पीलीभीत में मानव पशु संघर्ष बना चुनावी मुद्दा, 5 वर्ष में बाघों ने 20 से अधिक ग्रामीणों को मार डाला
22 से अधिक लोग बाघों के हमलों में जान गंवा चुके
tiger attack in Pilibhit : राजनीतिक नेता चुनावी रैलियों में विकास, आधुनिकीकरण और प्रगति की बात कर रहे हैं लेकिन पीलीभीत (UP) लोकसभा क्षेत्र के लगभग 300 गांवों के लोग अभी भी पशु संघर्ष का सामना कर रहे हैं जिसे मानव जाति के सबसे आदिम संघर्षों में से एक माना जाता है। बाघों (tiger) के हमलों में 22 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं।
22 से अधिक लोग बाघों के हमलों में जान गंवा चुके : इन गांवों में लोगों को नियमित रूप से बाघ प्रजाति के जानवरों का सामना करना पड़ता है, जो निकटवर्ती पीलीभीत टाइगर रिजर्व (पीटीआर) से उनके खेतों में भटककर आ जाते हैं। पीटीआर बंगाल टाइगर (पैंथेरा टाइग्रिस) का निवास स्थान है। कई बार यह मुठभेड़ जानलेवा भी साबित होती है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार नवंबर 2019 से अब तक इन गांवों के 22 से अधिक लोग बाघों के हमलों में जान गंवा चुके हैं।
9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा उम्मीदवार जितिन प्रसाद के समर्थन में पूरनपुर क्षेत्र में एक राजनीतिक रैली के आयोजन से कुछ घंटे पहले 55 वर्षीय किसान भोले राम को एक बाघ ने मार डाला था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की भव्यता को दुनियाभर में ले जाने की घोषणा की।
भोले राम के परिवार के सदस्य और कुछ अन्य ग्रामीण घोषणा से खुश नहीं थे। भोलेराम के रिश्तेदार और पीलीभीत टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे जमुनिया गांव के निवासी पारस राय ने कहा कि हमारा जीवन भगवान की दया पर निर्भर है। हमें नहीं पता कि कब बाघ आएगा और हमें या हमारे बच्चों को अपना शिकार बना लेगा।
पिछले 6 महीने में हो चुकी है 4 लोगों की मौत : पिछले 6 महीने में बाघ के हमले से गांव में भोले राम समेत 4 लोगों की मौत हो चुकी है। अब पीलीभीत में मानव-पशु संघर्ष एक चुनावी मुद्दा है। बाघों के कारण अस्तित्व पर लगातार मंडरा रहे खतरा से भयभीत ग्रामीण, बाघों को जंगल से बाहर निकलने से रोकने के लिए कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों को भी इस मुद्दे की गंभीरता का एहसास होने लगा है। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार ने 11 अप्रैल को भोले राम के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की और उन्हें अपने समर्थन का आश्वासन दिया। गंगवार ने 12 अप्रैल को जिले में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैली के दौरान यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था, लोग जंगली जानवरों द्वारा मारे जा रहे हैं। सत्ता में आने पर हम समस्या का समाधान करेंगे।
अखिलेश यादव ने उठाया भी इस मुद्दे को : उत्तप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को उठाया और भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा था कि जंगली जानवर लोगों को मार रहे हैं। मैंने दीवार पर बैठे एक बाघ का वीडियो भी देखा जिसका लोग पीछा कर रहे हैं। इस सरकार ने समस्या के बारे में कुछ नहीं किया है।
2022 में बाघ के हमले में अपने भाई को खोने वाले किसान उमाशंकर पाल ने कहा कि हम चाहते हैं कि अधिकारी बाघों को रोकने के लिए जंगल की सीमाओं पर बाड़ लगाएं। लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे खेतों में नियमित रूप से बाघ आते हैं जो हमारे जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं। ग्रामीण, मुख्य रूप से छोटी जोत वाले किसान, अपने खेतों के बिना काम नहीं चला सकते जहां बाघ उनके जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। बाघों द्वारा मारे गए लगभग सभी लोग खेतों में काम करते हुए उनके हमले का शिकार बने।
बाघों की आबादी पिछले कुछ वर्षों में दोगुनी हुई : विशेषज्ञों का सुझाव है कि 2014 में गठित पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी पिछले कुछ वर्षों में दोगुनी हो गई है जिससे उन्हें नए क्षेत्रों की तलाश में बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा है, नतीजतन मानव-पशु संघर्ष हो रहा है। 2018 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 65 बाघ हैं। यह संख्या 2014 में बाघों की संख्या से दोगुने से भी अधिक है।
पीलीभीत स्थित वन्यजीव विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गेश प्रजापति ने बताया कि वन क्षेत्रों से जानवरों के बाहर आने का एक और कारण पीलीभीत टाइगर रिजर्व के आसपास एक बहुत ही संकीर्ण और लगभग न के बराबर बफर जोन है। पीलीभीत में गांव या खेत जंगल की सीमा पर ही स्थित हैं।
सदियों से जंगल के साथ एकजुट होकर रहने वाले ग्रामीणों का मानना है कि बाघों की समस्या इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करने के सरकार के फैसले का परिणाम है। ग्रामीणों ने कहा कि इस बार वे उस पार्टी को वोट देंगे जो उनकी समस्या का समाधान करने का वादा करेगी। 18 लाख से अधिक मतदाताओं वाले पीलीभीत में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta