नाजुक सुंदर अंगुलियां भी करती हैं भविष्य के इशारे

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मानव हस्त की रचना में अंगुलियों की अहम भूमिका होती है। ये संख्या में 5 होती हैं, लेकिन वास्तविक रूप से अंगुलियां 4 ही होती हैं, 5वां स्‍थान अंगूठे का होता है। 4 अंगुलियां पास-पास होती हैं, लेकिन अंगूठा कुछ दूर स्वतंत्र समकोण बनाते हुए होता है। 
 




















लंबी तथा छोटी अंगुलियों से जातक के हाथ का परीक्षण हस्तविद सुगमता से करने में सफल होता है।
 
लंबी अंगुलियों वाला जातक अनुसंधानकर्ता होता है। वह नित्य खोजें करता रहता है, चाहे वह सफल रहे या असफलता उसे हाथ लगे। लं‍‍बी अंगुलियों के साथ-साथ यदि पतली और नुकीली अंगुली भी हो तो जातक बुद्धिमान, चतुर, गंभीर तथा सतर्क रहता है। 
 
छोटी अंगुलियों वाले जातक मंदबुद्धि, विवेकहीन तथा किसी भी कार्य को पूर्ण करने में सक्षम नहीं होते तथा स्वयं का अपना निर्णय एवं तर्कशक्ति का अभाव रहता है। फिर भी हाथ में अन्य चिह्न लक्षण रेखाओं, पोरों आदि के द्वारा अनुकूल हों तो जातक के अवगुणों में कुछ परिवर्तन हो सकता है।






















 
अंगुलियों को कम से कम 4 ही माना गया है। अंगूठे की गिनती साथ में नहीं की गई है।
 
1. तर्जनी (Index Finger),

2 मध्यमा (Middle), 
 
3. अनामिका (Ring Finger),

4. कनिष्ठिका (Little Finger)।

प्रत्येक अंगुली का क्षेत्र अलग-अलग होता है।
 
1. तर्जनी को गुरु क्षेत्र के ऊपर की अंगुली अर्थात गुरु की अंगुली।
 
2. मध्यमा को शनि की अंगुली। 
 
3. अनामिका को सूर्य की अंगुली। 
 
4. कनिष्ठिका को बुध की अंगुली।
 
इस प्रकार तर्जनी प्रथम अंगुली, मध्यमा द्वितीय अंगुली, अनामिका तृतीय अंगुली एवं कनिष्ठिका को चतुर्थ अंगुली का स्थान दिया गया है।
 
कई विद्वानों ने इसके विपरीत भी माना है, जैसे कनिष्ठिका प्रथम तथा तर्जनी अंगुली चतुर्थ,‍ फिर भी अधिकांश ने तर्जनी अंगुली को ही प्रथम माना है, क्योंकि वैसे भी यह गुरु की अंगुली मानी गई है और गुरु क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी करती है।

अगले पृष्‍ठ पर पढ़ें प्रत्येक अंगुली का क्रमबद्ध अध्ययन... 
 

प्रत्येक अंगुली का क्रमबद्ध अध्ययन
 
1. तर्जनी : यह अंगुली, अंगूठे के पास प्रथम पंक्ति की प्रथमा अंगुली होती है। यह सब हाथों में एक समान नहीं होती। इस अंगुली का संबंध गुरु ग्रह से रहता है। यह तर्जनी अंगुली अधिक लंबी हो तो अहंकारी होता है। दूसरों पर अपना प्रभुत्व अर्थात शासन करने की प्रवृत्ति दर्शाती है। ऐसी अंगुली अधिकतर उपदेशक, राजनीतिक नेताओं, शिक्षक, धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में काम करने वालों की होती है। यदि तर्जनी का प्रथम पोर लंबा हो तो जातक आत्मविश्वासी, प्रभावशाली व प्रतिभावान होता है। यदि सिर्फ दूसरा पोर लंबा हो तो जातक स्वस्थ, सौम्य प्रकृति, उच्च अभिलाषी होता है। यदि तृतीय पोर लंबा हो तो जातक दंभी होता है।
 
विशेष : यदि किसी जातक की मध्यमा एवं तर्जनी अंगुली बराबर हो तो वह जातक समस्त विश्व द्वारा सम्मानित होता है, उदा. अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, फ्रांस के नेपोलियन, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, महात्मा गांधी, मदर टेरेसा आदि विश्व के प्रसिद्ध लोकनायक गण।
 

 
 
 

2. मध्यमा : मध्यमा अंगुली अधिक लंबी तथा सीधी हो तो जातक एकांतप्रिय होता है। वैसे शनि क्षेत्र पर इस अंगुली का स्थान है। शनि एकांतप्रिय ग्रह होता है। अवस्था के मान से भी शनि को वृद्धावस्था का प्रतीक माना गया है। वृद्धावस्था में वैसे भी मनुष्य का कम ही ध्यान रखा जाता है। वह अपने आप में एकांतप्रिय हो जाता है। सामान्यत: मध्यमा अंगुली धार्मिक, व्यावहारिक तथा दूरदर्शी जातक की सूचक होती है।
 
छोटी अंगुली मध्यमा की हो तो जातक का चंट, चालाक, धूर्त, अंधविश्वासी, अहंकारी होने का बोध कराती है। जातक अपने आप में उच्चता का अनुभव करता तथा स्वयं को श्रेष्ठ समझता है।
 
इसका प्रथम पोर स्वाभाविक होने पर जातक ज्ञानी, स्‍थिर, चिंतनशील तथा गंभीर प्रकृति व शांत चित्त रहता है। इसके विपरीत यदि इस अंगुली का प्रथम पोर व्यवस्‍थित न हो तो जातक निराशमय जीवन व्यतीत करता है।
 
यदि मध्यमा अंगुली का द्वितीय पोर बराबर हो तो जातक परिश्रमी, कृषक, शिल्पी के कार्यों में रत रहता है। तृतीय पोर मध्यमा अंगुली का स्वाभाविक हो तो जातक परिश्रमी, मितभाषी, स्वावलंबी तथा सरल स्वभाव का होता है। इसके विपरीत हो तो आलसी, क्रोधी, लोभी व अशांत चित्त होता है। 


 

3. अनामिका अंगुली : यह अंगुली सूर्य क्षेत्र के ऊपर रहती है। अनामिका नाम से ही इसके गुणों आदि का ज्ञान अपने आप हो जाता है। यह अनामिका अंगुली बड़ी हो तो जातक में स्वयं अपनी प्रवृत्ति से धन संचय करना, महत्वाकांक्षी होना, स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी प्रकार का कार्य कर देश या जहां भी रहते हैं, अपनी कीर्ति फैलाना, धन प्राप्ति के लिए अनुचित कार्य करना, जैसे जुआ-सट्टा, अधिकारी हो तो अनेक अनुचित तरीके अपनाना आदि। यह कह सकते हैं कि अनैनिक कार्यों में रत रहकर नैतिकता का पतन होना। अनामिका अंगुली का संबंध सूर्य क्षेत्र से रहता है। यदि इसका अग्र भाग नुकीला हो तो जातक कलाकार, संगीतज्ञ तथा चित्रकार होता है। 
 
अनामिका अंगुली का प्रथम पोर लंबा हो तो जातक कलाप्रिय, विद्यावान, साहित्य प्रेमी तथा जनवल्लभ होता है। अनामिका का द्वितीय पोर लंबा हो जातक प्रतिभा संपन्न, अनुसंधानकर्ता, गुप्त मंत्रणा, विद्याप्रिय होता है। अनामिका अंगुली का तृतीय पोर लंबा हो तो जातक अपने बुद्धिबल से दूसरों पर शासन करना, अपने शक्तिशाली होने का प्रदर्शन करना तथा राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करना उसका उद्देश्य रहता है।

 

4. कनिष्ठिका अंगुली : यह हाथ की छोटी चतुर्थ क्रम की कनिष्ठिका अंगुली होती है, जो बुध क्षेत्र का नेतृत्व करती है। क्रम में छोटी होने से जातक की प्रवृत्ति भी सोच-समझ में छोटी होती है। वह अपनी बात मनवा नहीं सकता। इसके विपरीत बड़ी हो तो जातक में अहं भावना अधिक होती है। धन संचय करने में भी उसकी प्रवृत्ति स्वार्थयुक्त अनैतिक ही रहती है। यदि कनिष्ठिका अंगुली लंबी, एकदम सीधी हो तो जातक अविश्वसनीय होता है। ऐसा जातक किसी भी कार्य में दूसरों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करता रहता है। ऐसे में अपराधी का होना भी पाया जाता है। लेकिन कम लंबी सामान्य अंगुली प्रतिभाशाली, बहुगुणी, प्रतिभा संपन्न तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए हमेशा जिज्ञासु बने रहना आदि बातों का सूचक है।
 
अंगुलियों के झुकाव का भी महत्व अधिकतर हाथों में देखा जाता है। अंगुली जिस तरफ झुकती है, उसी क्षेत्र का उस पर प्रभाव होता है। उदा. यदि तर्जनी मध्यमा की तरफ झुकी हो तो उसमें शनि क्षेत्र या शनि का प्रभाव हो सकता है। यदि अंगूठे की तरफ झुकाव होता तो शुक्र के गुणों का भाव होगा। इस प्रकार प्रत्येक अंगुली का निर्णय किया जा सकता है। 
 
अंत में हाथ की आकृति तथा अवलोकन में 7 प्रकार के हाथों का महत्व, हथेली और त्वचा का महत्व, रंगों द्वारा पहचान, अंगूठा तथा अंगुलियों का महत्वपूर्ण योगदान समाहित है। इन सबके बिना हाथ की आकृति या बनावट का अवलोकन कर परीक्षण करना हस्तविद के लिए संभव नहीं है।
 
इसलिए आकृति, बनावट, अवलोकन आदि का हाथ की भूमिका में हाथों के प्रकार, हथेली व त्वचा, रंग, अंगूठा व अंगुलियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 


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