असुरक्षित हैं भारत के दादी नानी

Webdunia
शनिवार, 10 नवंबर 2012 (15:17 IST)
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वो दादा दादी हैं, माता पिता हैं। आजीवन बच्चों को संभालते, उनकी जरूरतें पूरी करते रहे। लेकिन जैसे ही आय का स्रोत बंद हुआ वह अपने ही बच्चों के लिए बोझ बन गए। अकेले पड़ गए...जीवन के सबसे सुनहरे दिन पीड़ा में बदल गए।

केरल के एक गांव में रहने वाले 91 साल के जॉर्ज पूटेनवीट्टिल को उनके इकलौते बेटे ने पहले तो खूब परेशान किया और फिर उनके अपने घर से बाहर निकाल दिया। कारण..कि वह कुछ कमाते नहीं थे।

इसके बाद वह कई घंटों तक गांव की सड़कों पर घूमते रहे। फिर पड़ोसियों की मदद से उन्हें पाथानपुरम के एक आश्रम में भेजा गया। पुलिस ने कहा कि बेटा कई बार बूढ़े पिता को मारता और उन पर अत्याचार करता क्योंकि वह अपने बेटे पर निर्भर थे।

जॉर्ज जैसे कई लोगों के लिए बुढ़ापा आराम का नहीं परेशानी का सबब बन कर आता है। क्योंकि इस दौरान वह पूरी तरह परिवार या दोस्तों पर निर्भर होते हैं। कारण है कि भारत में कोई सामाजिक सुरक्षा प्रणाली, सरकारी पेंशन प्लान या बीमा नहीं।

डॉ. इरुदया राजन बुढ़ापे की इस असुरक्षा से चिंतित हैं। राजन जनसांख्यिकी विशेषज्ञ हैं। उन्होंने आईपीएस समाचार एजेंसी के साथ बातचीत में कहा कि आय सुरक्षा भारत की सबसे बड़ी जरूरत है।

कई साल पहले पारंपरिक मूल्यों और धार्मिक कारणों से बूढ़े लोगों को काफी मदद मिलती थी। लेकिन आर्थिक परेशानियों और छोटे होते परिवारों के कारण उम्रदराज लोगों की हालत लगातार बिगड़ी है। अधिकतर लोग रिटायरमेंट के बाद भी काम करना पसंद करते हैं क्योंकि सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती।

संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड ने भारत की उम्रदराज जनसंख्या के बारे में रिपोर्ट दी थी। इसके मुताबिक 2011 में भारत में बूढ़े लोगों की संख्या 9 करोड़ थी साथ ही 2026 तक इसके 17 करोड़ तक हो जाने की बात कही गई है। फिलहाल नौ करोड़ में से तीन करोड़ अकेले रहते हैं और इनमें से 90 फीसदी लोग आजीविका के लिए काम करते हैं।

जानकारों का मानना है कि कर्मचारियों में सिर्फ आठ फीसदी ही मालिकों से सामाजिक सुरक्षा पाते है। भारतीय में 94 फीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें सभी बिना लाइसेंस वाले, स्वतंत्र काम करने वाले या गैर पंजीकृत काम शामिल हैं जैसे परचून की दुकान, कपड़े की दुकान, गांव के व्यापारी, किसान।

चेन्नई में रहने वाले अर्थशास्त्री गोपालकृष्णन कहते हैं कि असंगठित कामों में लोगों के लिए कोई सुरक्षा नहीं होती जबकि यह जीडीपी का आधा हिस्सा है। और वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2011 में भारत की जीडीपी 1,848 अरब डॉलर की थी।

2006 में असंगठित क्षेत्रों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग ने सलाह दी थी कि केंद्रीय सरकार एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा स्कीम चलाए और असंगठित क्षेत्रों से रिटायर होने वाले लोगों के लिए न्यूनतम लाभ तय करे।

लेकिन अभी तक सरकार इस बारे में कोई फैसला नहीं ले पाई है। 1999 में नेशनल पॉलिसी ऑन ओल्डर पर्सन्स के लिए एक प्रस्ताव का खाका बनाया गया था लेकिन इस पर कभी अमल नहीं हुआ।

मुश्किल दिन : विश्लेषकों के मुताबिक भारत की उम्रदराज जनसंख्या स्वास्थ्य के मुद्दों, आर्थिक परेशानी। पारिवारिक मामले, लैंगिक भेदभाव, शहरी ग्रामीण, गरीबी जैसी स्थितियों से जूझ रही है।

तिरुवनंतपुरम में सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के डॉ उदयशंकर मिश्रा का मानना है कि हालात में बदलाव हो सकता है। बूढ़े लोगों को बोझ मानने की प्रवृत्ति अच्छी नीतियों से बदली जा सकती है।

' सीमित संसाधनों के साथ हमें बूढ़े लोगों के संकट से निबटने के लिए अच्छी नीति की जरूरत है। इसमें सबसे पहले स्वास्थ्य, फिर बीमारी, आर्थिक और भावनात्मक बेहतर जीवन पाने के मुद्दे हैं।'

2011 के राष्ट्रीय जनसंख्या के आंकड़ों से पता चला है कि तमिलनाडु, गोवा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब या केरल में जीवन साथी के साथ या अकेले रहने वाले बूढ़े लोगों की संख्या 45 फीसदी है।

गैर सरकारी संगठन ज्यादा वृद्धाश्रमों, डे केयर सेंटर, फिजियोथेरैपी, की पैरवी कर रहे हैं। उनका कहना है कि बूढ़े लोगों के लिए सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए। प्रोजेक्टों को सरकार से फंड मिलना चाहिए ताकि ये लंबे समय तक चलाए जा सकें।

रिपोर्टः आभा मोंढे (आईपीएस)
संपादनः एन रंजन

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