ग्रहों की दृष्टि कितनी घातक या लाभदायक, जानिए भाग 1

अनिरुद्ध जोशी
जन्मकुंडली में कोई भी ग्रह कहीं भी बैठा हो वह दूसरे ग्रह आदि पर दृष्टि डालता है तो उस दृष्टि का प्रभाव शुभ या अशुभ होता है। आप अपनी कुंडली के ग्रहों की स्थिति जानकर उनकी दृष्टि किस भाव या ग्रह पर कैसी पड़ी रही है यह जानकार आप भी उनके अशुभ प्रभाव को जान सकते हैं। जब तक आपको यह पता नहीं है कि कौन-सा ग्रह आपकी कुंडली में अशुभ दृष्टि या प्रभाव डाल रहा है तब तक आप कैसे उसके उपाय कर पाएंगे? अत: जानिए कि किसी ग्रह की कौन सी दृष्टि घातक होती है।
 
 
दृष्टि क्या होती है?
दृष्टि का अर्थ यहां प्रभाव से लें तो ज्यादा उचित होगा। जैसे सूर्य की किरणें एकदम धरती पर सीधी आती है तो कभी तिरछी। ऐसा तब होता है जब सूर्य भूमध्य रेखा या कर्क, मकर आदि रेखा पर होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह का अलग-अलग प्रभाव या दृष्टि होती है।
 
किस ग्रह की कौन-सी दृष्टि?
*प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान पर सीधा देखता है। सीधा का मतलब यह कि उसकी पूर्ण दृष्टि होती है। पूर्ण का अर्थ यह कि वह अपने सातवें घर, भाव या खाने में 180 डिग्री से देख रहा है। पूर्ण दृष्टि का अर्थ पूर्ण प्रभाव।
 
 
*सातवें स्थान के अलावा शनि तीसरे और दसवें स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है। गुरु भी पांचवें और नौवें स्थान पर पूर्ण दृष्टि रखता है। मंगल भी चौथे और आठवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
 
*इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से तीसरे और दसवें स्थान को आंशिक रूप से भी देखते हैं। 
 
*कुछ आचार्यों ने राहु और केतु की दृष्टि को भी मान्यता दी है। राहु अपने स्थान सातवें, पांचवें और नवम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है तो केतु भी इसी तरह देखता है। 
 
*सूर्य और मंगल की उर्ध्व दृष्टि है, बुध और शुक्र की तिरछी, चंद्रमा और गुरु की बराबर की तथा राहु और शनि की नीच दृ‍ष्टि होती है।
 
वक्री ग्रह :
सूर्य और चंद्र को छोड़कर सभी ग्रह वक्री होते हैं। वक्री अर्थात उल्टी दिशा में गति करने लगते हैं। जब यह वक्री होते हैं तब इनकी दृष्टि का प्रभाव अलग होता है। वक्री ग्रह अपनी उच्च राशिगत होने के समतुल्य फल प्रदान करता है। कोई ग्रह जो वक्री ग्रह से संयुक्त हो उसके प्रभाव मे मध्यम स्तर की वृद्धि होती है। उच्च राशिगत कोई ग्रह वक्री हो तो, नीच राशिगत होने का फल प्रदान करता है।


इसी प्रकार से जब कोई नीच राशिगत ग्रह वक्री होता जाय तो अपनी उच्च राशि में स्थित होने का फल प्रदान करता है। इसी प्रकार यदि कोई उच्च राशिगत ग्रह नवांश में नीच राशिगत होने तो तो नीच राशि का फल प्रदान करेगा। कोई शुभ अथवा पाप ग्रह यदि नीच राशिगत हो परन्तु नवांश मे अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह उच्च राशि का ही फल प्रदान करता है।
 
 
फलादेश के सामान्य नियम:- लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता-अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है।
 
1. कुंडली में त्रिकोण के (5-9) के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।
2. केंद्र के स्वामी (1-4-7-10) यदि शुभ ग्रह हों तो शुभ फल नहीं देते, अशुभ ग्रह शुभ हो जाते हैं।
3. 3-6-11 भावों के स्वामी पाप ग्रह हों तो वृद्धि करेगा, शुभ ग्रह हो तो नुकसान करेगा।
4. 6-8-12 भावों के स्वामी जहां भी होंगे, उन स्थानों की हानि करेंगे।
5. छठे स्थान का गुरु, आठवां शनि व दसवां मंगल बहुत शुभ होता है।
6. केंद्र में शनि (विशेषकर सप्तम में) अशुभ होता है। अन्य भावों में शुभ फल देता है।
7. दूसरे, पांचवें व सातवें स्थान में अकेला गुरु हानि करता है।
8. ग्यारहवें स्थान में सभी ग्रह शुभ होते हैं। केतु विशेष फलदायक होता है।
9. जिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है, वह शुभ फल देने लगता है। 
 
क्रमश: 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

ज़रूर पढ़ें

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

lunar eclipse 2025: वर्ष 2025 में कब लगेगा चंद्र ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा

Love Life Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की कैसी रहेगी लव लाइफ, जानें डिटेल्स में

हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह की 20 खास बातें

Job and business Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों के लिए करियर और पेशा का वार्षिक राशिफल

सभी देखें

नवीनतम

Yearly rashifal Upay 2025: वर्ष 2025 में सभी 12 राशि वाले करें ये खास उपाय, पूरा वर्ष रहेगा शुभ

28 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

28 नवंबर 2024, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

अगला लेख