बुरहानपुर मेंं जंगलों की कटाई ही नहीं जमीन पर कब्जे से जुड़ा है पूरा खेल, संगठित अपराध में बदले अतिक्रमणकारी, वोटों के लालच में कार्रवाई नहीं
निमाड़ के कई जिलों में अवैध रूप से जंगलों की कटाई और जमीन कब्जाने का चल रहा पूरा खेल
मध्यप्रदेश में पर्यावरण को सुरक्षित रखने और जंगल को बचाने के लिए प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान पिछले दो साल से प्रतिदिन एक पौधा लगा रहे है। दो साल में दो हजार से अधिक पेड़ लगाने के साथ मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता को पेड़ लगाने का संकल्प भी दिलवाते है। मुख्यमंत्री की जल-जंगल और जमीन के संरक्षण के लिए भले ही पूरी तरह संकल्पित नजर आ रहे है लेकिन मध्यप्रदेश में जंगलों की अवैध कटाई और जमीन कब्जाने का मुद्दा लगातार सुर्खियों में आता जा रहा है। प्रदेश के निमाड़ इलाका इन दिनों जंगलों की अवैध कटाई को लेकर खूब सुर्खियों मे है। निमाड़ के खरगौन, बड़वानी के बाद अब बुराहनपुर के नेपानगर में धड़ल्ले से सागौन के जंगल कटने का मुद्दा गर्माता जा रहा है।
जंगल के साथ जमीन कब्जाने का पूरा खेल-केले के उत्पादन के लिए देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाला मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला इन दिनों सुर्खियों में है। जिले के नेपानगर वन परिक्षेत्र के घाघरला के जंगलों में अवैध तरीके से धड़ल्ले से करोड़ों की कीमत के सागौन के जंगल काटे जा रहे है और उसको रोकने में वन विभाग और प्रशासन बेबस नजर आ रहा है। पूरा मामला केवल जंगलों के काटने तक सीमित नहीं है, यहां पर अतिक्रमणकारी जो अब संगठित होकर एक गिरोह की तरह कार्य कर रहे है वह जंगल की बेशकीमती जमीन पर कब्जा पर जमाने के साथ उसके अवैध कारोबार में लगे हुए है।
निमाड़ के क्षेत्र में बेहत सक्रिय वन माफिया जिन्हें स्थानीय स्तर पर अतिक्रमणकारी कहा जाता है वह जंगल काटने के बाद उनकी ठूंठों को जला देते हैं और फिर उस जमीन को आदिवासियों को बेच देते है। जंगल की जमीन पर कब्जा करने का यह पूरा खेल तब और तेज पकड़ लिया जब सरकार ने वन भूमि को आदवासियों को पट्टे पर देने का एलान किया और आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट जैसे कानून लेकर आई।
निमाड़ के कई जिलों में डीएफओ के तौर पर अपनी सेवा दे चुके पूर्व मुख्य वन संरक्षक आजाद सिंह डबास कहते हैं कि प्रदेश के जंगलों की अवैध कटाई की सबसे बड़ी वजह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और फॉरेस्ट राइट एक्ट के तहत लगातार वनाधिकार पट्टे को वितरण होना है। वह कहते हैं कि अब वह आदिवासी नहीं रहा जो जंगल की पूजा करता है, अब आदिवासी कृषक बन गया है और उसको खेती के लिए जमीन चाहिए। जहां तक बुरहानपुर की बात है तो वहां पर अतिक्रमणकारी खरगोन और खंडवा से भी आ रहे है क्यों वह पर पहले ही अतिक्रमण से जंगल खत्म हो चुका है।
संगठित गिरोह में बदले अतिक्रमणकारी-बुरहानपुर जिले के नेपानगर वन परिक्षेत्र के घाघरला में सागौन के जंगल के अवैध तरीके से काटे जाने के साथ जंगल की जमीन पर कब्जा जमाने का कार्य एक संगठित गिरोह में बदल गया है। खरगोन और खंडवा के बाद अब वन माफियाओं जिन्हें स्थानीय तौर पर अतिक्रमणकारी कहा जाता है वह नेपानगर के सागौन के जंगलों को रातों-रात साफ कर रहे है। जंगल के साथ जमीन पर कब्जा करने का यह पूरा खेल एक गिरोह में बदल गया है। निमाड़ के इलाके में बेहद सक्रिय गिरोह बकायदा नवाब और पटेल बनाते है जो एरिया का सर्वे कर बाहर के लोगों को बुलाकर पहले जंगलों को कटवाते है फिर खाली जमीन पर कब्जा कर उस पर अतिक्रमण कराते है और फिर जमीन को दूसरो को पैसा देकर बेच देते है।
अतिक्रमण रोकने गई टीम पर हमला-घाघरला के जंगलों में वन माफिया किस कदर बेखोफ हो कर सागौन के जंगह काट रहे है इसको इससे समझा जा सकता है कि वह जंगल में अवैध कटाई रोकने के लिए गए जिले के डीएफओ और वन विभाग की टीम पर हिंसक तरीके से हमला कर दिया। करोड़ों की कीमत के सागौन के जंगल को काटने की सूचना मिलने के बाद जैसे ही वन विभाग की टीम जंगल में दाखिल हुई और वन माफियाओं और अतिक्रमणकारियों को खदेड़ने की कोशिश की तो वन माफियाओं ने धारदार तीर और गोफन से वन विभाग की टीम पर हमला कर दिया।
हमला कितना खतरनाक था इसको इससे समझा जा सकता है कि हमले में डीएफओ अनुपम शर्मा सहित कई वनकर्मी घायल हो गए जबकि वह हेलमेट और जैकेट पहने हुए थे लेकिन तीर उनकी सुरक्षा कवच को भेदकर घायल हो गया। वन माफियाओं के ओर से गोफन से चलाए गए दर्जनों पत्थर डीएफओ समेत अन्य वन कर्मियों औऱ पुलिसकर्मियों की शील्ड, हेलमेट व जैकेट पर लगने के साथ शरीर के अन्य हिस्सों पर लगे। पुलिस और वन अमले पर तीर और गोफन से हुए हमले में 10 से अधिक वनकर्मी और ग्रामीण घायल हुए है जिनका इलाज नेपानगर में चल रहा है। डीएफओ अनुपम शर्मा के मुताबिक गोफन से फेंके गए पत्थरों की रफ्तार बंदूक से निकली गोली जैसी होती है। यही वजह है कि जिन लोगों को पत्थर लगे हैं, उनके हेलमेट में छेद हो गए हैं।
DFO के पत्र ने दिखाया आईना- घाघराल के जंगल में अतिक्रमणकारी किस तरह से वन विभाग और प्रशासन के लिए एक चुनौती बन गए है यह बात का प्रमाण है कि जिले के डीएफओ अनुपम शर्मा का जिले के एसपी को लिखा पत्र है। डीएफओ ने जिले के एसपी के पत्र लिखकर इस बात की जानकारी दी है कि अतिक्रमणकारी जंगल में मौजूद है और अब वह कानून व्यवस्था के लिए संकट बनते जा रहे है। 13 मार्च के एसपी को लिखे पत्र में डीएफओ अनुपम शर्मा ने कहा कि आपके (एसपी) द्वारा बल का नेतृत्व में घाघरला के जंगलों को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया था परंतु वास्तविकता यह है कि अतिक्रमणकारी उस समय जंगल से अस्थाई रूप से चले गए थे जो पुनः 17 दिन बाद वापस जंगल में घुस गए। डीएफओ ने सवाल उठाया कि यह किस प्रकार का अतिक्रमणमुक्त कराना हुआ, जहां हथियारों से लैस अतिक्रमणकारियों को कानून व्यवस्था का कोई डर नहीं रहा। लचर कानून व्यवस्था के कारण संगठित अपराध का रूप ले चुकी अतिक्रमणकारी की समस्या से घाघरला के अतिरिक्त झिरी-झांझर, ठाठर-बलड़ी, सिवेल- साईंखेड़ा, घोराघाट आदि क्षेत्रों में भी बढ़ गई है। इन सभी क्षेत्रों में अतिक्रमणकारियों द्वारा स्थानीय लोगों को जान माल का खतरा बना हुआ है।
डीएफओ ने अपने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया है कि अतिक्रमणकारी कुख्यात अपराधी और उनकी संख्या 250-300 है, ऐसे में निहत्थे वन कर्मी कैसे उनका मुकाबला करते है। डीएफओ ने एसपी से आग्रह किया है कि कानून व्यवस्था को पुनः स्थापित करने के लिए अतिरिक्त बल पर्याप्त संख्या में तैनात करें।
बुरहानपुर की स्थिति को लेकर डीएफओ के पत्र पर पूर्व सीसीएफ आजाद सिंह डबास कहते हैं कि पिछले दिनों विदिशा के लटेरी में सागौन के जंगल के अवैध कटाई के बहुत से वीडियो वायरल हुए थे। लटेरी में जब वन माफियाओं को वन विभाग की टीम ने रोकने की कोशिश की तो एक व्यक्ति मारा गया और सरकार उसको 25 लाख रूपए और नौकरी दे रही है, इसमें में सवाल उठाता है कि जब जंगल के चोरों और डाकूओ को प्रोत्साहन देंगे तो जंगल कैसे रूकेंगे और जंगल कटेंगे ही। वह कहते हैं कि अभी तो प्रदेश में बाहर से अतिक्रमणकारी नहीं आ रहे है लेकिन बुरहानपुर के नेपानगर और अन्य इलाकों में जिस तरह से चल रहा है तो वह दिन दूर नहीं है जब महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों से वन माफिया प्रदेश का रूख करने लगेंगे।
आदिवासी वोट बैंक कार्रवाई में बड़ी बाधा- बुरहानपुर के अवैध तरीके से जंगल कटने का केवल एक जिले का मामला नहीं है। बुरहानपुर से सटे खंडवा, खरगौन और बड़वानी में भी लंबे समय से धड़ल्ले से वन माफियाओं के द्वारा जंगल काटा जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि करोड़ों के जंगल कटने के बाद सरकार कोई प्रभावी कार्रवाई क्यों नहीं कर पा रही है।
इस जवाब है चुनावी साल में सरकार की वोटों की राजनीति। दरअसल य़ह पूरा इलाका आदिवासी बाहुल्य है और वन माफिया भोले-भाले आदिवासियों को जमीन के पट्टे का लालच देकर बरगला करके जंगल काट रहे है। वन माफिया सैकड़ों की संख्या में आदिवासियों को अपने साथ लेकर न केवल जंगल काट रहे है बल्कि जंगल पर रातों-रात कब्जा भी जमा रहे है।
हजारों की संख्या में पेड़ कटने और हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा होने के बाद भी सरकार कुछ नहीं कर पा रही है, इसकी बड़ी वजह आदिवासी वोट बैंक है। दऱअसल मध्यप्रदेश में 48 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है और करीब 80 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक अपना सीधा प्रभाव रखते है। ऐसे में सरकार पूरी हकीकत जातने हुए पूरे मामले को नजरअंदाज करते हुए चुनावी साल में आदिवासियों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं करना चाह रही है
स्थानीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा कहते है कि घाघरला के जंगलों में अतिक्रमणकारी दिनदहाड़े जंगल कटाने के साथ जमीन पर कब्जा कर रहे है लेकिन सरकार का इस विषय पर कोई ध्यान नहीं है। वह दावा करते हैं कि अतिक्रमणकारी 50 से 60 फीसदी जंगल काट चुके है और सरकार चुनाव के चलते कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। वोटों के खातिर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। अतिक्रमणकारियों से स्थानीय गांव वाले लड़ रहे है लेकिन प्रशासन उनका कोई साथ नहीं दे रहा है।
चुनावी साल में आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जंगलों की कटाई का मुद्दा अब भोपाल तक पहुंच चुका है। विधानसभा में निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने ध्यानार्कषण के जरिए पूरे मुद्दे को उठा कर सरकार से कार्रवाई की मांग की। वहीं इस पूरे मुद्दे पर प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह कहते हैं कि घाघरला के जंगलों में अतिक्रमणकारियों को हटाने की कार्रवाई जा रही है। अतिक्रमणकारी कोई विदेशी नहीं है। जंगल कटाकर जमीन पर कब्जा करने के लिए कुछ लोग उकसा रहे हैं, उनको चिन्हित कर लिया गया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
आदिवासी बाहुल्य इलाके में जंगलों को काटने और जमीन पर कब्जा करने में असल में पूरा गठजोड़ है। सवाल इस इलाके में सक्रिय कुछ तथाकथित आदिवासी संगठनों पर भी है। पूर्व सीसीएफ आजाद सिंह डबास कहते हैं कि कथित तौर पर आदिवासी मुक्ति संगठन हैं वह दिखावे के लिए पर्यावरण की रक्षा की बात करते है लेकिन यह अंदर ही अंदर आदिवासियों को उकसाते है कि जंगल पर आप का ही हक है। सवाल यह कि जंगल पर आदिवासियों का हक है लेकिन हक यह नहीं है कि आप उसकी जंगल को काट दो।