फेसबुक पर कमेंट करने से डरते हैं लोग

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" अगर ऐसा किया तो लोग क्या कहेंगे", समाज के और अपने आसपास वालों के डर से लोग अक्सर कई चीजें करने या कहने से बचते हैं। सोशल मीडिया पर भी यह डर उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। भारत में तो लोगों को पुलिस का भी डर सताता है।

फेसबुक और ट्विटर जैसी साइटों का इस्तेमाल लोग अपनी राय व्यक्त करने के लिए करते हैं। खास तौर से चुनाव जैसे माहौल में सोशल मीडिया साइटों पर काफी चर्चा होती है। यही वजह है कि सोशल मीडिया एक्टिविज्म जैसे शब्द ईजाद हुए। लेकिन एक ताजा शोध की मानें तो अधिकतर लोग फेसबुक पर राजनैतिक चर्चा का हिस्सा बनने से डरते हैं।

अमेरिका की न्यूजर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी में हुए शोध में कहा गया है कि लोग तभी अपनी राय व्यक्त करते हैं जब उन्हें इस बात का विश्वास होता है कि वेबसाइट पर जुड़े लोग उनसे इत्तेफाक रखते हैं।

रिसर्चरों ने इसे 'स्पायरल ऑफ साइलेंस' का नाम दिया है। रिसर्च करने वाले कीथ हैम्पटन का कहना है, 'लोग अहम राजनैतिक बहस के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से बचते हैं। और अगर कर भी लें तो लोगों से मिलने पर उन मुद्दों से भागते हैं।'

जितना फेसबुक उतना डर : अमेरिका में इस शोध की शुरुआत तब हुई जब एडवर्ड स्नोडेन ने खुफिया एजेंसी एनएसए के काम का खुलासा किया कि खुफिया एजेंसी लोगों के ईमेल, फोन और एसएमएस का पूरा डाटा जमा कर रही है। शोध के लिए 1801 लोगों से सवाल किए गए। 86 फीसदी लोगों ने कहा कि इस बारे में वे एक दूसरे से चर्चा करने के लिए तैयार हैं। मिसाल के तौर पर अगर वे किसी से रेस्तरां में मिलते हैं या फिर दोस्तों के साथ उनकी मुलाकात होती है, तो वे खुफिया एजेंसी के काम के बारे में बात करने में रुचि लेंगे।

लेकिन 42 फीसदी ने ही कहा कि वे फेसबुक या ट्विटर पर इस बारे में कुछ लिखना पसंद करेंगे। इसके अलावा फेसबुक को ज्यादा इस्तेमाल करने वाले लोगों में डर बाकियों की तुलना में ज्यादा दिखा। फेसबुक पर दिन में कई कई बार लॉगिन करने वाले लोगों में से आधे तो दोस्तों के साथ या फिर पार्टियों में भी इस तरह की चर्चाओं से दूर रहना पसंद करते हैं।

दोस्ती पर बुरा असर : प्यू रिसर्च सेंटर इंटरनेट प्रोजेक्ट के ली राइनी बताते हैं कि जहां बहस की स्थिति बनने का खतरा होता है, वहां लोग अपना नजरिया देने से और भी कतराते हैं। वह बताते हैं, 'क्योंकि ये लोग सोशल मीडिया का काफी इस्तेमाल करते हैं, इसलिए वे जानते हैं कि उनकी जान पहचान के लोगों में असहमति कितनी है। इसलिए ऑनलाइन अपनी राय देने में तो उन्हें डर लगता ही है, साथ ही ऑफलाइन यानि लोगों से मिलने पर सामने वाले को ठेस पहुंचाने, उस के साथ बहस हो जाने या फिर दोस्ती पर बुरा असर पड़ने के डर से भी वे चुप रहना ही पसंद करते हैं।'

कई लोगों के लिए अपनी राय सबके सामने रखना या उसे छिपाना निजी मामला है। लेकिन इस मुद्दे पर रिसर्च करने वाले कीथ हैम्पटन इसे चिंताजनक बताते हैं। उनका कहना है, 'एक ऐसा समाज जहां लोग खुल कर अपनी राय भी दूसरों के सामने ना रख सकें और दूसरों के नजरिए को जान कर अपनी समझ को बेहतर बना सकें, वह ध्रुवीकृत समाज है।'

- आईबी/एमजे (एपी)

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