व्यंग्य रचना : रायचंद

पं. हेमन्त रिछारिया
विश्व में एक विशेष प्रकार की मनुष्य जाति पाई जाती है उसका नाम है- 'रायचंद'। वैसे तो यह विश्व के सभी देशों में पाए जाते हैं किंतु हमारे देश में रायचंदों की मात्रा बहुतायत है।
 
ये आपको अत्यंत सुलभ रूप से किसी चाय-पान की दुकान, चौक-चौराहों, चौपालों और आजकल तो सोशल मीडिया व न्यूज़ चैनलों पर भी किसी ना किसी मुद्दे अथवा समस्या पर अपनी राय देते आसानी से दिख जाएंगे।
 
रायचंद का मुख्य कार्य किसी भी मसले अथवा ज्वलंत समस्या पर बिन मांगे अपनी निर्मूल्य राय का देना होता है। रायचंद बिनमांगी राय देने में सिद्धहस्त होते हैं। किसी भी ज्वलंत समस्या व मुद्दे पर अपनी राय तत्क्षण प्रकट करने का हुनर इन्हें बखूबी आता है, भले ही उस क्षेत्र से इनका दूर-दूर तक कोई संबंध ना हो।

 
रायचंद के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता, ये किसी भी उम्र के हो सकते हैं। जब भी देश अथवा कभी-कभी तो विदेश में भी कोई संकट या समस्या आती है तो उस मसले पर यह अपनी निर्मूल्य राय देकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में पीछे नहीं रहते। रायचंद 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा में घोर विश्वास करते हैं और समूची वसुंधरा को अपना कुटुंब मानते हुए विश्व के किसी भी देश के किसी भी कोने में होने वाली घटनाओं व मुद्दों पर अपनी राय प्रकट करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। 
 
एक फ़िल्मी गीत है 'ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन' किंतु रायचंद इसे अपने संदर्भ में कुछ इस प्रकार लेते हैं- 'ना भौगौलिक सीमा हो, ना ज्ञान का हो बंधन...।' अत: वे हर मुद्दे पर अपनी राय प्रकट कर अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं जैसे अमुक देश में किस व्यक्ति का राष्ट्रपति बनना हमारे देश के फायदेमंद होगा, देश के आर्थिक हालात को बेहतर करने के लिए वित्तमं‍त्री को क्या करना चाहिए, बजट कैसा होना चाहिए, सरकारी नीतियां कैसी बननी चाहिए, पड़ोसी देशों से हमारे संबंधों को कैसे सुधारा जाना चाहिए, हमारी विदेश नीति कैसी होनी चाहिए, सेना की रणनीति कैसी होनी चाहिए, क्रिकेट टीम में किस खिलाड़ी को खिलाया जाना चाहिए, अमुक फ़िल्म में अभिनेता ने कहां चूक की, निर्देशक की क्या खामी रही, संगीतकार कहां गड़बड़ी कर गया, गायक कहां बेसुरा हो गया आदि-आदि। 
 
रायचंद कहीं भी; किसी भी क्षेत्र में अपनी राय दे सकता है। रायचंद के लिए शिक्षा का कोई न्यूनतम स्तर तय नहीं होता, बस आपमें मुट्ठाठेली करने की प्रबल योग्यता होनी चाहिए। मुट्ठाठेली अर्थात् वार्तालाप में घुसपैठ कर अपनी बात प्रमुखता से रखना एवं उस पर अड़े रहना। इसके साथ ही थोड़ी-सी निर्लज्जता यदि आपमें है, फिर तो 'सोने-पे-सुहागा' वाली बात चरितार्थ हो जाती है। इसके अतिरिक्त रायचंद का एक विशेष गुण भी होता है जो उसे आम नागरिकों से अलग 'रायचंद' जैसी विशिष्ट श्रेणी में ला खड़ा करता है, वह गुण है-अपनी राय पर स्वयं अमल ना करना।

 
उदाहरण के तौर पर रायचंद यदि आपको देशभक्ति पर राय दे रहे हैं तो स्वयं वे कितने बड़े देशभक्त हैं या देशहित व देश की प्रगति के लिए उन्होंने क्या-क्या कार्य किए हैं यह पूछना आपकी सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। ऐसी अशिष्टता करने से रायचंद भड़क जाते हैं और आपको शारीरिक चोट भी पहुंचा सकते हैं। इनका कार्य केवल दूसरों को राय अर्थात् सलाह देना होता है स्वयं उस पर अमल करना नहीं। वर्तमान काल में हमारे देश में रायचंद नामक प्रजाति तेजी से फल-फूल रही है। अब इससे देश व समाज को क्या लाभ हो रहा है यह तो कोई रायचंद ही बेहतर बता सकता है।
 
लेखक- ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

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