* आपने कई हिट हिंदी फिल्मों में काम किया। लेकिन उसके बाद मुंबई छोड़ कर दक्षिण क्यों लौट गए? - सागर में काम करने तक मैंने 109 फिल्में की थीं। मुंबई में रहता तो अब तक 250 फिल्में नहीं कर पाता।
* फिर से हिंदी फिल्मों में काम करने की कोई संभावना है? - अब मैं जिस मुकाम पर हूं वहां पैसों की खास अहमियत नहीं है। विषय ऐसा होना चाहिए जिसमें कुछ नया करने की चुनौती हो। अब अपना दायरा बढ़ाना और नए दर्शक बनाना ही मेरी प्राथमिकता है।
* विश्वरूपम का सीक्वल बनाने का ख्याल क्या इसे मिली कामयाबी के बाद आया? - ऐसा नहीं है। मैंने पहले से ही इसकी कहानी दो हिस्सों में लिखी थी। हम दर्शकों को पूरी कहानी बताना चाहते थे। इसलिए सीक्वल बनना पहले से तय था।
* यह सीक्वल पहली फिल्म से कितना अलग होगा? - यह विश्वरूपम के मुकाबले बड़े पैमाने पर बनाई गई है और इसमें लागत भी ज्यादा आई है। इसका तकनीकी पक्ष काफी बेहतर है। इसमें रोमांटिक और भावनात्मक पहलुओं को उभारने पर खास ध्यान दिया गया है। खास बात यह है कि हिंदी में इसका नाम विश्वरूपा 2 होगा। विश्वरूपम नाम से लोगों को लगा था कि यह तमिल की डबिंग हैं। जबकि वह हिंदी में बनाई गई थी। पहली फिल्म के मुकाबले इसकी ज्यादातर शूटिंग भारत में हुई है।
* विश्वरूपम पर काफी विवाद हुआ था। क्या सीक्वल पर भी इसका कोई अंदेशा है? - वह विवाद प्रायोजित था। लेकिन सीक्वल पर विवाद का अंदेशा नहीं है। यह राहत की बात है।
* दक्षिण के ज्यादातर अभिनेता राजनीति में जाते रहे हैं। क्या आपका भी ऐसा कोई इरादा है? - मैं हमेशा राजनीतिज्ञ रहा हूं। संसद में भले नहीं रहूं, लेकिन आम लोगों की तरह ही राजनीतिज्ञ हूं। वैसे फिलहाल सक्रिय राजनीति का कोई इरादा नहीं है। मुझे फिल्मों से ही फुर्सत नहीं है।
* विश्वरूपम के सीक्वल के बाद हिंदी में कोई और फिल्में बनाने की योजना? - मेरे पास कई पटकथाएं हैं। अब सही निर्माताओं की तलाश है। मैं हमेशा जेब से पैसे लगा कर खतरा नहीं उठा सकता।
* सीक्वल के मौजूदा दौर में क्या एक दूजे के लिए का सीक्वल बनाने की कोई योजना है? - हमने तमिल में इसे बनाया था, लेकिन वह हिंदी में नहीं बन सकी। अब तो मेरी उम्र वैसा रोल करने की नहीं रही। इसके लिए अब काफी देरी हो चुकी है।
* अब तो श्रुति के बाद आपकी छोटी बेटी अक्षरा भी फिल्मों में काम कर रही है। बेटियों के करियर में कितना दखल देते हैं? - फिल्मी परिवार होने की वजह से घर में फिल्मों पर चर्चा तो होती है। लेकिन मैं उन पर अपनी राय नहीं थोपता। फैसला लेने की जिम्मेदारी मैं उन पर ही छोड़ देता हूं। आम पिता की तरह हमेशा उनको यह सलाह नहीं देता कि क्या करें और क्या नहीं।
* लगभग पांच दशक तक इस उद्योग में बिताने के बाद क्या अपने मुकाम से संतुष्ट हैं? - जिस दिन संतुष्ट हो गया उस दिन काम करना छोड़ दूंगा। अब भी काफी कुछ सीखना है और मैं हमेशा असंतुष्ट रहता हूं। मैं खुश तो हूं लेकिन संतुष्ट नहीं।
इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता संपादनः एन रंजन