नल, जल और बल की महत्ता

प्रेमचंद द्वितीय

Webdunia
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पाँच साल में एक बार टपकने वाले नेताजी हों या फिर किसी भी दिन आ धमकने वाले मेहमान, इन सब पर भारी पड़ते हैं आठ-आठ दिन में एक बार चैतन्य होने वाले नल महाराज। और जब ये चैतन्य होते हैं, तो इन नल के जल को पाने के लिए बल का होना निहायत जरूरी होता है।

जल संकट के दौर ने नल की महत्ता काफी बढ़ा दी है। लाल, पाल और बाल की तर्ज पर जल, नल और बल की तिकड़ी इन दिनों हावी है। नल और उसमें बहने वाले जल की अहमियत बलशाली नेताजी को उस दिन पता चली, जब चुनावी दौरे में उनकी सभा जम ही रही थी कि सभा में पीछे खड़े लोगों में से एक ने आवाज लगा दी, "नल आ गए हैं।" फिर क्या था! लोग उठ भाग खड़े हुए। जमी-जमाई सभा पर नल ने पानी फेर दिया और नेताजी हाथ मलते रह गए।

मुए इस नल और उसमें कभी-कभार बहते हुए जल ने बल प्रयोग के लिए हर व्यक्ति को आमादा कर दिया है। कहते हैं कि अगला विश्वयुद्ध जल के लिए लड़ा जाएगा। फिलहाल तो जल के लिए मोहल्ले-मोहल्ले में युद्ध की स्थिति है। नल में आने वाले पानी के लिए झगड़े-फसाद ने थाने-कचहरी में मामले बढ़ा दिए हैं।

एक जमाने में जब कुएँ-बावड़ी, तालाब लबरेज भरे होते थे, नदी कल-कल बहती थी, तब इन नलों की इमेज दो कौड़ी की भी नहीं थी। इनको कोई पूछता नहीं था। पालिका वाले नल कनेक्शन के लिए मनुहार करते थे। समय बदला और कल-कल बहने वाली नदी का स्थान जल-जल बहने वाले नल ने ले लिया। नल में जब जल बहता है तब नल कितना सुहाना लगता है, लेकिन आठ-आठ दिन तक पानी की एक बूँद न आने पर ये ही नल कितने वीराने लगते हैं! ठूँठ के ठूँठ दिखते हैं!

इन नलों ने तो लोगों के रीति-रिवाज और कार्यक्रमों को धूल धानी करके रख दिया है। पुराने विचारों वाली दादी मॉं को भगवान को चढ़ाने के लिए ताजा जल लगता था। उन्होंने भी अब आठ दिन पहले से भरे हुए जल से ही भगवान की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी है। "बासी" पानी को फेंकने का रिवाज तो बंद हो ही गया। उसकी जगह "बासी" पानी को सहेजने का रिवाज शुरू हो गया है।

इन नलों ने रीति-रिवाज पर तो पलीता लगाया ही, नलों के कारण लोगों के तमाम कार्यक्रम भी ग़ड़बड़ा गए हैं। आठ दिन में जब नल चैतन्य होते हैं और उनमें पानी आता है तो हर कोई नल आने के पल का बेसब्री से इंतजार करता है। पालिका द्वारा पानी देने में चंद मिनटों की देरी के पल लोगों को युगों की देरी का एहसास कराते हैं।

हफ्ते में मात्र एक दिन "नल" डे होने से हर आदमी अपना आने-जाने का कार्यक्रम इस "डे" को छोड़कर बनाता है। निकट के रिश्तेदारों में तो वह पहले से ही संदेश कर देता है कि फलाँ वार को कार्यक्रम मत रखना, हम नहीं आ सकेंगे, चूँकि इस दिन हमारे यहाँ नल आते हैं। नल आने के दिन यदि घर पर कोई मेहमान आ जाए तो वह अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है। उसकी आवभगत भी फीकी ही रहती है।

नल, जल और बल के इस काल में जब नल जल लेकर आते हैं तो बल के जरिए ही पानी मिलता है। इसीलिए तो नल की जय बोलना पड़ेगी। जय हो, नल देवता!

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