जॉन रस्किन का पत्र ईफी ग्रे के नाम

Webdunia
दिसंबर, 1847

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मुझे नहीं पता कि तुमसे भी भीषण मैंने कुछ और देखा है - तुम लहराती, आपस में फुसफुसाती टहनियों वाला वो जंगल हो, जिसके नीचे लोग घूमते हैं, उसकी छाँव तले अठखेलियाँ करते हैं। वे नहीं जानते कि कितनी दूर और कब वे उसके केंद्र तक पहुँच पाएँगे, जो पूरी तरह से ठंडा और अभेद्य है। लेकिन फिर वे कँटीली झाडि़यों और काँटों में घिर जाते हैं और उससे भाग नहीं सकते...

तुम एक उज्‍जवल-मुलायम- गोले की तरह जान पड़ती हो - ऊँची हिमनदी के खूबसूरत मैदानों-सी, जो सुबह के ताजे बर्फ से ढके हों, जो आँखों को स्‍वर्ग-सी अनुभूति देते हैं, जो पैरों के नीचे मुलायम-सी प्रतीत होती है, लेकिन उस बर्फ के नीचे घुमावदार गड्ढे हैं और उस ठंडे-ठंडे बर्फ का अँधेरा जहाँ व्‍यक्ति एक बार गिरता है तो दुबारा उठ नहीं पाता।

- जॉन रस्किन

( जॉन रस्किन एक लेखक, कलाकार और एक विचारक थे। उन्‍होंने यह पत्र अपनी पत्‍नी ईफी ग्रे के नाम लिखा था।)

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