आज अखबार में छोटे-छोटे समाचार चुग रहा था तो एक समाचार पर नजर गई। समाचार था कि एक परिवार मेहमान बनकर उधर किसी शादी में गया और इधर चोरों ने मेहमान बनकर उसके घर में चोरी कर डाली। दोनों शादी के मजे में। ऐसे समाचार मै ं, आड़े-तिरछ े, साल-दर-साल पढ़ता आ रहा हूँ। पर इस साल जरा ज्यादा हो गया। एक तो ठंड ी, ऊपर से शादियाँ ।
चोरग ण, डबल खुश होक र, ' सेव ा' करते हैं। देखा जाए तो कड़ाके की ठंड में चड्डी-बनियान पहनकर थर-थर काँपते हुए चोरी करना प्रकृति के खिलाफ कोई मामूली तप नहीं है। मगर भगवान औरजेवर-नोट तो तपस्वी को ही मिलते हैं न? स ो, जो ठंडी में जाग ा, वह पाय ा, और जो रजाई ओ ढ़, तकिए पर गाल किए पड़ा रह ा, वह खोया ।
एक ही इंसा न, एक ही खुदा और एक ही घर। पर नतीजे जुदा-जुदा। कहा भी ह ै, कर्मवीर को लक्ष्मी पसंद करती ह ै' गरज कि जो शादी मे ं, ताला डालकर चला जा ए, वह निकम्मा। जो पराए घर को अपना जानकर ताला तोड़ डाले और पंछा पहनक र, अंडरवियर की थैली में नोट-जेवर बाँधकर निकल जा ए, वह कर्मठ ।
आगे यह हुआ कि शादी में छप्पन व्यंजन ठूँसकर और अनुपात में कम व्यवहार देक र, सौंप चूसता हु आ,
देखा जाए तो कड़ाके की ठंड में चड्डी-बनियान पहनकर थर-थर काँपते हुए चोरी करना प्रकृति के खिलाफ कोई मामूली तप नहीं है। मगर भगवान औरजेवर-नोट तो तपस्वी को ही मिलते हैं न? सो, जो ठंडी में जागा, वह पाया, और जो रजाई ओढ़, तकिए पर गाल किए पड़ा रहा, वह खोया।
भाग्यवान परिवार घर पहुँचा तो देखा कि वह तो बड़ा दुर्भाग्यवान है। चोर घर साफ कर ग ए, जब वे थाली में हलवा साफ कर रहे थ े, लेकिन अब पछताने से क्या होता है। चोर दूर निकल गए होंगे और थाने में बैठकर अपने वर्दीधारी भाइयों से हिस्सापत्ती कर रहे होंगे।
कित्ता अच्छा लगता हैगा कि पिछले कुछ सालों में अकल की घोड़ ी, कूदती-फाँदत ी, कित्ते दूर चली गई। हर क्षेत्र में विकास उफनाया पड़ रहा है। काला कह ो, सफेद कहो। पर है यह अकल का विकास ।
विकासवाद के हंडे की तेज रोशनी में चोर-समाज भी बहुत आगे निकलगया। वैसे चड्डी-बनियान लाख वही रहे हो ं, पर वो क्या बोलते है ं, दिमाग से सेवन-ओ-क्लॉक ब्लेड हो गया। पुराने चोर शानो-अदब के सवाल पर नाराज हैं। पर वैज्ञानिक दौर का चोर अब रिस्क नहीं लेता। केलकुलेट करता है। मोबाइल से प्लान करता है। चोरों के विकासवाद ने चोरी का शॉर्टकट निकाला। चोर और घर मालिक दोनों का भल ा, न खू न, न खराबा। बस गृह प्रवेश कर ो, जब साला घर मालिक और उसके लुगाई-बच्चे घर पर मौजूद नहीं हैं। बस काम फतह।
खबर छप गई है। पर मैं संवाददाता होत ा, तो उन चोरों का इंटरव्यू भी लेता। 'क्यों चोरज ी, चोरी के पूर्व की प्राथमिक तैयारियाँ क्या होती है ं?'
वह कुछ ऐसा कहत ा, जैसा मेरे पहचान के एक पोलिसवाले ने बतलाया- 'देखिएज ी, पहले हमने पोस्टमैन से पूछकर पता लगाया कि किस-किसके घर शादी के निमंत्रण पत्र आए हैं।
' फि र?'
' फिर हमने उस घर वाले को छाँट ा, जिसके यहाँ काम बनाया ।'
' आपको डर नहीं लगा ।'
' डर कैस ा? जिसका माल अंटा ले जाना थ ा, वह मूरख तो शादी में मजे कर रहा था ।'
' मान लो वह आ जाता त ो?'
' यू आर राइट। पर हमने फील्डिंग कर रखी थ ी?'
' मान्यव र, क्या फील्डिंग का अर्थ समझाएँग े?'
' देखिएजी। आजकल मोबाइल आ गया है। हमने अपने एक कलिग से कहा कि तू मोबाइल लेकर मंडप के फाटक पर खड़ा रह। अगर अपना शिकार घर की तरफ निकले तो मोबाइल कर दे ।'
' पर जरूरत ही नहीं पड़ ी?'
' जी हा ँ, जी हाँ ।'
अखबार में कुछ ऐसा भी छपना कि चोरी कैसे कर ी? अगली बार कैसे करेंग े? अब नागरिक शादी-ब्याह में जाए या नही ं? मेरा ख्याल ह ै, जाना चाहिए। बस फर्क इतना है कि किसी के घर में डोकरा-डोकरी होय ँ, तो घर वाले उनकी खिचड़ी बनाकर रख जाएँ और जाते-जाते बोलजाएँ- पिताज ी, मातारा म, जागते रहन ा, आज चोर जरूर आएँगे क्योंकि हम शादी में जा रहे हैं। आप लोग जरा चौकस रहें। तो घर की ज्वाइंट कमाई बच जाएगी ।'
गरज कि शादी-ब्याह बंद नहीं किए जा सकते तो घर को चोरी से बचाने का यही रास्ता है कि घर पर अँगरेजी डॉग या बुजुर्गों को छोड़ जाएँ और निमंत्रण-पत्र मिलते ही सारा कैश बैंक में जमा कर दें। नागरिको ं, चोरों से बचने का जिम्मा आपका है। पोलिस का नहीं। उसको पहले ही भोत काम है। गलत बोलता होऊ ँ, तो बोलो!