समान सैलरी की जिम्मेदारी अब कंपनी पर

Webdunia
बुधवार, 31 जनवरी 2018 (17:17 IST)
अब यूरोपीय देश आइसलैंड में पुरूष और महिलाओं के समान मेहनताने को सुनिश्चित करने के लिए एक कानून आया है। इसके तहत नियोक्ता को अब यह साबित करना होगा कि वह मेहनताना तय करने में कोई लैंगिक भेदभाव नहीं कर रहा है।
 
कानून के तहत अब नियोक्ता या कंपनी मालिक को यह साबित करना होगा कि वे महिला और पुरूषों को समान काम के लिए समान भुगतान कर रहे हैं। कानून के मुताबिक अगर नियोक्ता ऐसा नहीं करता तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसा कानून लाने वाला आइसलैंड दुनिया का पहला देश बन गया है।
 
कानून को अमल में लाने के लिए अब देश के सबसे बड़े बैंक लैंड्सबैंकिन ने काम भी शुरू कर दिया है। इस बैंक का साल 2008 में राष्ट्रीयकरण किया गया था। इस बैंक में काम करने वाली एक 34 वर्षीय महिला कर्माचारी एलिसाबेथ के मुताबिक, "लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के सबसे अच्छे देशों में शामिल आइसलैंड में मैंने कभी महसूस नहीं किया कि मेरे साथ पुरूष साथियों के मुकाबले कोई भेदभाव हो रहा है।"
 
उन्होंने कहा कि फिर भी लैंगिक समानता के लिए इस कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा, "यह एक ऐसी चीज है जिसे आप आसानी से देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। लेकिन इसे साबित करना मुश्किल होता था।"
 
वैसे आइसलैंड में 1961 से पुरूष और महिलाओं के समान वेतन से जुड़ा कानून है लेकिन नया कानून नियोक्ता की जिम्मेदारी तय करता है। इस कानून के बाद अब किसी कर्मचारी को यह साबित नहीं करना होगा कि उसके साथ लैंगिक भेदभाव किया गया है, बल्कि नए कानून में नियोक्ता को साबित करना होगा कि उसने लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया है। मोटामोटी अब नियोक्ताओं को समय-समय पर आकलन करना होगा। साथ ही इसके रिकॉर्ड भी रखने होंगे।
 
कुछ कंपनियों ने इस कानून को लागू करने के लिए अलग से बजट तैयार कर लिया है।
 
पिछले नौ सालों से आइसलैंड सबसे अधिक समानता वाले देशों की वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सूची में टॉप पर बना हुआ है। इसके बावजूद सरकारी आंकड़ें देश में पुरूष और महिलाओं के मेहनताने में किए जाने वाले अंतर को 16 फीसदी तक बताते हैं। इस नए कानून से देश की 1180 कंपनियों में काम करने वाले 1.47 लाख लोग प्रभावित होंगे। सभी सरकारी मंत्रालयों, प्रशासन और 250 से अधिक कर्मचारी रखने वाली कंपनियों को इस कानून का 31 दिसंबर 2018 तक पालन करना होगा। लेकिन छोटी कंपनियों को इसे लागू करने के लिए दिसंबर 2021 तक का समय दिया गया है।
 
अन्य यूरोपीय देश
आइसलैंड के अलावा यूरोप के अन्य देशों में कुछ इस तरह के नए कानून आए हैं। मसलन पिछले साल ब्रिटेन ने अपने एक आदेश में कहा था कि 250 कर्मचारियों से अधिक लोगों की कंपनी को जेंडर गैप की विस्तृत जानकारी देनी होगी। वहीं जर्मनी का कानून कर्मचारियों को मौका देता है कि वह जान सके कि उनके अन्य साथियों को समान काम के कितने पैसे दिए जाते हैं।
 
एए/एके (एएफपी)

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