दीये की पाती ज्योति के नाम

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ज्योति के प्रति दीये की शुभकामनाएं 
उदय भानु निगम 'उदय'  
 
प्रिय ज्योति, 
 
एक अभिशप्त अभिन्न हृदय दीये की ओर से तुम्हें इस पावन 'ज्योति पर्व' की शत-शत हार्दिक बधाइयां सस्नेह समर्पित हैं। तुम्हारा यह ज्योति पर्व मंगलमय हो। हरदम मैं अपने ज्योतिर्मय विचारों की इस पावन बेला में तुम्हारे इस अंधकारमय जीवन में सदा-सर्वदा एक अभिन्न साथी-'कुल दीपक' बनकर तुम्हारे हृदय मंदिर के कोने-कोने को अपने गरिमामय दिव्य प्रकाश से आलोकित करता रहूंगा, भले ही तुम मुझे अपना चिर सहयोगी साथी न समझो।


 
तुम मुझे केवल एक मिट्टी का तुच्छ घरौंदा मात्र समझकर अपने जीवन रूपी कारवां से जुदा करने का स्वप्न साकार मत करो। तुम्हारा अस्तित्व मुझमें है और मेरा अस्तित्व तुममें हैं। चाहे तुम मुझे अपना हितैषी मत समझो, पर ईश्वर ने तो तुम्हारा व अपना एक अटूट रिश्ता बनाया है, जो तुम्हारे अपने तोड़ने से कभी नहीं टूटेगा। 
 
प्रिय ज्योति, रिश्ते कभी टूटते नहीं हैं, जो रिश्ते टूट जाते हैं वो रिश्ते, रिश्ते नहीं है। इस पावन ज्योति पर्व से अपना तुम्हारा अटूट रिश्ता है। जहां, ज्योति है वहां दीया भी है। बिना दीये की ज्योति भी शोभा नहीं देती।
 
प्रिय ज्योति, जब तुम्हारे इस पावन पर्व पर अगणित दीयों के साथ अपनी पूर्ण आभा से जगमगाती हो, उस समय वो सूने जीवन की अंधेरी गलियां भी ज्योतिर्मय हो जाती हैं। इस आभामय जगमगाहट की चकाचौंध को देखकर तुम भी फूली न समाती हो। 
 
क्यों ज्योति, क्या तुम्हारा काम प्रतिवर्ष आने वाले ज्योतिपर्व की अपार खुशियों में उन अस्तित्वहीन मुट्ठीभर मामूली दीयों का साथ देकर उनको और अधिक जलाना ही है? 
 
प्रिय ज्योति समाज के लोग आस्था का नकली तेल उन आशाहीन दीयों में डालकर उनकी अपनी खुशी के लिए समय-समय पर जलाते हैं। तब फिर तुम उनके सामने अपनी सीमा से कहीं अधिक ज्यादा तेज जलने लगती हो, तुम्हारी यही मजबूरी व कमजोरी है। तुम जलते-जलते उन अजनबी परिन्दों में ही घुल-मिल जाती हो और वे समय पाकर तुम्हें उनके कुटिल पंखों को मारकर तुम्हें सदा-सदा के लिए बुझाने का सफल प्रयास करके तुम्हारे इठलाते-इतराते हुए यौवनपूर्ण एवं आभामय जीवन को पूर्ण अंधकार के साये में विलीन कर देते हैं। 
 
प्रिय ज्योति, दीया तो अपनी बाती (ज्योति) के अडिग विश्वास पर अटल रहता है। यदि बाती ही अपने प्रिय दीये के साथ विश्वास प्राप्त करें तो उसमें उस दीये का क्या कसूर है। 
 
दीये का काम जलना नहीं होता, जब भी जलती है तो बाती ही जलती है, वह दूसरों के जलाने से जल जाती है और वह स्वयं कभी नहीं जलती है। दूसरों के द्वारा जलाई जाती है तो दूसरे ही पल जलाने वाले कीट-पतंगों द्वारा बुझा भी दी जाती है।
इस पावन पर्व में दीये और बाती (ज्योति) की गरिमा अखंड रहे। पावन पर्व के शुभ अवसर पर एक अभिशप्त दीये की यही मंगल कामना है। यह 'ज्योति पर्व' सबके लिए मंगलमय हो। 
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