आओ नन्ही गौरेया आओ... दाना खाओ..

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कान्तिकुमार जैन 
 
बचपन में ही जिन पक्षियों से मेरी पहचान हो गई थी, उनमें गौरेया और कौआ प्रमुख हैं। मुझे गौरेया अच्छी लगती है। सहज, शालीन, निराभिमानी और प्रसन्न। वह कोई शोर नहीं करती, न जबरदस्ती स्वयं को आप पर लादती है। वह घरेलू पक्षी है-अहिंसक और शांतिप्रिय। दूसरों की भावनाओं का खयाल रखने वाला कौआ भी घरेलू पक्षी है, पर वह उद्घत और कर्कश है। आप उसका भरोसा नहीं कर सकते। कृष्ण नंद जब आंगन में खेल रहे हैं- माखन रोटी खाते हुए और कौए ने क्या किया।? काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।' यह आजकल की चेन स्नैचिंग की तरह का घटिया काम था। 
गौरेया ऐसा नहीं करती। कौआ बोलता भी तो कैसा है-कांव, कांव कर्कश। गौरेया मृदुभाषिणी है। बहुत हुआ तो चीं-चीं करेगी। अंग्रेजी में 'टी वी टुट टुट।' हिन्दी के प्रकृतिप्रेमी कवि सुमित्रानंदन पंत की चिड़िया 'टी वी टुट टुट' बोलती है। इन दिनों लोकप्रिय नेताओं और अभिनेताओं के जो ट्विटर छपते हैं, वे यही हैं 'टी वी टुट टुट।' कौआ किसी के सिर पर बैठ जाए तो बड़ा अपशगुन होता है। गौरेया के साथ ऐसा नहीं होता। वह तो दो वियोगियों को मिलाने वाला पक्षी है- जायसी ने गौरेया को प्रमाण पत्र दिया है - 'जेहि मिलावै सोई गौरवा।' गौरेया के लिए मेरे मन में बड़ा प्यार है। 
 
बचपन में मैंने एक कहानी पड़ी थी। एक राजा की कहानी पर मुझे अब लगता है कि उस कहानी का शीर्षक होना चाहिए था- एक गौरेया की कहानी। गौरेया ने कैसे अपनी अक्ल और लगन से एक किसान की जान बचाई थी और राजकुमारी से उसका ब्याह करवाया था। आप भी सुनें: 
 
एक राजा था, कहानियां सुनने का बेहद शौकीन, पर उसकी एक शर्त होती थी, कहानी ऐसी हो, जो कभी खत्म न हो। यदि कहानी खत्म हो गई तो कहानी सुनाने वाले का सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। पर यदि कहानी ऐसी हो, जिसका कभी अंत ही न हो तो पुरस्कार भी बड़ा था। आधा राज्य और राजा की एकमात्र सुन्दर बेटी से विवाह। राज्य के और बाहर के भी अनेक प्रतिस्पर्धी आए। कोई एक रात कहानी कह पाया कोई दो रात। तीन-चार रातों तक कहानी सुनाने वाले भी आए, पर सबका अंत एक ही होता, सिर धड़ से अलग कर दिया जाता। पर आधे राज्य की और उससे बढ़कर राजकुमारी के पाणिग्रहण की संभावना इतनी आकर्षक थी कि लोग सिर हथेली पर रखे खींचे चले आते और बाजी हारकर प्राण गंवा बैठते। 
राजा के राज्य में एक युवा किसान भी था। बड़ा विदग्ध, धैर्यवान, समझदार और चतुर। उसने एक रणनीति बनाई और चला आया राजा को कहानी सुनाने। लोगों ने लाख मना किया, पर वह युवक इतना आत्मविश्वास दीप्त था कि जैसे उसे पता हो इस पूरे प्रसंग का अंत क्या होगा? उसने कहानी शुरू कीः एक था राजा। राजा ने टोका, तुमको कहानी की शर्त तो पता है न ! कहानी खत्म हुई कि तुम गए काम से। युवक ने राजा को शर्त के उत्तरार्ध की याद दिलाई। राजा ने हुंकारी भरी। युवक ने कहानी का सिरा पकड़ाः
 
एक था राजा । उसके राज्य की धरती बड़ी उर्वर थी। उसमें बहुत धान होता। राजा ने राज्य में बड़े-बड़े भंडार बनवा रखे थे। उन भंडारों में धान इकट्ठा की जाती। राज्य में सूखा पड़े, अकाल आए तो भी कोई भूखा न मरे। प्रजा तो प्रजा, उस राजा के राज्य में पशु-पक्षी भी बड़े सुखी थे। गौरेया तो जब चाहती, भंडार में आकर दाना ले जाती। एक दिन एक गौरेया आई और भंडार से एक दाना लेकर उड़ गई -फुर्र। फिर एक चिड़िया और आई और एक दाना लेकर उड़ गई - फुर्र। फिर एक चिड़िया और आई और एक दाना लेकर उड़ गई -फुर्र । राजा इस फुर्र-फुर्र से उक्ता रहा था, बोला- कहानी आगे बढ़ाओ। भावी दामाद बोला- कैसे बढ़ाएं? राजा के राज्य में न धान की कमी थी, न गौरेयाओं की । उसने फिर फुर्र-फुर्र शुरू की। एक रात बीती, दूसरी बीती, तीसरी के बाद चौथी आई। अब राजा को गुस्सा आ गया कहानी आगे बढ़ा, नहीं तो तेरी गर्दन धड़ से अलग हो जाएगी। किसान चतुर था। उसने कहा शर्त तो यही है कि जब तक कहानी खत्म न हो, तब तक आप कुछ नहीं कर सकते। 
 
उसने फिर शुरू किया- एक गौरेया आई और एक दाना लेकर उड़ गई-फुर्र। राजा को पसीना आ गया। समझ गया कि इस बार किसी चतुर आदमी से पाला पड़ा है। आखिर में हार कर राजा ने उस चतुर युवक को अपना आधा राज्य सौंप दिया और राजकुमारी के साथ उसके सात फेरे करवाए।
 
बचपन की यह कहानी मेरा पीछा नहीं छोड़ती। मैंने इस कहानी से यह सीखा कि आदमी में धैर्य हो और वह थोड़ी समझदारी से काम ले तो जीत उसी की होती है। उसके सहायक भी भरोसे के होने चाहिए। गौरेया आदमी की सबसे अच्छी दोस्त है। वह संकट में आपका साथ देती है। चीन में वहां के नेताओं ने हरित क्रांति के फेर में एक नारा दिया थाः 'एक गौरेया मारो और एक चवन्नी ले जाओ।' एक चवन्नी के लालच में वहां की गौरेया की आबादी बहुत कम हो गई। फलस्वरूप खेती के दुश्मन कृमि-कीटों की संख्या बढ़ गई। चीनी नेताओं को अपनी गलती समझ में आई। उन्होंने अपनी नीति बदली और देश में कृषि उत्पादन की वुद्घि के लिए उन्हें गौरेयाओं का पुनर्वास करना पड़ा।
 
बचपन की प्यारी गौरेया का मैं कुछ भला कर सकूं, इसका मौका पिछले साल मुझे अनायास ही मिला। विगत वर्ष सितंबर-अक्टूबर की एक सुबह मैंने देखा कि मेरे घर की बैठक झड़ चुकी थी, फिर उसमें खिड़की के नीचे ये तिनके कहां से आए? पत्नी ने बताया कि ये तिनके उस घोंसले के हैं, जो गौरेया इन दिनों खिड़की की मच्छर जाली और कांच के बीच बना रही है। चिड़िया अपनी चोंच में एक तिनका दबाकर लाती और बड़ी जुगत से खिड़की की मच्छर जाली और कांच के बीच जमाती। उसका चिड़ा भी इस काम में उसकी मदद कर रहा था। मैंने कहा कि उसका घोंसला अलग करो, इससे बैठक की साफ-सफाई में दिक्कत होती है, पर पत्नी मुझसे सहमत नहीं हुई। पत्नी ने बताया कि पिछले साल चिड़‍िया ने अपना घोंसला सामने के प्रवेश द्वार पर लगी चमेली में बनाया था, पर जब चमेली से आंगन में कचरा बढ़ने लगा तो चमेली का वितान अलग करना पड़ा था। वितान अलग हुआ तो गौरेया का घोंसला भी उजड़ गया। अब गौरेया दंपत्ति अपने आशियाने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में था। लगता है उसे खिड़की के कांच और मच्छरजाली के बीच का ठिकाना सुरक्षित लगा। अब उसे उजाड़ना ठीक नहीं। घोंसला मिटेगा तो बेचारी के अंडे कहां होंगे? वह आसन्न प्रसवा है। फिर उसके चूजे कहां जाएंगे? 
 
पत्नी गौरेया के मातृत्व को लेकर चिंतित थी। मुझे उसकी चिंता सही लगी। मुझे लगा सुरुचि और व्यवस्था के नाम पर किसी का घर-बार उजाड़ना ठीक नहीं। हमने उस साल घर की पुताई नहीं करवाई। कहीं पोतने वाले ने घोंसले को उखाड़ दिया तो, वहां कोई खतरा मोल नहीं लिया जा सकता। 
 
एक दिन सबेरे हम लोग चाय पी रहे थे कि घोंसले से चींचीं की आवाजें आई। गौरेया के अंडे फूट गए थे। मां प्रसन्न थी, पिताजी भी अपने पितृत्व की खुशी में फुदक-फुदककर नाच रहे थे। पत्नी ने आंगन में एक सकोरे में पानी भर दिया और मुरमुरे फैला दिए थे। 
 
अम्माजी आतीं, चोंच में दाने समेटतीं और चूजों को दाना खिलातीं, उसे चोंच में भरकर पानी ले जाते भी हमने यह चोंचलेबाजी देखी। पर यह चोंचलेबाजी बहुत दिनों तक नहीं चली। चूजे बड़े हो गए। वे अपने पर खोलने लगे। घोंसले से बाहर उड़ने लगे। खुद दाने चुगने लगे और चोंच भी तर करने लगे। चिडिया और चिड़े ने उन्हें इस लायक बना दिया कि वे अपनी देखरेख स्वयं कर सकें। 
 
एक दिन हमने देखा गौरेया का आशियाना खाली है। अब हमारी बैठक में तिनके नहीं गिरते। अब हम खिड़की के पल्ले खोलने लगे हैं। थोड़ी-सी संवेदना से हमने गौरेया की एक पीढ़ी को बचा लिया। 
 
एक विस्थापित गौरेया का पुनर्वास कर हमें बड़ी खुशी हुई। पत्नी ने उसके बाद यह नियम ही बना लिया है कि वह रोज सबेरे आंगन में रखे सकोरे में पानी भर दे और नीचे मुरमुरे, कनक बिखेर दे। आओ गौरेया आओ, पानी पियो और दाना खाओ। आखिर तुमने एक युवा की जान बचाई और राजकुमारी से उसकी शादी करवाई थी। उस किसान का जो तुमने भला किया था, उसका प्रतिदान संभव नहीं है, पर तुम्हारे लिए हम जो भी थोड़ा बहुत कर सकें, हमें करना चाहिए।
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