लव-मंत्र : विवाह के बाद रिश्तों को कैसे बचाएं

- वसुधा विवेक पळसुले

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विवाह के समय लिए जाने वाले सात फेरे, सात जन्मों तक का सफर साथ-साथ तय करने का वचन दिलवाते हैं। विवाह का यह सुखद बंधन मात्र अग्नि के इर्द-गिर्द घूमने की औपचारिकता नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ कुछ अनकही, अनलिखी बातों का प्रण लेना भी होता है जिसमें जीवन संघर्ष में, सुख-दुख में साथ निभाने की, समर्पण से एक-दूसरे का सम्मान करने की, आपस की भावनाओं को समझने की, सबसे महत्वपूर्ण अपने-अपने अहं को त्याग 'मैं-तू' का वाद छोड़ 'हम' शब्द को आत्मसात करने की आवश्यकता होती है।

सात जन्मों के सफर का फलसफा पहले ही जनम में बोझ न बन बैठे, रिश्तों में बिखराव न आए व संबंध सतत ऊर्जावान बने रहें, इसलिए निम्न बातों की एहतियात बरतना आवश्यक है।

* प्रेम को सर्वोपरि समझ उस पर किसी चीज को हावी न होने दें।

* पति या पत्नी से नहीं, संपूर्ण परिवार से जुड़ने का मन बनाएं।

* यदि संभव हो तो दूसरे की आदतों व व्यवहार से समझौता करने की कोशिश करें।

* कभी-कभी स्वयं की गलती मानने का बड़प्पन भी दिखाएं। एक-दूसरे के दोषों को नजरअंदाज करना भी सीखें।

* अपने साथी के गुणों की कद्र करें। छोटे-छोटे कार्यों की प्रशंसा कर प्रोत्साहन बढ़ाएं।

* हर समस्या का समाधान चर्चा से ढूंढें।

* एक-दूसरे से व्यर्थ की अपेक्षा कम करें।

* अपने साथी की दूसरे किसी से कभी तुलना न करें। एक-दूजे पर भरपूर विश्वास करें।

* आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए इच्छा व आकांक्षाओं को सीमित रखें।

* हर बात में एक-दूसरे की राय लेना व समान महत्व देकर निर्णय लेने की कोशिश करें।

* आपसी प्यार व आकर्षण में कमी न आने दें। प्यार में छोटे-मोटे झगड़े होते रहते हैं। उनकी उम्र यथासंभव घटाकर फिर प्रेम से एक होना ही सफल वैवाहिक जीवन का राज है। इसे याद रखें।

इन सतर्कताओं के साथ सात फेरों के साथ प्रारंभ हुआ सफर सात जन्मों तो क्या प्रत्येक जन्म में इसी साथी की चाह रखेगा। यही हमारी संस्कृति व सभ्यता का अभिन्न अंग है।

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