वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को वाराणसी से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। मोदी ने अपने 4 प्रस्तावकों और एनडीए सहयोगियों के माध्यम से पूरे देश के परोक्ष रूप से संदेश देने की कोशिश की है। इससे न सिर्फ यूपी और बिहार बल्कि देशभर की बची हुई 240 सीटों पर भी असर देखने को मिल सकता है।
मोदी के प्रस्तावकों में दाह संस्कार करने वाले डोम राजा जगदीश चौधरी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय की मुंहबोली बेटी अन्नपूर्णा शुक्ला, कृषि वैज्ञानिक रामशंकर पटेल और आरएसएस कार्यकर्ता सुभाष गुप्ता शामिल थे।
इनके अलावा केन्द्र सरकार में भाजपा के सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे, रामविलास पासवान, पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के नेता, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत अन्य नेता और कार्यकर्ता शामिल रहे।
क्या है डोम जाति से प्रस्तावक चयन का राज : प्रधानमंत्री मोदी ने नामांकन में एक प्रस्तावक डोम जाति से लिया है। अंतिम संस्कार करने वाले डोम समुदाय को समाज की सबसे निम्न और तिरस्कृत जाति माना जाता है। इस समाज के लोग पहले गांव से बाहर रहा करते थे। मोदी ने इस तरह मध्यम निचली जातियों को साधने के लिए ही डोम समाज से प्रस्तावक लिया है। वह यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि वह समाज की हर जाति के साथ हैं।
इसलिए चुना चौकीदार : पीएम मोदी ने 'मैं हूं चौकदार' कैंपन को पिछले चुनाव में चलाए गए 'चायवाला' कैंपेन की तरह ही चलाया है। उन्होंने एक प्लानिंग के तहत सोशल मीडिया पर इस शब्द को इस तरह प्रसारित किया कि यह नारा देश के हर व्यक्ति तक पहुंचे। इस तरह वह राष्ट्रवाद को भी बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने में सफल रहे। अब उन्होंने चौकीदार को अपना प्रस्तावक भी बनाया है। इस तरह वह यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि वह देश के चौकीदार हैं। मोदी के इस दांव ने विपक्ष को भी हैरान कर दिया है।
नीतीश के आने का यह होगा असर : बिहार में भाजपा और जदयू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें वहां महागठबंधन से कड़ी चुनौती मिल रही है। नीतीश के मोदी के नामांकन के समय मौजूद रहने से बिहार के साथ ही पूरे देश में मौजूद बिहारी मतदाताओं पर सकारात्मक असर होगा।
उद्धव आए, अब नाराज नहीं है शिवसेना : मोदी के नामांकन से यह संदेश भी मिल रहा है कि भाजपा और शिवसेना के तल्ख संबंध अब अतीत की बात हो गई है। दोनों दल अब पूरी तरह साथ है और लंबे समय तक साथ ही रहेंगे। इससे महाराष्ट्र के मतदाताओं पर सकारात्मक असर पड़ेगा और राज्य में दोनों ही दलों की स्थिति मजबूत होगी।