नाराजगी को संवाद दो

जीवन के रंगमंच से...

शैफाली शर्मा
SubratoND
‘दिल की आवाज को जब शब्द मिले, उसने तेरा ही नाम लिया, मेरी आँखों को जब रोशनी मिली उसने तुझे ही खुदा मान लिया, मेरे होठों को जब सुर मिले, उसने तुझे ही सरगम मान लिया, मेरी साँसों को जब खुशबू मिली उसने तुझे प्यार मान लिया... लेकिन मैं गलत थी, ये वो बातें हैं जिसे मैं महसूस करती हूँ, लेकिन तुम कभी नहीं समझ पाए... ’

मेरी इतनी-सी बात से वो नाराज हो गया और जब मैं नाराज होती हूँ, वो पूरी तरह से टूट जाता है। मेरा उदास चेहरा देखने के बाद वो हमेशा एक ही बात कहता है-

‘तुम्हारा चेहरा देखकर ऐसा लग रहा है, मैं इतना गरीब हो गया हूँ कि तुम्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नहीं खिला पा रहा । ’

‘ऐसा क्यों क ह रहे हो, क्या सोच रहे हो इस वक्त? ’

‘तुम्हे ं ’
  ‘दिल की आवाज को जब शब्द मिले, उसने तेरा ही नाम लिया, मेरी आँखों को जब रोशनी मिली उसने तुझे ही खुदा मान लिया, मेरे होठों को जब सुर मिले, उसने तुझे ही सरगम मान लिया, मेरी साँसों को जब खुशबू मिली उसने तुझे प्यार मान लिया...      


‘क्यों? ’
‘पता नही ं’
‘पता तो होगा? ’
‘नहीं आजकल मुझे अपनी सोच के सिरे नहीं मिलते... जैसे बातों का एक कोना मेरे पास हो और दूसरा तुम तक पहुँच नहीं पाता, कहीं अनंत में खो जाता है । ’

‘इसका मतलब मुझे सोच रहे हो फिर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं? ’

‘तुम तो हमेशा मेरे साथ होती हो मेरे अचेतन मन की तरह, जो अनुभव नहीं होता लेकिन किसी अलौकिक तरंगों की तरह मेरी रूह को तरंगित किए हुए रहता है ।’

‘और मेरी तन्हाई का क्या? ’
SubratoND
‘वो तो मेरी खामोशी के साथ ऐसे घुली होती है, जैसे किसी ने चंदन के पेड़ पर गुलाब का इत्र छिड़क दिया हो ।’
‘मेरी उस बात का तुम गलत मतलब निकाल रहे हो ।’
‘नहीं तुम कभी गलत हो ही नहीं सकती, गलती भी तुम तक पहुँचते-पहुँचते सही हो जाती है ।’

‘किसी ने सच ही कहा है प्यार खुशियाँ कम आँसू ज्यादा देता ह ै, आज मैं तुम्हारी आँखों में अपने दर्द के आँसू देख रही हूँ। जैसे पूरा दर्द एक ही आँसू में समा गया ह ो, जो बह जाने के बाद भी लम्बे समय के लिए एक जख्म छोड़ जाएगा, जिसे अपने प्यार के अश्कों से भी भर नहीं सकूँगी...’

‘नहीं ये आँसू तुम्हारा दर्द नहीं, सिर्फ मेरा पूरी तरह से भर जाने का एहसास है, ऐसा लग रहा है मैं अपनी ही बातों से और विचारों से भर चुका हूँ, कुछ समय दो, ये बातें जब जहन से निकल जाएगी। तुम्हारी इन बातों के आने के लिए जगह बन जाएगी। तब तक मुझे इस खामोशी को पी लेने दो... और वो आँसू जिसे तुम अपने दर्द के आँसू कहती हो, आँखों से निकलकर तुम्हारे दामन को भिगो गए हैं, अब सब ठीक से दिखने लगेगा...एकदम सहज... । ’

‘आपने कभी कंस्ट्रक्शन के समय उस दीवार को देखा है जिसे पानी देकर तरी की जाती है? जैसे-जैसे पानी डलता है दीवार उस पानी को पूरी तरह सोख लेती है और उसमें से खुशबू आने लगती है, और वो दिन-ब-दिन मजबूत होती जाती है। आज आपके आँसुओं से अपने दामन को भिगोकर ऐसा ही कुछ अनुभव किया है। अपने रिश्ते की इस दीवार को और मजबूत किया है ।’

‘हाँ अब मैं फिर से अमीर हो गया, तुम्हारे चेहरे से वो नाराजगी जो चली गई ।’
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