कार पर सवार सरकार

Webdunia
- सूर्यकांत नाग र
Devendra SharmaND
भैया काहे पूछ रहे हैं कि कहाँ है सरकार! इल्लियों की तरह जीपो ं, सफेद झक एम्बेसेडरों और अप्सराओं-सी इंडिकाओं में भटकती सरकारें तुम्हें नजर नहीं आती ं? उन पर लिखा तो होता है- 'राज्य शास न' या 'भारत सरका र' । कई बार उनमें सरकार के बीवी-बच्च े, भाई-भतीजेबैठे-इतराते दिखाई नहीं देत े? उनके टॉमी को भी यह सुख-सौभाग्य प्राप्त होता रहता है। जीभ निकाल े, खिड़की से टुकुर-टुकुर झाँकता रहता है। ऐसे में भोला-भाला भ्रमित ग्रामीण कभी टॉमी को देखता है और कभी कार पर लिखी 'भारत सरका र' की इबारत को। कथा-सम्राट प्रेमचंद तो निरे नासमझ थ े, जो वर्षों पूर्व कह गए कि आजादी के बाद भी यदि सत्ता और संपत्ति का प्रभुत्व बना रह ा, हमारे कर्णधार बड़ी-बड़ी मोटरों में घूमते रह े, बड़े-बड़े बंगलों में रहते रह े, स्वार्थांध हो लूट-खसोट करते रहे तो ऐसी सरकार और ऐसे सुराजका क्या मतल ब? गनीमत कि गाँधी और प्रेमचंद यह सब देखने को नहीं रहे। चोर ी, लू ट, हत्य ा, अपहर ण, भ्रष्टाचा र, जातिवा द, भ्रष्ट राजनीति और आतंकवाद के रूप में सरकार का चेहरा नजर नहीं आत ा? फिर काहे खामोखाँ सिर चाट रहे हो!

कितनी कार्यकुशल है सरका र, जो चुनाव में धाँधली रोकने के लिए इतने वर्षों बाद भी सचित्र मतदाता परिचय-पत्र तक बनवाकर वितरित न कर सकी। जहाँ यह काम हुआ ह ै, वहाँ भी आधा-अधूरा है। उसमें अनेक विसंगतियाँ हैं। कहीं मतदाता का नाम गलत है तो कहीं उसका जनकही बदल गया है। कहीं चित्र ही गलत लगा है। झूठ बोलूँ तो कौवा काटे! एक मतपत्र में मतदाता के चित्र के स्थान पर श्वान महोदय का चित्र छपा था। परिचय-पत्र बनाना क्या इतना कठिन काम है कि वह भी सलीके से नहीं किया जा सकता।

लेकिन सलीका हो तो फिर सरकार कैसी! चौराहों पर सत्ताधारियों की तरह सिर उठाए पशुओं को शहर से हकालने की कवायद हर स्तर पर कई-कई बार की ग ई, लेकिन दो-चार दिन में ही मुहिम की हवा निकल गई। मुँह चिढ़ाते हुए पशु वहीं पसरे हुए हैं। मनुष्य को पशुओं की भाँति हाँकने वाली सरकार वास्तविक पशुओं को नहीं हँकाल पा रही है।

करोड़ों की योजनाओं की घोषणाएँ करना और कागजी घोड़े दौड़ाने का नाम ही सरकार है। इनमें से कितनी शुरू होती ह ै, कितनी कारगर सिद्ध होती ह ै, कितनी क्रियान्वित हो पाती है ं, यह देखना आपका काम ह ै, शासन का नहीं। घोषणाएँ अखबारों की सुर्खियाँ पा जाए ँ, बस। छोटे-से-छोटे काम के लिए वाहवाही बटोरने का अवसर नहीं छोड़ती सरकार। ग्रामीण सड़क निर्माण योजना में सड़क की छाती पर चंद दिनों में ही कितने फफोले उभर आए है ं, यह बेचारा सड़कछाप ही जानता है। शहरों में आए दिन लाखों की चोरियाँ हो रही है ं, महिलाओं के गले से चेन झपटी जा रही है ं, रंगबाजी हो रही ह ै, पर कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता- 'तेज चाक ू, धौंस-डपटे ं, चेन छीन ी, मारपीट/अब शहरों की बस यही पहचान है ।'

मूल्यहीनता बढ़ रही ह ै, आचरण अनैतिक हो रहे है ं, अविश्वास की खरोंचें गहरी होती जा रही हैं- 'इस शहर में कोई बारात हो या वारदात/ अब किसी भी बात पर खुलती नहीं है खिड़कियाँ ।' आचरण की शुचिता का दायित्व जिन पर ह ै, वे ही संसद और विधानसभाओं में हंगामा बतारहे हैं। धर्म और राजनीति का घालमेल करने वाले भूल जाते हैं कि लोकहित में निष्पक्ष रूप से कर्तव्यों का पालन करना ही सच्चा राजधर्म है। कोई भी राज्य लोक-कल्याण के अपने धर्म से कैसे च्युत हो सकता है! येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहना ही सरकारों का धर्महो गया है। अधर् म, धर्म बन गया है। पहले अधर्म के नाश के लिए राम और कृष्ण अवतरित होते थ े, अब रावण और कंस जन्म ले रहे हैं।

स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए सरकारें वंचितो ं, दलितो ं, पिछड़ों को स्टेपनी के बतौर इस्तेमाल करने में दक्ष है। मंचों के सामने बैठाकर उन्हें उन्हीं का दुःख सुनाती ह ै, लेकिन शोषित खुद अपना दर्द इस प्रकार बयान करते हैं- 'गणतंत्र की झाँकियों में/अपनी टोली के साथ नुमाइश बनकर कई-कई बार पेश हुए हम/पर गणतंत्र नाम की कोई चिड़िया/कभी आकर नहीं बैठी हमारी मुँडेर पर ।'

कॉकरोच कम हो रहे हैं। मुर्गियाँ मर रही हैं। किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं। महँगाई की मार से त्रस्त आमजन। जंगलों में वन्य प्राणियों की संख्या घट रही है और राजधानियों में 'आदमखोरो ं' की जमात बड़ी होती जा रही है। ऐसे में हृदय पर हाथ रखकर विचारिए कि कैसी सरकार की दरकार है आपको!
Show comments

इन 3 कारणों से मुंह में उंगली डालता है बच्चा, भूख के अलावा और भी हो सकते हैं कारण

स्ट्रेस फ्री रहने के लिए बस ये काम करना है ज़रूरी

क्या आप भी सलाद में खीरा और टमाटर एक साथ खाते हैं? जानिए ऐसा करना सही है या गलत?

एग्जाम में अच्छे नंबर लाने के लिए बच्चों को जरूर सिखाएं ये बातें

जन्म के बाद गोरे बच्चे का रंग क्यों दिखने लगता है काला?

चलती गाड़ी में क्यों आती है नींद? जानें इसके पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण

मजेदार बाल कविता : अभी बताओ राम गोपाल

शादी के बाद नई दुल्हन की ठुकराई थाली खाते हैं पति , जानिए थारू दुल्हन की पहली रसोई का अनोखा रिवाज

बाजार में मिलने वाले ज्यादातर फूड प्रोडक्ट्स में होता है पाम ऑयल का इस्तेमाल, जानिए कैसे है सेहत के लिए हानिकारक

जलेसं के मासिक रचना पाठ में शब्दों में जीवन पर परिचर्चा