लखनऊ पुस्तक मेले में भारतनामा पर परिचर्चा: भारत के नामकरण पर विद्वानों की गहन चर्चा

"भारतनामा– नामकरण का सचनामा" पर केंद्रित परिचर्चा में इतिहास, संस्कृति और राष्ट्र की पहचान के विभिन्न पहलुओं पर हुआ विचार-विमर्श

WD Feature Desk
शुक्रवार, 7 मार्च 2025 (16:14 IST)
लखनऊ। लखनऊ पुस्तक मेले में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित डॉ. प्रभाकिरण जैन की शोध पुस्तक ‘भारतनामा’ पर एक महत्वपूर्ण परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा का विषय था "भारतनामा- नामकरण का सचनामा", जिसमें भारत के नामकरण से जुड़े ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं पर विद्वानों ने विस्तार से चर्चा की।
 
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रवि भट्ट ने की, जबकि मुख्य वक्ताओं में डॉ. रिज़वाना जमाल, इंदु प्रकाश पांडेय और नवलकांत सिन्हा प्रमुख रूप से शामिल रहे। संचालन अलका प्रमोद ने किया और संयोजन का कार्य मनोज सिंह चंदेल एवं शैलेंद्र जैन ने किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने ‘भारत’ नाम की उत्पत्ति, इतिहास में इसकी व्याख्या, आधुनिक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता और विभिन्न ग्रंथों में उपलब्ध साक्ष्यों पर विस्तार से चर्चा की।
 
डॉ. प्रभाकिरण जैन का वक्तव्य: ‘भारत’ नाम की ऐतिहासिकता और भ्रांतियाँ:-
डॉ. प्रभाकिरण जैन ने अपनी पुस्तक ‘भारतनामा’ का सार प्रस्तुत करते हुए बताया कि "भारत" केवल एक भूखंड का नाम नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और इतिहास की जड़ों से जुड़ा हुआ एक दार्शनिक प्रतीक है। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज भी हम अपने देश के नाम को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं, जबकि इसके ऐतिहासिक प्रमाण स्पष्ट रूप से उपलब्ध हैं।
 
उन्होंने कहा कि पश्चिमी इतिहासकारों और औपनिवेशिक प्रभाव के कारण भारत के नामकरण को लेकर कई भ्रांतियाँ फैलाई गईं। उन्होंने अपने अध्ययन में प्राचीन ग्रंथों, ऐतिहासिक साक्ष्यों और पुरातत्वीय प्रमाणों को आधार बनाकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारत का नामकरण अयोध्या में जन्में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हुआ था, न कि किसी बाहरी प्रभाव के कारण।
डॉ. जैन ने प्रसिद्ध लेखक सूर्यकांत बाली की पुस्तक ‘भारत गाथा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत के नामकरण को लेकर कई स्तरों पर छेड़छाड़ की गई है। उन्होंने कहा कि ‘‘पिछले तीन-साढ़े तीन सौ वर्षों में पश्चिमी विद्वानों और उनके राजनीतिक प्रतिनिधियों ने भारत के मूल इतिहास को बदलने का प्रयास किया।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमारे इतिहास को इस तरह से प्रस्तुत किया गया कि हम स्वयं अपने गौरवशाली अतीत को पहचानने में असमर्थ हो गए।
 
वक्ताओं के विचार: भारत के नामकरण पर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
इंदु प्रकाश पांडेय ने कहा कि भारत के नामकरण को लेकर विभिन्न मत उपलब्ध हैं, लेकिन सबसे प्रबल मत यही है कि यह नाम भरतवंश के महान सम्राट भरत के नाम पर रखा गया। उन्होंने यह भी कहा कि ‘इंडिया’ नाम औपनिवेशिक प्रभाव की देन है और यह हमारे मूल पहचान को धूमिल करता है।
 
डॉ. रिज़वाना जमाल ने इस विषय पर ऐतिहासिक शोध का समर्थन करते हुए कहा कि भारत के नामकरण को लेकर किए गए अध्ययन बताते हैं कि इस नाम का संबंध केवल एक भूगोल से नहीं, बल्कि हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा से भी है।
 
नवलकांत सिन्हा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमें अपने इतिहास को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखने के बजाय अपनी परंपराओं और प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि "भारत का नाम भारत ही रहेगा, और इसे किसी भी राजनीतिक या औपनिवेशिक प्रभाव के कारण बदला नहीं जा सकता।"
 
प्राचीन ग्रंथों और पुरातत्वीय प्रमाणों में ‘भारत’ नाम का उल्लेख
परिचर्चा के दौरान यह भी बताया गया कि भारत के नामकरण को लेकर कई प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है। उदाहरण के लिए:
महाभारत में लिखा गया है:
"भारत वर्षमिति ख्यातं" – अर्थात यह भूभाग भारत के रूप में प्रसिद्ध है।
 
विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है:
"उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।"
जिसका अर्थ है कि हिमालय से लेकर समुद्र तक फैला हुआ यह क्षेत्र ‘भारत’ के नाम से जाना जाता है, जहां भारतीय संस्कृति और परंपराएँ पल्लवित होती हैं।
 
जैन ग्रंथों और बौद्ध ग्रंथों में भी भारत के नामकरण को लेकर स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। इतना ही नहीं, पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है कि पहले इस भूखंड का नाम ‘अजनाभखंड’ था, लेकिन अयोध्या में जन्मे ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इसे ‘भरतखंड’ और फिर ‘भारतवर्ष’ कहा गया।
औपनिवेशिक प्रभाव और ‘इंडिया’ नाम की उत्पत्ति
परिचर्चा के दौरान यह भी चर्चा हुई कि ‘इंडिया’ नाम ब्रिटिश शासनकाल के दौरान लोकप्रिय हुआ और इसे भारत के लिए आधिकारिक रूप से अपनाया गया। यह नाम ‘इंडस’ (सिंधु) नदी से लिया गया, जिसे यूनानियों ने ‘इंडोस’ कहा और बाद में इसे ‘इंडिया’ के रूप में जाना जाने लगा। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि ‘इंडिया’ नाम केवल एक औपनिवेशिक विरासत है और हमें अपनी असली पहचान ‘भारत’ को अपनाना चाहिए। परिचर्चा के अंत में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि हम अपने इतिहास की सही व्याख्या करें और भारत के वास्तविक नामकरण को पहचान दिलाएं।
 
डॉ. प्रभाकिरण जैन ने कहा कि ‘‘हमारे देश का नाम केवल एक शब्द नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है। हमें इसे समझना और आने वाली पीढ़ियों को इसकी सच्चाई बताना होगा।’’
 
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य, इतिहास और शोध में रुचि रखने वाले पाठकों, विद्वानों और शोधार्थियों ने भाग लिया। ‘भारतनामा’ परिचर्चा ने भारत के नामकरण को लेकर गहरे विमर्श को जन्म दिया और यह संदेश दिया कि हमें अपने इतिहास और पहचान को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखने के बजाय अपनी परंपराओं और ग्रंथों में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर समझना चाहिए।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

अकेले रहने वाली महिलाएं अपनी सुरक्षा और स्मार्ट लिविंग के लिए अपनाएं ये टिप्स, लाइफ हो जाएगी आसान

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम

होली खेलने से पहले अपनी स्किन पर लगाएं ये प्रोटेक्टिव परत, रंगों से नहीं होगा नुकसान

इस सुन्दर संदेशों से अपने जीवन की खास महिलाओं का दिन बनाएं और भी खास, विशेष अंदाज में कहें हेप्पी विमन्स डे

महिला दिवस पर दिखेंगी सबसे अलग और फ्रेश, लगाएं मसूर दाल से बना ये खास फेस पैक

सभी देखें

नवीनतम

लखनऊ पुस्तक मेले में भारतनामा पर परिचर्चा: भारत के नामकरण पर विद्वानों की गहन चर्चा

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वामा साहित्य मंच का आयोजन

dadu dayal jayanti 2025: संत दादू दयाल कौन थे, जानें उनके बारे में

होली विशेष भांग की ठंडाई कैसे बनाएं, अभी नोट कर लें यह रेसिपी

महिलाओं के लिए टॉनिक से कम नहीं है हनुमान फल, जानिए इसके सेवन के लाभ

अगला लेख