जॉनी की पाती बॉनी के नाम

डॉ. निखिल जोशी

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प्रिय मित्र बॉन ी,
हाय!
मेरा यह पत्र पाकर तुम्हें आश्चर्य तो बहुत हो रहा होगा। इक्कीसवीं सदी के इस मोबाइल युग में कौन कॉलेज स्टूडेंट पत्र लिखता है? लेकिन हे मेरे परम मित्र तुम मुझे माफ करना। वैसे गलती मेरी भी नहीं है। कमबख्त किस्मत ही ठीक नहीं चल रही है। मैंने जिस कंपनी की सिम खरीदी थी, उसने अपने कॉल के रेट बढ़ा दिए हैं।

मैं इस बढ़े हुए रेट पर भी तुम जैसे अनमोल दोस्त से बात कर लेता लेकिन क्या करूँ, तुम्हारी होने वाली भाभी से मोबाइल पर बातें करने में ही मेरे मोबाइल का बैलेंस समाप्त हो गया है। अब तो मेरे प्रेम की नौका का बैलेंस भी गड़बड़ाने लगा है। वह दुनियादारी के भँवर में गोते खा रही है। तुम्हारी होने वाली भाभी मुझसे बहुत नाराज है। वैसे नाराजगी का उसका कारण जायज है। मुझसे बातें करते रहने के कारण ही वह ठीक से पढ़ नहीं पाई और बीए प्रथम वर्ष में उसे एक विषय में सप्लीमेंट्री की प्राप्ति हुई है।

हे मित्र बॉनी! नारी कभी पुरुष को ठीक तरह समझ नहीं पाएगी। तुम्हारी होने वाली भाभी को भी यह समझना चाहिए कि उसके प्रेम में दीवाना होकर मैं स्वयं भी दो विषयों में सप्लीमेंट्री के परिणाम को प्राप्त हुआ हूँ।

वह तो भला हो मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग का, जिसने दो विषयों में भी एटीकेटी की अनुमति का आदेश जारी कर मुझ जैसे अनेक प्रेमियों को उनकी प्रेमिकाओं से बिछुड़ने से बचा लिया। वरना अगले सेमेस्टर में तुम्हारी होने वाली भाभी को जाने कितने खलनायकों के बीच पढ़ाई करनी पड़ती है!

ईश्वर एक प्रकृति के लोगों को मिला ही देता है। तुम्हारी होने वाली भाभी की तरह ही मुझे भी एटीकेटी की पात्रता प्राप्त हुई है। मुझे समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में सप्लीमेंट्री आई है, जबकि तुम्हारी होने वाली भाभी को इतिहास में सप्लीमेंट्री मिली है। बड़े छिपते-छिपाते उसने अपने छोटे भाई के हाथों इतिहास की एक मोटी पुस्तक मुझ तक पहुँचाई है। इस पुस्तक की मोटाई देखकर ही मुझे भरी गर्मी में कँपकँपी छूट जाती है।

मैं बड़े दिनों से तुम्हारी होने वाली भाभी के संदेश का मानसून की तरह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था। संदेश इतिहास की किताब में मिला भी लेकिन उसे पढ़कर मेरी आशाओं पर सूखे की छाया पड़ गई। संदेश यह है कि मैं इतिहास की पुस्तक पढ़कर उसे समझा दूँ। सच तो यह है कि मुझे तुम्हारी होने वाली भाभी का इतिहास ही ठीक से नहीं पता है और वह मुझसे भारत का इतिहास समझने-समझाने की बात कर रही है।

यह तो नादानी की हद है। ऐसे कठिन हालात में मैं न तो उसके लिए इतिहास ठीक से समझ पा रहा हूँ और न ही स्वयं के लिए समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र पढ़ पा रहा हूँ। समाजशास्त्र तो शुरू से ही मेरा कमजोर था, अब अर्थशास्त्र भी लगातार कमजोर होता जा रहा है।

वैसे मुझे मेरे शहर के विश्वविद्यालय पर पूरा भरोसा है। वह हम प्रेमी युगल को सप्लीमेंट्री दिलवा सकता है, किंतु फेल ही कर दे, इतना निर्दयी नहीं है वह। पुरानी परंपराओं से मुझे ज्ञात हुआ है कि जीवन के हर क्षेत्र में असफल रहे लोगों का अंतिम आसरा विश्वविद्यालय रहा है। यहाँ से उन्हें सफलतापूर्वक डिग्री प्राप्त हुई है। तुम तो जानते ही हो कि मैं जन्म से ही आशावादी हूँ। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारी होने वाली भाभी और मेरे लिए विश्वविद्यालय खलनायक नहीं बनेगा।

अरे! मैं तो मेरे बारे में ही लिखता रहा। तुम्हारे बारे में तो पूछा ही नहीं। तीन विषयों में सप्लीमेंट्री दिलवाने के लिए छात्र हित में तुम्हारे द्वारा किए गए आंदोलन में तुम्हें पुलिस के लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। अब तुम्हारी तबीयत कैसी है? बताना।

इस पत्र का जवाब तुम अपने मोबाइल से भी दे सकते हो, यदि उसमें बैलेंस बचा हो!

तुम्हारा ज्ञान पिपासु मित्र
जॉनी

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