गधे कृतज्ञ हैं और गदगद भी

व्यंग्य

Webdunia
ज्ञान चतुर्वेदी
ND
SUNDAY MAGAZINE
एक था गधा। लदान आदि के गधयोचित कर्तव्यों से फुर्सत मिली तो मैदान में गधे की तरह खड़ा हो गया। खड़ा रहा मौन। मन में गधापचीसी वाले विचार। ऐसे में गधा और भी गधे टाइप निकल आता है। सौ टंच गधा।

तभी उसका छोटा वाला बच्चा वहाँ आ गया। नन्हा गधा कहेंगे हम उसे। गधे का बच्चा कहना उचित न कहाएगा क्योंकि गधा भले ही बुरा न माने परंतु हम आदमियों के बीच तो ऐसा कहना गाली ही माना जाता है। सो नन्हे गधे ने संपूर्ण गधे से एक ऐसी पते की बात पूछी जो आदमियों में फिलॉस्फर ही पूछा करते रहे हैं।

उसने पूछा, 'पापा ! मैं गधा हूँ कि आदमी?' नन्हा गधा अस्तित्व का प्रश्न पूछ रहा था। क्यों भला? नन्हे से गधे के मन में ऐसा सवाल क्योंकर उठा? दरअसल, धोबी का बेटा पढ़ाई में निखट्टू है-फेल हो गया दसवीं बोर्ड की परीक्षा में तो धोबी उसे फटकार रहा था कि तेरी ट्यूशन पर इत्ता खर्च किया मैंने और तू तो एकदम गधा निकला रे !

वहीं टहलते नन्हे गधे ने यह बात सुनी तो चकित रह गया। यदि धोबी का बेटा रामू गधा है तो फिर मैं क्या हूँ? क्या मैं आदमी हूँ? चलो, पापा से पूछें। पापा कितने भी गधे हों, एक उम्र तक बच्चे को भरोसा रहता है कि वे सब जानते हैं। गधे ने अपने बच्चे की सारी बातें सुनीं और हँसकर बोला 'ये आदमियों की बातें हैं रे !...समझना कठिन ।...तू इतना जान ले कि तू गधा है, बल्कि गधे का बच्चा है। समझा?' नहीं समझा वह । पूछने लगा, 'फिर रामू के पापा ने उसे गधा क्यों बोला?'

' वह दूसरी तरह का गधा है बेटा..'

' वह अपने से अलग गधा होता है क्या?'

गधा पसोपेश में। कैसे स्पष्ट करे? फिर भी समझाया, 'देख, रामू आदमी है परंतु फिर भी गधा है। आदमियों में दूसरी तरह के गधे होते हैं । ...रामू इतना गधा है कि दसवीं की परीक्षा भी पास नहीं कर पाया?'

' जो परीक्षा में फेल हो जाएँ वे गधे होते हैं क्या पापा?'

' आदमी लोग यही कहते हैं..'

' हम लोग किस परीक्षा में फेल हुए थे पापा?'

' बेटा! हम गधे बिना फेल हुए ही गधे कहाते हैं।'

' यह क्योंकर?'

' अपनी-अपनी किस्मत बेटा...' गधे ने कहा । और क्या कहता?

' तो हम लोग भी क्यों न दसवीं की परीक्षा में बैठ जाएँ पापा? पास हो गए तो फिर हम गधे नहीं रहेंगे।'

' उससे क्या होगा बेटा ?...हम गधे न भी रहे तो भी आदमी हमें आदमी तो मानेगा नहीं।'

' क्यों पापा ?'

' आदमी की फितरत ही ऐसी होती है बेटा!...हम गधों की तो छोड़। आदमी तो आदमी को भी आदमी नहीं बनने देता है। ...आदमी गरीब, दलित, स्त्री- इनको भी आदमी नहीं मानता। ...तू गधा बनकर ही खुश क्यों नहीं रहता रे? गधे का बच्चा बना तो यह तेरी खुशकिस्मती है । फँस जाता आदमी का बच्चा बनकर। अभी तू प्री नर्सरी में इत्ता बड़ा बस्ता ढोकर ले जा रहा होता जित्ता तेरे बाप पर धोबी भी नहीं लादता है।'

सब सुना उसने पर गधे का बच्चा था वह भी। बोला, 'पर मैं दसवीं की परीक्षा में बैठूँगा अवश्य। बड़ा हो लूँ फिर...'

गधे ने मैदान में उड़ रहे अखबार को पढ़कर बताया कि तू क्या कोई भी अब दसवीं की परीक्षा में नहीं बैठ पाएगा, सरकार अब सबको यूँ ही पास करा करेगी।'

' क्यों पापा ? क्या दसवीं बोर्ड की परीक्षा अब बंद हो जाएगी?' 'हाँ बेटा, सरकार चाहती है कि अब कोई गधा न रहे.. ।' हो भी तो पता न चले ।"

' परंतु जो गधे हों, उन आदमियों का क्या?...अपना रामू भी क्या अब गधा न कहाएगा?'

ND
' हाँ बेटा, सरकार अब गधों का गधा नहीं कहलवाना चाहती। गधे रहें पर पता न चले। जो हों वे बारहवीं फेल आदमी कहाएँ, बस। अब आदमी चाहे तो भी गधा नहीं हो सकता। अब बस हमीं गधे रहेंगे। आदमी गधा भी होगा तो पता न चलेगा।' खुश हो जा बेटा कि अब हम ही गधे हैं । कोई और नहीं।

... गधों की दुनिया में यह बड़ी क्रांति हुई है कि अब हर ऐरागैरा गधा नहीं कहा जा सकता । अब गधा होने के लिए गधा ही होना होगा।' कहते-कहते खुशी में दुलतियाँ झाड़ता गधा नाचने लगा। गधे का बच्चा भी नाच रहा है। वो तो धोबी ने आकर दो डंडे मारकर नाच बंद करा दिया वर्ना देश के शिक्षा मंत्री की ऐसी डाँट पड़ती कि सारा गधापन निकल जाता।

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