ला चुके हैं। ऐसे में इन नियमों को एक शुरुआत माना जा सकता है। हालांकि इनमें पारदर्शिता की कमी है और इनके दुरुपयोग को नहीं रोका जा सकेगा। मसलन यदि किसी गलत जानकारी को कई लोगों ने शेयर किया तो सभी को पकड़ा जाएगा या सिर्फ उसे पकड़ा जाएदा जिसने उसे सबसे पहले शेयर किया था? अगर सिर्फ सबसे पहले शेयर करने वाले को पकड़ा जाएगा तो जो गलत जानकारी पहली बार विदेश से शेयर की गई हो, उस मामले में क्या किया जाएगा? हाल ही में कानून में अस्पष्टता का यह उदाहरण देखने को भी मिला, जब गाजियाबाद के सूफी अब्दुल समद का वीडियो रीट्वीट करने के लिए कई पत्रकारों पर केस दर्ज किए गए।
 
'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के मामले में पवन दुग्गल कहते हैं कि इसलिए ये कानून विरोध के स्वर दबाने और विपक्षियों को निशाना बनाने के काम भी आ सकते हैं। भारत में मानवाधिकार की वकालत करने वाले अब अधिक नहीं हैं, ऐसे में हम नए नियमों को उनकी संवैधानिकता के आधार पर परख रहे हैं। और यह मामला कोर्ट में है। हालांकि उपेंद्र बक्शी के मुताबिक यह पूरी बहस अलग ढंग से होनी चाहिए। वे पूछते हैं कि जानबूझकर और अनजाने में जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोगों को गलत सूचनाएं फैलाने दे रहा है, जब तक उसके बिजनेस मॉडल की समीक्षा नहीं की जाएगी, कंटेंट की समीक्षा के ये प्रयास अपर्याप्त रहेंगे। भले ही ये प्लेटफॉर्म ग्लोबल बिजनेस हों लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि क्या ये हर देश में एक जैसी नीतियां लागू करते हैं या सभी जगह मानवाधिकारों के लिए अलग स्तर रखते हैं?
 
कानून से महिलाओं को फायदा
 
पुनीत भसीन नियमों के सकारात्मक पक्ष की ओर ध्यान दिलाती हैं। उनका मानना है कि इस कानून का पहला मकसद इंटरनेट पर महिला यूजर्स की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करना है। अन्य तरह के कंटेट की बात बाद में आती है। नए नियमों से महिला यूजर्स को बहुत लाभ होगा क्योंकि उनकी तस्वीरों और वीडियो का गलत इस्तेमाल रोका जा सकेगा। उन्हें पता होगा ऐसा कुछ हो रहा है तो उन्हें किससे शिकायत करनी है। कानून लाते हुए सरकार ने भी प्रमुखता से यह तर्क दिया था। पुनीत यह भी जोड़ती हैं कि यूरोप और अन्य कई देशों में सोशल मीडिया को सरकारी एजेंसियों के साथ डेटा शेयर करना पड़ता है। यहां भी सरकार तुरंत किसी के डेटा को एक्सेस नहीं कर सकेगी, इसके लिए कोर्ट का आदेश जरूरी होगा। फिलहाल हमारा डेटा सरकार से ज्यादा सोशल मीडिया कंपनियों के पास है। ऐसे में सर्विलांस स्टेट यानी अपने नागरिकों की जासूसी करने वाला देश बनने की बात सही नहीं है।
 
हालांकि पवन दुग्गल मानते हैं कि नए नियम जिस रूप में हैं, वे सही नहीं हैं। उनमें कोर्ट कुछ बदलाव करेगा और बीच का रास्ता निकालेगा। सरकार की ओर से भले ही नए सोशल मीडिया नियमों को लेकर व्यापक परामर्श की बात कही गई हो लेकिन इन नियमों पर बातचीत के दौरान ज्यादातर जानकारों ने माना कि इन्हें बहुत ही गोपनीय तरीके से तैयार किया गया। ये व्यापक और समावेशी हो सकते थे, अगर इन्हें तैयार करने में विशेषज्ञों की मदद ली गई होती और इन पर संसद में चर्चा करके इन्हें कानून की शक्ल दी गई होती।

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