वेब सीरीज में अपराध का महिमामंडन समाज के लिए खतरनाक

छतरपुर और भोपाल मर्डर की घटनाओं का मनोविज्ञान

विकास सिंह
शनिवार, 7 दिसंबर 2024 (13:20 IST)
भोपाल। बीते सप्ताह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और छतरपुर में हत्या की दो वीभत्स वारदात ने सभी को झकझोर दिया है। पहली घटना राजधानी भोपाल की है जहां एक एएसआई ने पारिवारिक विवाद में अपनी पत्नी और सालू की वीभत्स तरीके से हत्या कर दी तो छतरपुर में एक स्कूल प्रिंसिपल की हत्या उसी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र ने कर दिया। दोनों ही घटना के आरोपी पुलिस गिरफ्त में है और पुलिस हत्या के कारणों की जांच में जुटी हुई है। वीभत्स हत्या की इन दो घटनाओं ने हमारे सामाजिक परिदृश्य पर सवाल उठाने के साथ पारिवारिक मूल्यों में तेजी से आती गिरावट को दिखाता है। 

'वेबदुनिया' से चर्चाा मेंं मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि एक मनोचिकित्सक के नाते जब इन दोनों घटनाओं पर विचार करता हूँ तो एक बात समझ में आती है कि इसके पीछे गहरे सामाजिक,मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण काम कर रहे हैं। आज के दौर में सामाज में जिस तरह से हिंसा का सामान्यीकरण करने के साथ वेब सीरिज जैसे टूल्स के जरिए हिंसा का महिमामंडन कर अपराधी का नायकीकरण कर समाज में एक तरह से आत्मसात जैसा कराया जा रहा है वह बेहद घातक है, जिसके परिणामस्वरूप इस तरह हत्या की वीभत्स वारादात देखने को मिल रही है।

डॉ सत्यकांत कहते है कि अगर छतरपुर में प्रिसिंपल की हत्या उसकी स्कूल में पढ़ने वाला छात्र कर रहा है तो यह सिर्फ एक बच्चे की निजी विफलता नहीं, बल्कि उस माहौल का संकेत है जहाँ वेब सीरीज़ और सिनेमा के माध्यम से अपराध को आकर्षक रूप में पेश किया जा रहा है। इस माहौल में सही-गलत का अंतर धुंधला पड़ जाता है, और किशोर असली जीवन की कठिनाइयों से जूझने के बजाय हिंसा और अपराध को आसान रास्ता मानने लगते हैं। किशोरावस्था वैसे भी पहचान, आदर्श और सम्मान की तलाश का दौर है। ऐसे में परदे पर अपराधियों को नायक की तरह देखने से उन्हें लगता है कि हिंसा या छल-कपट से भी आगे बढ़ा जा सकता है। यदि उन्हें भावनात्मक संतुलन व मूल्य आधारित दिशा-निर्देश न मिले, तो वे इन भ्रामक छवियों को वास्तविक समझने लगते हैं।

वहीं छतरपुर में आरोपी के ड्रग एडिक्ट होने की बात सामने आ रही है, इस पर डॉ. सत्यकांत कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे अवसाद, अत्यधिक क्रोध या ध्यान की कमी यदि समय पर समझी और सुलझाई न जाएँ, तो किशोर नशे या ग़लत आदतों की ओर खिंच सकते हैं। नशे में सही-गलत का बोध और कमज़ोर हो जाता है, जिससे अपराध की आशंका बढ़ जाती है।

यह घटना सिर्फ एक बच्चा या एक परिवार की समस्या नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक परिवेश का चित्र है। जहाँ परदे पर अपराध को चमकदार पैकेज में लपेटकर परोसा जा रहा है, वहाँ बच्चों को असली दुनिया का फर्क समझाना, उन्हें भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाना और नैतिक मूल्यों से परिचित कराना बेहद ज़रूरी हो जाता है। इसी समग्र दृष्टिकोण से हम न केवल अपराध और हिंसा पर अंकुश लगा सकते हैं, बल्कि आत्मघाती प्रवृत्तियों को भी रोकने में कामयाब हो सकते हैं।

वहीं अगर भोपाल में पति के द्वारा पत्नी और साली की हत्या की बात की जाए तो यह हमारे परिवारिक मूल्यों के विघटन को दिखाती है। परिवार हमारे समाज की नींव है, जहां प्रेम, विश्वास और सहानुभूति की दीवारें खड़ी होती हैं। लेकिन जब परिवार के भीतर संघर्ष, तनाव और संवादहीनता जगह लेती है, तो यह अपराध का रूप ले लेता है। इन घटनाओं के पीछे परिवार के सदस्यों के बीच संवाद की कमी सबसे बड़ा कारण है। अपनी भावनाओं और समस्याओं को न व्यक्त कर पाना अक्सर गलतफहमियों और गुस्से का रूप ले लेता है। रिश्तों में असुरक्षा, ईर्ष्या और तुलना पारिवारिक माहौल को विषाक्त बना देती है।

छतरपुर की घटना से मिलने वाली पाँच सीख
-बच्चों को भावनाओं को समझना और नियंत्रित करना सिखाना बेहद आवश्यक।
-सही-गलत की पहचान और नैतिक मूल्यों पर जोर दें।
-इस बात का बोध कराना कि परदे पर दिखाई जाने वाली हिंसा और अपराध को वे कल्पना समझें, हकीकत नहीं।
-मानसिक दबाव के लक्षण जल्दी पहचानें और समय पर सहयोग दें।
-परिवार, शिक्षकों और समुदाय के साथ खुला संवाद बनाए रखें।
 

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